
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ AIADMK महासचिव ई पलानीस्वामी की बैठक के बाद बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष अन्नामलाई का तमिल पार्टी के खिलाफ रुख नरम पड़ गया है. अन्नामलाई ने कहा कि उन्होंने जमीनी स्तर पर बारीके से विश्लेषण के बाद पार्टी हाईकमान को एक विस्तृत रिपोर्ट सौंप दी है. अन्नामलाई ने कहा कि मैंने जो रिपोर्ट में कहा, उसे यहां बताना मेरे लिए गलत होगा.
तमिलनाडु की भलाई जरूरी
अन्नामलाई ने कहा कि हमने इस बारे में गहराई से और विस्तार से बात की है कि तमिलनाडु कैसे आगे बढ़ेगा और जनता की भलाई के लिए क्या जरूरी है. मैं गठबंधन के बारे में बात नहीं करना चाहता. हमारे गृह मंत्री ने इस बारे में बात की है और उन्हीं के बयान को आखिरी मान जाए. उन्होंने यह भी दावा किया कि उनका किसी पार्टी या किसी नेता के खिलाफ कोई व्यक्तिगत गुस्सा या लड़ाई नहीं है.
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प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष अन्नामलाई ने कहा कि मैं हमेशा अपने रुख के बारे में खुला रहा हूं. जब मैंने दिल्ली में बात की थी, तो मैंने कहा था कि मैं कैडर के तौर पर भी काम करने के लिए तैयार हूं और अपने शब्दों से कभी पीछे नहीं हटूंगा. इस बीच बीजेपी और AIADMK के शीर्ष सूत्रों ने बताया है कि बीजेपी अब AIADMK को एनडीए में वापस लाने पर अड़ी हुई है, भले ही इसके लिए उसे राज्य के किसी प्रमुख नेता की बलि क्यों न देनी पड़े.
इस पूरे घटनाक्रम को समर्थन देने वालों में केए सेंगोट्टैयन का हाल ही में हुआ दिल्ली दौरा भी शामिल है. सेंगोट्टैयन 2017 में जयललिता की मौत के बाद सीएम पद की दौड़ में थे. सूत्रों ने बताया कि सेनगोट्टैयन अपने जिले इरोड में पार्टी पदाधिकारियों की नियुक्ति में ईपीएस के फैसले से संतुष्ट नहीं थे, जिसके कारण वे पार्टी के महत्वपूर्ण कार्यक्रमों में हिस्सा नहीं ले रहे थे.
बीजेपी खोज रही बैकअप कार्ड
दिलचस्प बात यह है कि सेनगोट्टैयन ने दिल्ली का दौरा किया और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से मुलाकात की, जिसके बाद ईपीएस ने गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की. कहा जाता है कि सेनगोट्टैयन को 'चिन्नम्मा' यानी शशिकला का आशीर्वाद हासिल है और बीजेपी फिलहाल उन्हें बैकअप कार्ड के रूप में रख सकती है.
बता दें कि साल 2023 में सीएन अन्नादुरई और जयललिता पर अन्नामलाई के बयानों के बाद ही AIADMK ने एनडीए से अलग होने का फैसला किया था.
हालांकि अब 2026 के तमिलनाडु विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी और AIADMK फिर से साथ आ सकते हैं. लोकसभा चुनाव में दोनों पार्टियों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था जिसका फायदा डीएमके की अगुवाई वाले गठबंधन को हुआ और राज्य की सभी 39 सीटों पर स्टालिन की पार्टी और उनके सहयोगी दलों को जीत मिली थी.