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विकास के पैमानों पर कैसा है पश्चिम बंगाल और गुजरात का प्रदर्शन

आर्थिक विकास को मापने के लिए जनसंख्या की औसत आय सबसे सामान्य पैमाना है. हमने दोनों राज्यों की प्रति व्यक्ति आय की तुलना की. आय की समानता के मामले में गुजरात और पश्चिम बंगाल भारतीय राज्यों में दो ध्रुवों की तरह हैं. 2018-19 में पश्चिम बंगाल की तुलना में गुजरात की प्रति व्यक्ति आय करीब दोगुनी से ज्यादा रही.

PM मोदी के साथ बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी PM मोदी के साथ बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी
दीपू राय
  • नई दिल्ली,
  • 25 नवंबर 2020,
  • अपडेटेड 3:03 PM IST
  • गुजरात की विकास दर अस्थिर, लेकिन बंगाल की तुलना में बेहतर
  • 2018-19 में बंगाल की तुलना में गुजरात की प्रति व्यक्ति आय करीब दोगुनी
  • बंगाल की आबादी का 31.8% हिस्से का शहरीकरण, गुजरात में 42.6%

आगामी पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के लिए भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने अपना चुनावी अभियान गुजरात के विकास “मॉडल” पर केंद्रित किया है. राज्य में उच्च विकास और दूसरे सामाजिक-आर्थिक मापदंडों की बेहतरी का दावा किया जा रहा है. लेकिन क्या विकास के मानक पैमाने इस दावे का समर्थन करते हैं? इंडिया टुडे की डेटा इंटेलिजेंस यूनिट (DIU) ने विकास विभिन्न पैमानों पर दोनों राज्यों की तुलना की है.

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आर्थिक प्रदर्शन
पश्चिम बंगाल और गुजरात उन छह राज्यों में हैं जो भारत के आर्थिक उत्पादन में आधा योगदान देते हैं. गुजरात देश के सबसे धनी राज्यों में से एक है. भारत की कुल आबादी का सिर्फ 4.7 फीसदी (UDAI 2019) लोग  गुजरात में रहते हैं, लेकिन सभी राज्यों के कुल घरेलू उत्पादन में गुजरात का योगदान 7.9 प्रतिशत है.

पश्चिम बंगाल सबसे घनी आबादी वाले राज्यों में से एक है जहां देश की 7.2 प्रतिशत आबादी रहती है और ये घरेलू उत्पादन या सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) का 5.7 प्रतिशत योगदान देता है.

सभी मानकों में GSDP सबसे व्यापक पैमाना जो किसी राज्य की समूची प्रगति को नापने के लिए प्राथमिक बेंचमार्क के रूप में जाना जाता है.

आंकड़ों से पता चलता है कि गुजरात की विकास दर अस्थिर है, लेकिन पश्चिम बंगाल की तुलना में बेहतर है. 2011 के बाद जीएसडीपी में गुजरात की हिस्सेदारी धीरे-धीरे बढ़ी है, जबकि पश्चिम बंगाल की हिस्सेदारी में  गिरावट आई है.

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आर्थिक विकास को मापने के लिए जनसंख्या की औसत आय सबसे सामान्य पैमाना है. हमने दोनों राज्यों की प्रति व्यक्ति आय की तुलना की. आय की समानता के मामले में गुजरात और पश्चिम बंगाल भारतीय राज्यों में दो ध्रुवों की तरह हैं. 2018-19 में पश्चिम बंगाल की तुलना में गुजरात की प्रति व्यक्ति आय करीब दोगुनी से ज्यादा रही. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया  (RBI) के आंकड़ों के अनुसार, इस अवधि में गुजरात की प्रति व्यक्ति शुद्ध आय 1,53,495 रुपये प्रति वर्ष थी, जबकि पश्चिम बंगाल की प्रति व्यक्ति आय 67,300 रुपये थी.

मुद्रास्फीति के प्रभाव को हटाने के लिए हमने इन आंकड़ों के स्थिर मूल्य पर विचार किया है. गुजरात हमेशा से बाकी भारत के बराबर या उससे आगे रहा है. अगर हम इन दोनों राज्यों की पिछले 15 वर्षों की औसत प्रति व्यक्ति आय देखें, तो गुजरात अब भी 82,664 रुपये के साथ आगे है, जबकि पश्चिम बंगाल की प्रति व्यक्ति काफी पीछे यानी 43,345 रुपये है जो कि गुजरात का लगभग आधा है.

