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देश में इस वक्त देश का ही नाम बदलने की चर्चा सबसे तेज है. इस चर्चा को हवा दी राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के निमंत्रण पत्र ने. दरअसल जी-20 समिट के लिए 9 सितंबर को होने वाले रात्रि भोज के लिए जो निमंत्रण पत्र राष्ट्रपति भवन की तरफ से देश के नेताओं को भेजे गए हैं, उनमें आमतौर पर इस्तेमाल होने वाले 'प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया' शब्द को बदला गया है. इस बार के निमंत्रण पत्र में प्रेसिडेंट ऑफ भारत शब्द का इस्तेमाल किया गया है. अब पूरा विवाद इसी पर है.
ऐसे में अटकलें भी लगाई जा रही हैं कि संसद के विशेष सत्र में INDIA का नाम बदलकर भारत किया जा सकता है. विपक्षी सदस्यों ने इस पर नाराजगी जाहिर की और कुछ नेताओं ने कहा कि सत्तारूढ़ दल I.N.D.I.A. गठबंधन से चिंतित है. हालांकि, बीजेपी के राज्यसभा सांसद हरनाथ सिंह यादव ने कहा, पूरा देश मांग कर रहा है कि हमें 'इंडिया' की जगह 'भारत' शब्द का इस्तेमाल करना चाहिए. 'इंडिया' शब्द अंग्रेजों द्वारा हमें दी गई एक गाली है. 'भारत' शब्द हमारी संस्कृति का प्रतीक है. मैं चाहता हूं कि हमारे संविधान में बदलाव हो और इसमें 'भारत' शब्द जोड़ा जाए.
कैसे बदल सकते हैं देश का नाम?
यहां आपको यह भी जान लेना जरूरी है कि देश का नाम बदलने की प्रक्रिया क्या है? इस चर्चा के बीच हमने लोकसभा के पूर्व महासचिव, संविधान के विशेषज्ञ और सीनियर एडवोकेट पीडीटी आचारी से पूछा कि आखिर इसकी प्रक्रिया क्या है? आचारी के मुताबिक सरकार अगर संविधान में संशोधन कर 'इंडिया दैट इज भारत शैल बी यूनियन ऑफ स्टेट्स' को बदल कर सिर्फ भारत करना चाहती है तो संविधान के अनुच्छेद 1 और 52 में प्रेजिडेंट ऑफ इंडिया, वाइस प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया, अटॉर्नी जनरल ऑफ इंडिया जैसे पदनाम उनके ऑफिस को इंगित करते हैं.
संविधान में हिंदी अनुवाद में नहीं है INDIA का जिक्र
हालांकि संविधान के आधिकारिक हिंदी अनुवाद में इन पदनाम का जिक्र भारत के राष्ट्रपति, भारत के उपराष्ट्रपति, भारत के मुख्य न्यायाधीश आदि के तौर पर ही किया गया है. यानी संविधान को अगर हिंदी भाषा में पढ़ेंगे तो उसमें इंडिया का जिक्र नहीं है सिर्फ भारत ही है. अगर सरकार इसमें सिर्फ भारत को ही मान्यता देना चाहती है तो तय प्रक्रिया के मुताबिक संविधान में बदलाव कर घोषणा करनी होगी INDIA को भारत के नाम से बुलाया जाएगा.
50 फीसदी राज्यों की सहमति जरूरी
अनुच्छेद 3 और 239AA जैसे कई अनुच्छेद हैं, जिनमें बदलाव के लिए राज्यों की सम्मति आवश्यक नहीं है. लेकिन संविधान में उन अनुच्छेदों का स्पष्ट जिक्र है जिनमें संशोधन के लिए संसद के दोनों सदनों से अलग-अलग दो तिहाई बहुमत से पारित होना आवश्यक है. बहुमत के लिए सदन की कुल संख्या का स्पष्ट बहुमत यानी आधे से ज्यादा और उपस्थित सदस्यों का दो तिहाई बहुमत से पारित होना आवश्यक है. इसके बाद आधे से ज्यादा यानी कुल राज्यों में से पचास फीसद से एक ज्यादा राज्यों की सम्मति आवश्यक होती है.
कैसे तय हुआ देश का आधिकारिक नाम?
