
भारत में कोरोना वायरस और ओमिक्रॉन के केस तेजी से बढ़ रहे हैं. दिल्ली में कोरोना छोटे बच्चों को भी अपना शिकार बनाने लगा है. दिल्ली के प्राइवेट और सरकारी अस्पताल चार से पांच कोरोना पॉजिटिव के केस दर्ज हो रहे हैं. ऐसे में ओमिक्रॉन के बढ़ते केसों के साथ ही माता पिता का डर उन छोटे बच्चों को लेकर बढ़ने लगा है, जिन्हें वैक्सीन लगना शुरू नहीं हुई.
दिल्ली सरकार के सरकारी अस्पताल चाचा नेहरू बाल चिकित्सालय में रोजना 4 से 5 बच्चे कोरोना पॉजिटिव आ रहे हैं. साथ ही 7 बच्चे अस्पताल में एडमिट भी हैं और यह बच्चे जल्दी ठीक भी हो रहे. इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स के मुताबिक, दिल्ली में 15 साल से कम उम्र के 31 बच्चे अस्पताल में भर्ती हैं.
इन 31 बच्चों में 9 बच्चे प्राइवेट अस्पताल में हैं. ज्यादातर केसों में दूसरी बीमारी भी है. हालांकि, साधारण इलाज से इनके जल्द ठीक होने की उम्मीद है. कोरोना के अलावा 8 बच्चों में दौरे पड़ने की शिकायत है. 2 को लो ब्लड प्रेशर की शिकायत है.
दिल्ली में बच्चों के जाने माने अस्पताल चाचा नेहरू बाल चिकित्सालय के सूत्रों ने बताया कि 2 साल से कम उम्र के 2 बच्चों के पॉजिटिव आने के बाद यहां भर्ती कराया गया है. इसके अलावा ओपीडी में बच्चो के मामले बढ़ रहे हैं.
दिल्ली में 31 बच्चे अस्पताल में भर्ती
प्राइवेट अस्पताल में- 9
वजह- कोरोना के साथ साथ दूसरे भी रोग हैं.
लक्षण- तेज बुखार, गले में दर्द, लूज मोशन, उल्टी.
गंभीर मामलों में तेज बुखार पर सांस लेने में दिक्कत. अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत.
'कोई बच्चा वेंटिलेटर पर नहीं'
इसके अलावा दिल्ली के प्राइवेट मधुर कर चिल्ड्रंस हॉस्पिटल के मुताबिक पिछले कुछ दिनों से बच्चों में हल्के हल्के लक्षण सामने आ रहे हैं. 4 से 5 बच्चे पॉजिटिव देखने को मिल रहे हैं, हालांकि 10 बच्चे अस्पताल में अभी भर्ती हैं. लेकिन डॉक्टर बताते है कि बच्चों को लेकर चिंता की कोई बात नहीं है. डॉक्टर के मुताबिक, बच्चों की इम्युनिटी ज्यादा स्ट्रांग है और यह बच्चे जल्द ही ठीक हो रहे हैं.
मधुकर रेनबो हॉस्पिटल के डॉक्टरों के मुताबिक, कोई भी बच्चा वेंटिलेटर पर नहीं है. बच्चों का इलाज करने वाले डॉक्टरों का मानना है कि बच्चों के अस्पताल में भर्ती होने की संख्या काफी कम है और ये जल्दी ठीक हो जाते हैं. उन्होंने कहा, दूसरी लहर जितने लोग अस्पतालों में भर्ती नहीं हो रहे हैं. उन्होंने कहा, वॉयस बॉक्स में संक्रमण की वजह से सांस लेने में कठिनाई होने के बाद ही बच्चों को भर्ती किया जाता है.
उन्होंने बताया कि बच्चों को नेबुलाइजेशन का इलाज दिया जाता है और मरीज 3-5 दिन में मरीज डिस्चार्ज हो जाता है. उन्होंने कहा, बच्चों में सिर्फ कोरोना पॉजिटिव होना ही गंभीर नहीं है, बल्कि लगातार तेज बुखार के बाद उन्हें गंभीर माना जाता है.
मधुकर रेनबो के सीनियर कंसल्टेंट डॉक्टर चंद्रशेखर ने बताया कि ऐसे में बच्चों को भर्ती करने की जरूरत होती है. हालांकि, तीसरे दिन उन्हें डिस्चार्ज कर दिया जाता है. इन बच्चों का इलाज ओपीडी बेस पर ही होता है. बच्चों के माता पिता को साथ रहने के लिए खास व्यवस्था की जाती है, ताकि उन्हें बच्चों की सुरक्षा को लेकर कोई चिंता न हो.