इसका मतलब है कि इन वर्षों में गुजरात में एक व्यक्ति ने औसतन 82,664 रुपये कमाए, जबकि पश्चिम बंगाल में एक व्यक्ति ने सिर्फ 43,345 रुपये कमाए.

अगर प्रति व्यक्ति आय को विकास का पैमाना माना जाए तो गुजरात सबसे विकसित और पश्चिम बंगाल सबसे कम विकसित राज्य होगा. हालांकि, इनकम मैथड में भी कुछ कमियां हैं क्योंकि यह हमें ये नहीं बताती है कि राज्य की जनसंख्या के बीच इस आय का वितरण कैसे होता है.

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यहां विकास के दूसरे पैमानों पर भी निगाह डालते हैं:

राजस्व की स्थिति

जीएसडीपी के प्रतिशत के संदर्भ में राज्यों के आर्थिक प्रदर्शन की तुलना राजकोषीय घाटे, राज्य का टैक्स रेवेन्यू और राज्य पर कर्ज जैसे मापदंडों से की जाती है. इस पैमाने पर गुजरात पश्चिम बंगाल से बेहतर प्रदर्शन कर रहा है. वित्त वर्ष 2019 में गुजरात (16%) की तुलना में पश्चिम बंगाल पर भारी भरकम और चुनौतीपूर्ण कर्ज (34.8%) था. नॉन स्पेशल कैटेगरी (NSC) के राज्यों के विपरीत पश्चिम बंगाल का कर्ज दो-दशकों (FY 2000-01) में तेजी से बढ़ा है. मार्च 2017 के अंत तक बंगाल के जीएसडीपी में कर्ज का अनुपात (33.8) सबसे ज्यादा था.

जहां तक राजकोषीय घाटे का सवाल है, पश्चिम बंगाल की स्थिति गुजरात की तुलना में काफी खराब है. हालांकि, हाल ही में राज्य की राजकोषीय स्थिति में कुछ सुधार दिखा है.

पश्चिम बंगाल में राज्य के खर्चों के लिए अपना खुद का टैक्स रेवेन्यू उत्पन्न करने को लेकर ढीला रवैया रहा है. लेकिन राज्य ने वित्त वर्ष 2019 में सुधार दर्ज किया और जीएसडीपी का 5.4 प्रतिशत राजस्व उत्पादन हुआ, जो गुजरात (5.3 प्रतिशत) से थोड़ा बेहतर है.

बेरोजगारी

बेरोजगारी अर्थव्यवस्था के स्वरूप पर निर्भर करती है. मिसाल के तौर पर, 2018-19 में पश्चिम बंगाल की अर्थव्यवस्था में प्राथमिक क्षेत्र (कृषि और संबद्ध सेवाओं) की हिस्सेदारी 21 फीसदी थी, जबकि गुजरात में ये 15 फीसदी रही. लेकिन 2018-19 में गुजरात की अर्थव्यवस्था का 40 फीसदी हिस्सा द्वितीयक क्षेत्र (विनिर्माण या औद्योगिक गतिविधि) पर निर्भर रहा, जबकि पश्चिम बंगाल की अर्थव्यवस्था में इसका योगदान सिर्फ 25 फीसदी था. आश्चर्यजनक रूप से पश्चिम बंगाल के जीएसडीपी में तृतीयक क्षेत्र  (सेवाएं-बैंकिंग वगैरह) का योगदान 51 फीसदी रहा जबकि गुजरात में यह सिर्फ 31 फीसदी है.

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गुजरात में शहरीकरण ज्यादा है जहां पर 42.6% लोग शहरों और कस्बों में रहते हैं, जबकि पश्चिम बंगाल की आबादी का सिर्फ 31.8% हिस्से का शहरीकरण (राष्ट्रीय औसत 31.2 प्रतिशत है) हुआ है. आरबीआई के आंकड़ों के अनुसार, पश्चिम बंगाल में शहरी रोजगार दर प्रति 1,000 लोगों पर 49 है. गुजरात में ये सिर्फ 32 है. हालांकि, ग्रामीण बेरोजगारी की दर दोनों राज्यों में कम है. 2018-19 में पश्चिम बंगाल में ग्रामीण बेरोजगारी दर 1000 लोगों पर 35 रही तो गुजरात में 33 रही. 