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 1 कहता है, 'इंडिया, जो कि भारत है, राज्यों का एक संघ होगा.' अनुच्छेद 1 को लेकर पहले संविधान सभा में चर्चा की गई है और 2012 और 2014 में निजी सदस्य बिल भी पेश किए गए हैं. संविधान सभा ने तत्कालीन मसौदा संविधान के अनुच्छेद 1 पर व्यापक रूप से बहस की थी. बता दें कि संविधान सभा के सदस्य एच. वी. कामथ ने 18 सितंबर 1949 को बहस शुरू की और अनुच्छेद 1 में संशोधन का प्रस्ताव रखा था, जिसमें भारत या वैकल्पिक रूप से हिंद को देश के प्राथमिक नाम के रूप में रखा गया और अंग्रेजी भाषा में इंडिया को नाम के रूप में प्रस्तावित किया गया.
सबसे प्राचीन नाम- भारत
संसदीय रिकॉर्ड से पता चलता है कि कामथ ने इस बात पर जोर दिया था कि भारतीय गणराज्य को उचित नाम देने के लिए कई सुझाव दिए गए थे और उन्होंने भारत, हिंदुस्तान, हिंद और भारतभूमि या भारतवर्ष के प्रमुख सुझावों पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि जो लोग भारत या भारतवर्ष या भारतभूमि का दावा करते हैं, वे इस तथ्य पर अपना रुख रखते हैं कि यह इस भूमि का सबसे प्राचीन नाम है. कामथ ने भारत नाम की उत्पत्ति के बारे में विस्तार से बताया, लेकिन अंबेडकर ने उन्हें बीच में रोकते हुए पूछा कि क्या इन सबका पता लगाना आवश्यक है. इस पर कामथ ने जवाब दिया कि सदन के कामकाज को नियंत्रित करना अंबडेकर का काम नहीं है.
संविधान सभा में भारत का पक्ष
चर्चा के दौरान सेठ गोविंद दास ने अनुच्छेद 1 में शब्दों का विरोध किया और कहा कि 'इंडिया, यानी भारत' किसी देश के नाम के लिए सुंदर शब्द नहीं हैं. उन्होंने सुझाव दिया कि 'भारत को विदेशों में भी इंडिया के नाम से जाना जाता है.' दास ने विस्तार से बताया कि इंडिया शब्द हमारी प्राचीन पुस्तकों में नहीं मिलता है. इसका प्रयोग तब शुरू हुआ जब यूनानी भारत आए. उन्होंने वेदों, उपनिषदों, ब्राह्मणों और महाभारत का हवाला देते हुए कहा था कि हमें उनमें भारत नाम का उल्लेख मिलता है. उन्होंने ह्वेन-त्सांग नाम के चीनी यात्री को भी उद्धृत किया और अपनी यात्रा पुस्तक में इस देश का संदर्भ भारत के रूप में दिया. उनका विचार था कि हमें अपने देश को ऐसा नाम देना चाहिए जो हमारे इतिहास और हमारी संस्कृति के अनुरूप हो. उन्होंने 'भारत माता की जय' का नारा बुलंद करके महात्मा गांधी के नेतृत्व में हमारी आजादी की लड़ाई की ओर रुख किया.
भारत नाम के एक अन्य प्रस्तावक कल्लूर सुब्बा राव थे, जिन्होंने कहा कि वह दिल से भारत नाम का समर्थन करते हैं, जो कि प्राचीन है. उन्होंने कहा कि भारत नाम ऋग्वेद (ऋग् 3, 4, 23.4) में है. संसदीय रिकॉर्ड में उन्हें इस प्रकार उद्धृत किया गया है, 'इंडिया नाम सिंधु (सिंधु नदी) से आया है और अब हम पाकिस्तान को हिंदुस्तान कह सकते हैं क्योंकि सिंधु नदी वहीं है.' सिंध हिंद बन गया है. जैसा कि संस्कृत में स का उच्चारण ह के रूप में किया जाता है. यूनानियों ने हिंद को इंड के रूप में उच्चारित किया. इसके बाद यह अच्छा और उचित है कि हम भारत को भारत के रूप में संदर्भित करें. बताते चलें कि बी.एम गुप्ते, राम सहाय, कमलापति त्रिपाठी और हरगोविंद पंत अन्य संविधान सभा सदस्य थे जिन्होंने भारत का नाम भारत रखे जाने का पुरजोर समर्थन किया.
