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क्या है ताजमहल का सच? सुप्रीम कोर्ट में असली इतिहास पता करने के लिए याचिका दाखिल

प्रेम की अमर निशानी यानी ताजमहल का सच आखिर क्या है? अब इसकी जिम्मेदारी सुप्रीम कोर्ट को दे दी गई है. दरअसल ताजमहल के असली इतिहास को जानने के लिए एक याचिका अदालत में दाखिल की गई है, जिसमें एक फैक्ट फाइंडिंग कमेटी बनाने का आदेश देने का आग्रह किया गया है.

ताज महल का एक मनोरम दृश्य (File Photo) ताज महल का एक मनोरम दृश्य (File Photo)
संजय शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 30 सितंबर 2022,
  • अपडेटेड 7:48 PM IST

दुनिया के 7 अजूबों में से एक और प्रेम की अमिट निशानी के तौर पर मशहूर आगरा के विश्व प्रसिद्ध ताजमहल का असली इतिहास क्या है? संभव है कि बहुत जल्द इससे पर्दा उठे या कोई नई बात सामने आए. वजह, सुप्रीम कोर्ट में इसे लेकर एक याचिका दाखिल की गई है, जिसमें ताजमहल के असली सच को जानने के लिए एक फैक्ट फाइंडिंग कमेटी बनाने का आदेश देने के लिए कहा गया है.

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डॉ. रजनीश सिंह ने अपनी याचिका में सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि वो प्रसिद्ध ताजमहल के इतिहास का पता लगाने के लिए फैक्ट फाइंडिंग कमेटी बनाने का आदेश दे. अब देखना ये भी है कि सुप्रीम कोर्ट इस याचिका को स्वीकार करता है या नहीं? 

इलाहाबाद हाईकोर्ट कर चुका है खारिज

डॉ. रजनीश सिंह ने अपनी याचिका में कहा है कि अब तक इस बात का कोई वैज्ञानिक सबूत नहीं है कि मूल रूप से ताजमहल शाहजहां ने बनवाया था. सुप्रीम कोर्ट जाने से पहले डॉ. रजनीश सिंह यही याचिका लेकर उत्तर प्रदेश की इलाहाबाद हाई कोर्ट गए थे. वहां पर उनकी याचिका खारिज कर दी गई थी और अब सुप्रीम कोर्ट में उन्होंने हाई कोर्ट के इसी फैसले को चुनौती दी है.

डॉ. रजनीश सिंह ने जब इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी, तो कोर्ट से ताजमहल के तहखाने के कमरों को खुलवा कर सत्य और तथ्य का पता लगाने की गुहार की थी. याचिका में कहा था कि ताजमहल का निर्माण मुगल बादशाह शाहजहां द्वारा अपनी बेगम मुमताज महल के मकबरे के तौर पर 1631 से 1653 के दरम्यान 22 वर्षों में कराया गया था. लेकिन ये उस दौर के इतिहास में बयान की गई बातें भर हैं. इस बात को साबित करने का कोई वैज्ञानिक प्रमाण सामने नहीं है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ताजमहल के 22 कमरों को खोलने की मांग वाली याचिका खारिज कर दी थी.

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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लगाई थी फटकार

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जब डॉ. रजनीश सिंह की याचिका को खरिज किया था, तब उनसे कहा था कि आपको जिस टॉपिक के बारे में पता नहीं है, उस पर रिसर्च कीजिए. जाइए इस विषय पर एमए कीजिए,पीएचडी कीजिए. इस कवायद में अगर कोई संस्थान आपको रिसर्च नहीं करने देता है तब हमारे पास आइएगा. इसके बाद याचिका खारिज कर दी गई. उस आदेश को डॉ. रजनीश सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है.
 

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