
26 जनवरी को लाल किले पर हुई ट्रैक्टर परेड और हिंसा के बाद आंदोलन लगभग खत्म होने की कगार पर था, लेकिन 29 जनवर को राकेश टिकैत के 'आंसू' रंग लाए और आंदोलन को फिर खड़ा कर दिया. टिकैत के आंसुओं ने न सिर्फ आंदोलन को खत्म होने से बचाया, बल्कि उन्हें भी किसान आंदोलन का बड़ा चेहरा बना दिया.
क्या हुआ था 26 जनवरी को?
पिछले साल नवंबर में शुरू हुए किसान आंदोलन को 4 महीने पूरे हुए थे. 26 जनवरी के दिन किसानों ने ट्रैक्टर परेड निकाली. इस दौरान हिंसा हुई. लाल किले पर भी जमकर उपद्रव हुआ. इस हिंसा के बाद किसान आंदोलन कमजोर पड़ता दिखाई दिया. किसान नेता 1 फरवरी को संसद मार्च निकालने वाले थे, लेकिन इस हिंसा के कारण इसे भी रद्द कर दिया.
फिर टिकैत ने आंदोलन खत्म करने के संकेत दिया
लाल किले पर हुई हिंसा ने किसान आंदोलन को बैकफुट पर ला दिया. 28 जनवरी को दिल्ली पुलिस की ओर से राकेश टिकैत को नोटिस थमाया गया. उन्हें ट्रैक्टर परेड के दौरान तय शर्तों को तोड़ने और किसानों को उकसाने के मामले में नोटिस जारी किया गया था. कुछ देर बाद टिकैत सामने आए और उन्होंने संकेत दिए कि आज रात को ही आंदोलन खत्म होगा. टिकैत के भाई नरेश टिकैत ने भी अपने गांव में गाजीपुर में धरना खत्म करने का ऐलान कर दिया.
ये भी पढ़ें-- पहले भूमि अधिग्रहण, अब कृषि कानून...जब किसानों के सामने बैकफुट पर आई मोदी सरकार
गाजीपुर बॉर्डर बन गई छावनी
28 की शाम होते-होते यूपी सरकार ने सभी जिलाधिकारियों को प्रदर्शनस्थल खाली कराने का आदेश दिया गया. नोएडा, गाजियाबाद के अधिकारी सुरक्षाबलों के साथ गाजीपुर बॉर्डर पर पहुंचे. राकेश टिकैत को समझाया, बात की. वहां बने टैंट, शौचालय को हटाना शुर किया. थोड़ी ही देर में गाजीपुर बॉर्डर छावनी में तब्दील हो गई.
फिर बहे टिकैत के आंसू और उमड़ पड़ी भीड़
ऐसा माने जाने लगा था कि किसान आंदोलन अब लगभग खत्म हो गया है. उसी शाम थोड़ी देर बाद राकेश टिकैत मीडिया के सामने आए और खूब रोए और कहा कि किसानों के साथ धोखा किया जा रहा है. टिकैत ने ऐलान किया कि 'देश का किसान सीने पर गोली खाएगा, पर पीछे नहीं हटेगा.' उन्होंने धमकी देते हुए कहा, 'तीनों कृषि कानून अगर वापस नहीं लिए गए, तो वो आत्महत्या करेंगे लेकिन धरना स्थल खाली नहीं करेंगे.' उस दिन बहे टिकैत के आंसू किसान आंदोलन के लिए 'संजीवनी' साबित हुए और आंदोलन फिर खड़ा हुआ.