गुजरात की मासिक बेरोजगारी दर मार्च 2020 में पश्चिम बंगाल के स्तर से लगभग मेल खाती है. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के एक सर्वे के अनुसार, मार्च 2020 में पश्चिम बंगाल की बेरोजगारी दर 6.9 प्रतिशत रही जो गुजरात के लगभग बराबर है.

गरीबी 

आधिकारिक गरीबी रेखा का निर्धारण राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (NSSO) द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के आधार पर नीति आयोग करता है. NSSO के आंकड़े उस सर्वे पर आधारित होते हैं जो उपभोक्ताओं के  व्यय के बारे में किए जाते हैं. ये सर्वे हर पांच साल में होता है. दो दशक (1999-2000 के बाद) से NSSO गरीबी के आंकड़ों का अनुमान लगाने के लिए मिक्स्ड रिफरेंस पीरियड (MRP) नाम की तकनीक का इस्तेमाल करता है. इसमें देखा जाता है कि पिछले एक साल में कपड़े, जूते, सामान की कितनी खपत हुई. शिक्षा और संस्थागत स्वास्थ्य पर कितना खर्च हुआ. इसके अलावा, पिछले एक महीने (30 दिन) में इन्हीं वस्तुओं पर कितना खर्च हुआ.

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इस पैमाने में पश्चिम बंगाल में प्रति एक लाख की आबादी पर 185 लोग गरीब हैं. इसकी तुलना में गुजरात में प्रति एक लाख की आबादी पर 102 लोग गरीब हैं.

लेकिन आय भी पूरी तरह से पर्याप्त पैमाना नहीं है. पैसे से प्रदूषण मुक्त वातावरण नहीं खरीदा जा सकता या पैसा कोविड-19 जैसी बीमारियों से रक्षा नहीं कर सकता. यहां पर सरकारी खर्च महत्वपूर्ण हो जाता है.

प्रमुख सेक्टर्स पर खर्च   

राज्य के बजट दस्तावेज बताते हैं कि गुजरात सरकार ऊर्जा पर काफी ज्यादा (6.1% बनाम 1.9%) खर्च कर रही है. जबकि पश्चिम बंगाल ने पिछले पांच वर्षों में अपने बजट का बड़ा हिस्सा, यानी 9.4% सामाजिक सुरक्षा पर खर्च किया है. इसके उलट गुजरात ने सामाजिक सुरक्षा पर सिर्फ 0.8% खर्च किया है. 2015-20 की अवधि के दौरान बाकी राज्यों ने अपने बजट का औसतन 6.2% ऊर्जा पर और 4.3% सामाजिक सुरक्षा पर खर्च किया है. 

पश्चिम बंगाल ग्रामीण विकास पर ज्यादा ध्यान देते हुए 10.8% जबकि गुजरात सिर्फ 3.4% खर्च कर रहा है. इसी तरह शिक्षा पर बंगाल 17% और गुजरात 15% खर्च कर रहा है. हालांकि, हाउसिंग पर पश्चिम बंगाल (0.7%) की तुलना में गुजरात (1.8%) ज्यादा खर्च कर रहा है. एससी, एसटी और ओबीसी के कल्याण के लिए भी गुजरात (2.6%) का खर्च पश्चिम बंगाल (1.2%) से ज्यादा है.

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पिछले पांच साल में बाकी राज्यों ने अपने बजट का शिक्षा क्षेत्र पर औसतन 16 प्रतिशत, ग्रामीण विकास पर 6 प्रतिशत और एससी, एसटी, ओबीसी के कल्याण पर 2.7 प्रतिशत खर्च किया है.

स्वास्थ्य और परिवार कल्याण पर गुजरात (6%) और पश्चिम बंगाल (5.4%) पिछले पांच साल से लगभग बराबर खर्च कर रहे हैं. बाकी राज्य भी स्वास्थ्य और परिवार कल्याण पर औसतन 5.3% खर्च करते हैं. 

सामाजिक विकास
सामाजिक विकास के एक पैमाने के रूप में हमने ये आंकड़ा सतत विकास लक्ष्य (SDGs) भारत सूचकांक 2019-20 से लिया है जिसे नीति आयोग ने तैयार किया है और जिसे सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन (MoSPl) मंत्रालय का भी समर्थन है. ये सूचकांक गरीबी से लेकर स्वास्थ्य तक 17 सतत विकास लक्ष्यों की प्रगति को मापता है.