भारत के पक्ष में नहीं पड़े वोट
तो वहीं एक अन्य सदस्य कमलापति त्रिपाठी ने कहा, 'अगर हमारे सामने जो प्रस्ताव पेश किया गया है, उसमें वह शब्द जरूरी होते तो 'भारत यानी इंडिया' शब्द का इस्तेमाल करना ज्यादा उचित होता.' जब कामथ के संशोधन को मतदान के लिए रखा गया, तो सभी तर्क गिर गए. सभा हाथ उठाकर विभाजित हो गई. भारत के पक्ष में 38 वोट पड़े और 'भारत यानी इंडिया' के पक्ष में 51. प्रस्तावित संशोधन पराजित हो गया और 'इंडिया, दैट इज भारत' बरकरार रहा.
2012 में कांग्रेस ने पेश किया 'भारत' नाम रखने का विधेयक
इसके बाद 9 अगस्त 2012 को कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य शांताराम नाइक ने राज्यसभा में एक निजी विधेयक पेश किया. उन्होंने तीन बदलावों का प्रस्ताव रखा:
1) संविधान की प्रस्तावना में 'इंडिया' शब्द के स्थान पर 'भारत' शब्द रखा जाए.
2) 'इंडिया, दैट इज भारत' वाक्यांश के स्थान पर एकल शब्द 'भारत' रखा जाए.
3) संविधान में जहां भी 'इंडिया' शब्द आता है, वहां 'भारत' शब्द रख दिया जाए.
इस विधेयक के कारणों के बारे में कहा गया कि INDIA एक क्षेत्रीय अवधारणा को दर्शाता है, जबकि 'भारत' सिर्फ क्षेत्रों से कहीं ज्यादा का प्रतीक है. जब हम अपने देश की प्रशंसा करते हैं तो हम 'भारत माता की जय' कहते हैं, न कि 'INDIA की जय.' इसे बदलने के लिए कई आधार हैं. यह नाम देशभक्ति की भावना भी पैदा करता है और इस देश के लोगों में जोश भर देता है. इस संबंध में; "जहाँ डाल-डाल पर सोने की चिड़ियाँ बनाती हैं बसेरा वो भारत देश है मेरा", एक लोकप्रिय शब्द है गाना प्रासंगिक है.
2014 में योगी आदित्यनाथ ने पेश किया निजी विधेयक
2014 में, योगी आदित्यनाथ ने संविधान में 'इंडिया' शब्द को 'हिंदुस्तान' से बदलने के लिए लोकसभा में एक निजी विधेयक भी पेश किया था. विधेयक में संविधान में जहां कहीं भी इंडिया शब्द आता है, उसकी जगह पर हिंदुस्तान शब्द का प्रस्ताव दिया गया. उनके विधेयक में अनुच्छेद 1 में संशोधन करने का प्रस्ताव था.
इस विधेयक के कारणों के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि हमारे देश का प्राचीन और पारंपरिक नाम भारत और हिंदुस्तान है. ये दोनों नाम ब्रिटिश-पूर्व काल में प्रचलित थे. ब्रिटिश शासन की स्थापना के बाद अंग्रेजों ने 'इंडिया' नाम का प्रयोग किया जो उनके अपने देश में प्रचलित था. संविधान निर्माताओं ने देश के प्राचीन नाम 'भारत' को मान्यता दी और उसे संविधान में उचित स्थान दिया. उन्होंने कहा था अंग्रेजी नाम की लोकप्रियता के कारण हमारे देश का पारंपरिक नाम 'हिन्दुस्तान' छूट गया है. यह विधेयक हमारे देश का नामकरण 'इंडिया, दैट इज भारत' से बदलकर 'भारत, दैट इज हिंदुस्तान' करके संविधान में संशोधन होना चाहिए. योगी द्वारा लाए गए विधेयक में कहा गया था कि इंडिया शब्द गुलामी के प्रतीक को दर्शाता है और इस प्रकार यह हमारे संविधान से निकाले जाने योग्य है.
हालांकि अब संसद के आगामी विशेष सत्र को देखते हुए यह देखना दिलचस्प होगा कि यह संसद INDIA का नाम भारत रखने की बहस को कैसे संभालती है.