सर गंगाराम अस्पताल के सीनियर पीडियाट्रिक कंसल्टेंट डॉ धीरेन गुप्ता ने आजतक से बातचीत में लोगों से सावधानी बरतने के लिए कहा. उन्होंने कहा, 11 से 18 साल के बच्चों में अधिक बुखार और सूखी खांसी जैसे लक्षणों के बाद भी अस्पताल में भर्ती होने के काफी कम केस हैं. बच्चों में मौजूद जन्मजात इम्युनिटी उनकी संक्रमण से रक्षा करती है.
डॉक्टरों के मुताबिक, ओमिक्रॉन लहर में बच्चों में तेज बुखार, गले में दर्द, लूज मोशन, उल्टी जैसे लक्षण होते हैं. इनमें से ज्यादातर का इलाज ओपीडी स्तर पर होता है. मणिपाल हॉस्पिटल यसवंतपुर कर्नाटक में कंसल्टेंट पीडियाट्रिक एस चंद्रशेखर ने बताया कि कर्नाटक में अभी तक 15 बच्चों को ओपीडी में रखा गया है.
5 बच्चों को इसलिए अस्पताल में भर्ती कराया गया क्योंकि उनमें कोरोना के अलावा और भी गंभीर बीमारियां थीं. उन्होंने बताया कि बच्चे लक्षण आने के बाद दूसरे हफ्ते में ठीक हो रहे हैं. मैं माता पिता को सलाह देता हूं कि लक्षण आने के बाद खुद दवा न लेकर मेडिकल हेल्प लें.
दुनियाभर में बढ़ रहे बच्चों के अस्पताल में भर्ती होने के मामले
भारत अमेरिका की स्थिति पर नजर बनाए हुए है. साथ ही बच्चों में कोरोना के केसों पर नजर बनाए हुए है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, अमेरिका में 5 साल से कम उम्र के बच्चों के पॉजिटिव होने के बाद अस्पताल में भर्ती होने की दर हाल के हफ्तों में बढ़ी है. यह महामारी के शुरू होने के बाद से अपने उच्चतर स्तर पर है.
सीडीसी के डेटा के मुताबिक, दिसंबर में ओमिक्रॉन वैरिएंट के केस अमेरिका में फैलने शुरू हुए. इसके बाद से यहां हर 1 लाख बच्चों में 4 से ज्यादा अस्पताल में भर्ती हो रहे हैं. जबकि 5 से 17 के बच्चों की तुलना करें तो 1 लाख पर सिर्फ 1 बच्चा हॉस्पिटल में भर्ती हो रहा है.
अमेरिका में दिसंबर से पहले बच्चों के भर्ती होने की दर प्रति 1 लाख पर 2.5 थी. वहीं, 5 से 17 साल के बच्चों की दर तब भी 1 लाख पर 1 ही थी. यह डेटा अमेरिका के 14 राज्यों के 250 अस्पतालों से लिया गया है. भारत में मेडिकल एक्सपर्ट की तरह अमेरिका में भी डॉक्टर कोरोना पॉजिटिव बच्चों में अन्य स्वास्थ्य परिस्थितियों का हवाला दे रहे हैं. कोरोना वायरस की तुलना में ऐसे केस अधिक संवेदनशील हो जाते हैं.
क्या है अभिभावकों की चिंता?
दुनियाभर में बच्चों के अस्पताल में भर्ती होने की दर बढ़ने से अभिभावक भी चिंता में हैं. दिल्ली में एक साल की बच्ची की मां प्रिया घर में मेहमानों को लेकर ज्यादा सतर्क रहती हैं. उनका कहना है कि कोरोना की यह लहर बेहद संक्रामक नजर आ रही है. हमारे घर में सभी वयस्कों ने वैक्सीन की दोनों डोज ले ली हैं. ऐसे में हम मेहमानों से मास्क लगाए रखने की सलाह देते हैं.
उधर, सोनल का 16 साल का बच्चा कोरोना पॉजिटिव है. उसने हाल ही में वैक्सीन की पहली डोज ली थी. इसके दो दिन बाद उसकी कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आई है. बच्चे को काफी तेज बुखार, सिर दर्द और शरीर में दर्द जैसी शिकायतें हैं.