इस सूचकांक पर विभिन्न राज्यों का प्रदर्शन 50 से 70 अंकों तक रहा. गुजरात इस सूचकांक में भारत के कुल स्कोर से चार अंक ज्यादा, 64 अंकों के साथ नौवें स्थान पर रहा. इसके विपरीत पश्चिम बंगाल 60 अंकों के साथ 14वें स्थान पर रहा जो कि राष्ट्रीय स्कोर के बराबर रहा. हालांकि, इस सूचकांक में केरल सबसे अच्छा और बिहार सबसे खराब स्थान पर रहा.

कच्चे घरों में रहने वाले परिवारों की संख्या पश्चिम बंगाल में गुजरात की तुलना में तीन गुना अधिक है. 

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बढ़ती कृषि उत्पादकता के बावजूद कई राज्य अब भी खाद्य और स्वास्थ्य चुनौतियों का सामना कर रहे हैं. गर्भावस्था और प्रसव के दौरान मरने वाली महिलाओं की संख्या पश्चिम बंगाल में ज्यादा है. यहां मातृ मृत्यु का अनुपात- प्रति 1 लाख जन्म पर मौतों की संख्या- 94 है जबकि गुजरात में 87 है.

पांच साल की उम्र से पहले मरने वाले बच्चों की संख्या पश्चिम बंगाल के मुकाबले गुजरात में ज्यादा है. बंगाल में प्रति 1,000 जन्म पर 32 बच्चों की मौत होती है, जबकि गुजरात में ये संख्या 44 है.

हालांकि, प्रति 10,000 लोगों की आबादी पर हेल्थ वर्कर्स की संख्या बंगाल के मुकाबले गुजरात में करीब दोगुनी है. गुजरात में प्रति 10 हजार की आबादी पर 43 फिजीशियन/नर्स/दाई उपलब्ध हैं, जबकि बंगाल में ये संख्या सिर्फ 27 है.   

स्वास्थ्य सूचकांक

रिजर्व बैंक के मुताबिक, पश्चिम बंगाल स्वास्थ्य सेवाओं पर सिर्फ 988 रुपये प्रति व्यक्ति खर्च करता है, जबकि बाकी सभी राज्यों का स्वास्थ्य पर प्रति व्यक्ति खर्च औसतन 1,482 रुपये है.

विश्व बैंक और स्वास्थ्य मंत्रालय के सहयोग से नीति आयोग द्वारा तैयार किया गया स्वास्थ्य सूचकांक 2019 इन दोनों राज्यों की प्रगति को मापने का एक और जरिया है. ये इंडेक्स दर्शाता है कि गुजरात और पश्चिम बंगाल के प्रदर्शन में काफी अंतर है.

ये सूचकांक 23 स्वास्थ्य मानकों पर आधारित है, जिसमें राज्यों की मृत्यु दर, कुल प्रजनन दर और लिंगानुपात शामिल हैं. इस सूचकांक में 61.99 अंकों के साथ गुजरात ने चौथी रैंक हासिल की थी, जबकि पश्चिम बंगाल को 57.17 के स्कोर के साथ 11वां स्थान मिला था. इस सूचकांक में 74.01 अंकों के साथ केरल सबसे अव्वल रहा, जबकि उत्तर प्रदेश 28.61 अंक के साथ सबसे नीचे रहा.

इस सभी सामाजिक-आर्थिक और स्वास्थ्य मानकों से पता चलता है कि पश्चिम बंगाल गुजरात से पीछे है. बंगाल बीजेपी के अध्यक्ष दिलीप घोष ने बंगाल के लिए गुजरात मॉडल की बात कही है.

घोष ने कहा, "दीदी अक्सर कहती हैं कि हम बंगाल को गुजरात बनाना चाहते हैं. मैं कहूंगा कि हम जरूर ऐसा करेंगे और बंगाल को एक विकसित राज्य में तब्दील करेंगे. हमारे लोग काम के लिए वहां नहीं जाएंगे. हम सुनिश्चित करेंगे कि लोगों को यहां रोजगार मिले."

इसके जवाब में टीएमसी ने राज्य में सामाजिक सौहार्द पर जोर दिया. अर्बन डेवलपमेंट मंत्री फरहाद हालिम ने कहा, "बंगाल के लोग शांति से रह रहे हैं, और वे नहीं चाहते कि हमारा राज्य गुजरात बने."

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