
तेलंगाना के श्रीसैलम लेफ्ट बैंक कैनाल (एसएलबीसी) सुरंग के 22 फरवरी को आंशिक रूप से ढहने के लगभग 16 दिनों बाद, एक शख्स का शव बरामद किया गया. बाकी फंसे हुए मजदूरों की अभी तलाश जारी है, जबकि उनके परिवारों की चिंता दिन-ब-दिन बढ़ रही है. सुरंग के भीतर कीचड़ और मलबा जमा होने के साथ-साथ पानी का रिसाव, बचाव अभियान में बड़ी चुनौती बन रहा है.
इंडिया टुडे ने इस दुर्घटना के पीछे के कारणों को समझने के लिए CAG की एक साल पुरानी रिपोर्ट और जयप्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड द्वारा कमीशन की गई पांच साल पुरानी जियोलॉजिकल एनालिसिस की समीक्षा की.
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CAG रिपोर्ट में क्या कहा गया है?
सीएजी रिपोर्ट में बताया गया है कि परियोजना को बिना किसी वैज्ञानिक अध्ययन या विश्लेषण के आगे बढ़ाया गया था. बिना प्लानिंग के शुरू की गई निर्माण योजना और वैज्ञानिक मूल्यांकन की कमी की वजह से सुरंग की स्ट्रक्चरल वीकनेस शुरू हो गई. परियोजना में ठेकेदारों का लगातार बदलाव से भी सुरंग की गुणवत्ता प्रभावित हुई.
टनल क्षेत्र में फॉल्टलाइन और फ्रैक्चर जोन!
सीएजी रिपोर्ट में योजना प्रक्रिया में कई खामियों की ओर इशारा किया गया, जैसे कि सुरंग बोरिंग मशीन (टीबीएम) से लेकर मैनुअल ड्रिल और ब्लास्ट के तरीकों तक में बदलाव, जिसके कारण संरचना में जोखिम बढ़ गया. अंबरग टेक एजी द्वारा तैयार की गई जियोग्राफिकल रिपोर्ट में सुरंग की स्थिति को "टूटी-फूटी और शीयर" के रूप में दिखाया गया था और इस क्षेत्र में फॉल्टलाइन और फ्रैक्चर जोन के मौजूद होने का भी हवाला दिया था.
सुरंग एक्सपर्ट क्या कहते हैं?
सुरंग विशेषज्ञ सीपी राजेंद्रन का कहना है कि बार-बार की गई खुदाई के कारण चट्टान की संरचना में तनाव होता है, जिससे स्थिरता प्रभावित होती है और यह ढह जाता है. सुरंग का निर्माण भी भारत सरकार के सुरंग कार्य संबंधी मानकों के मुताबिक नहीं किया गया था, जो इमरजेंसी विंडो और सुरक्षा स्थानों की सिफारिश करता है.
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हालांकि, भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) द्वारा जारी सुरक्षा कोड के मुताबिक, सुरंगों में नियमित दूरी पर इमरजेंसी एग्जिट और सुरक्षा मार्ग होने चाहिए थे. एसएलबीसी मामले में सिर्फ एक ही एंट्री और एग्जिट पॉइंट्स होने की वजह से, फंसे हुए मजदूरों तक पहुंचने में मुश्किलें हो रही है. रेस्क्यू आपरेशन अभी भी जारी है.