
इस सदी का सबसे बड़ा रेल हादसा क्या महज एक हादसा है? इंसानी गलती है? मशीनों की बेवफाई है? या फिर कोई साजिश? करीब पौने तीन सौ लोगों की जान लेने वाले रेल हादसे की जांच अगर खुद रेल मंत्रालय और भारत सरकार रेलवे एक्सपर्ट्स की बजाय सीबीआई जैसी एजेंसी को सौंपने की सिफारिश करती है, तो सवाल अपने आप उठने लगे हैं. सवाल है कि CBI किन पहलुओं पर जांच करेगी. इस वीभत्स हादसे के सच को जानने से पहले इस हादसे को विस्तार से समझते हैं.
दरअसल ओडिशा का बालासोर स्टेशन कुल चार लाइन वाला स्टेशन है. यानी यहां ट्रेन की चार पटरिया हैं. इनमें से दो मेन लाइन की और दो लूप लाइन की हैं. ऐसे में अब सवाल ये है कि मेन लाइन और लूप लाइन में क्या फर्क है? आपको बता दें कि मेन लाइन में टर्न नहीं होता. वो सीधे जाती है, जबकि लूप लाइन इसी लाइन के साइड में होती है.
दोनों पायलट को मिला ग्रीन सिग्नल!
बता दें कि 2 जून की शाम जब ये हादसा हुआ, उस वक्त इस स्टेशन के दोनों लूप लाइन पर दो मालगाड़ी खड़ी थीं. रिपोर्ट्स के मुताबिक हावड़ा से आने वाली कोरोमंडल एक्सपेस के ड्राइवर को ग्रीन सिग्नल मिल चुका था. इसका मतलब ये हुआ कि उसे मेन लाइन पर सीधे जाना था. लेकिन कोरोमंडल अचानक लूप लाइन पर पहुंच गई. जहां पहले से ही मालगाड़ी खड़ी थी. जिसमें लोहे रखे हुए थे. रेलवे बोर्ड के मुताबिक कोरोमंडल के ड्राइवर की कोई गलती नहीं थी. हादसे के बाद बेहोश होने से पहले कोरोमंडल के ड्राइवर ने जो आखिरी लाइन कही थी, वो यही थी कि सिग्नल ग्रीन था. इसके बाद ड्राइवर बेहोश हो गया और फिर बाद में अस्पताल में उसकी मौत हो गई.
जानकारी के मुताबिक इस रूट पर ट्रेन की अधिकतम स्पीड 130 किमी है. शुरुआती जांच के बाद पता चला है कि हादसे के वक्त कोरोमंडल ट्रेन की स्पीड 128 किमी थी. यानी ड्राइवर तेज गति से गाड़ी नहीं चला रहा था. तो फिर सवाल ये है कि हादसा हुआ कैसे? कोरोमंडल मेन लाइन से हट कर लूप लाइन पर पहुंची कैसे?
ऐसे हुआ हादसा
सबसे पहले कोरोमंडल मेन लाइन से लूप लाइन पर आई. लूप लाइन पर मालगाड़ी से टकराई. टक्कर के बाद कुछ डिब्बे दूसरी मेन लाइन की तरफ जा गिरे. इसी बीच कुछ सेकेंड बाद दूसरी मेन लाइन से यशवंतपुर हावड़ा एक्सपेस गुजर रही थी और वो कोरोमंडल से अलग हुए डिब्बों से जा टकराई. खास कर इसने पिछली दो बोगी को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया.
कुछ सवाल अब भी बरकरार
ऐसे में अब भी सवाल ये है कि कोरोमंडल को लूप लाइन पर किसने भेजा? ये किसकी गलती है? किस पटरी पर कौन सी ट्रेन कब दौड़ेगी इसका फैसला कोन करता है? इसको कंट्रोल कौन करता है?
सबसे पहले रेलवे ट्रैक को समझते हैं. इसे रेलवे लाइन या रेल की पटरी भी कहते हैं. आमतौर पर मेन लाइन सिर्फ दो होती हैं. रेलवे की जुबान में इन दोनों पटरियों को अप और डाउन भी कहते हैं. यानी एक तरफ जाने वाली और एक तरफ आने वाली. इन दोनों के बीच में एक खाली जगह होती है. इसे और आसानी से समझना हो तो यूं समझिए कि जैसे कोई हाईवे है. हाईवे पर भी अप और डाउन की तरह आने और जाने की दो सड़कें होती हैं. जबकि बीच में डिवाइडर होता है.
रेलवे ट्रैक पर सिग्नल की अहम भूमिका
सड़कों पर ट्रैफिक को कंट्रोल करने के लिए ट्रैफिक लाइट होती है. ये लाइट अमूमन किसी चौराहे, जंक्शन, प्वाइंट या कट पर होती है. लाल बत्ती मतलब ट्रैफिक का रुक जाना. ग्रीन मतलब ट्रैफिक का आगे बढ़ना और येलो मतलब गाड़ी की रफ्तार कम कर देना. ठीक ऐसा ही ट्रेन के साथ है. ट्रेन का रूट पहले से तय होता है. लेकिन एक ही पटरी पर एक साथ एक ही दिशा में कई ट्रेनें चलती हैं. लेकिन उन तमाम ट्रेनों के बीच एक खास दूरी होती है. ताकि ट्रेन एक दूसरे से टकरा ना जाए.
जिस तरह रोड पर ट्रैफिक लाइट होती है, ठीक वैसे ही रेलवे ट्रैक के दोनों किनारे पर सिग्नल होता है. ये सिग्नल भी रेड ग्रीन और येलो इशारा करता है. रेड सिग्नल मतलब गाड़ी का रुक जाना, ग्रीन मतलब गाड़ी का पास होना और येलो मतलब गाड़ी की रफ्तार कम कर देना. ये सिग्नल ड्राइवर के कंट्रोल में नहीं होता. बल्कि स्टेशन मास्टर के कंट्रोल में होता है. स्टेशन मास्टर पटरियों पर गाड़ियों की तादाद को देखते हुए उसी हिसाब से रेड ग्रीन या येलो सिग्नल लेता है. अमूमन रेलवे ट्रैक पर हर एक किलोमीटर की दूरी पर एक सिग्नल होता है.
रेलवे ट्रैक पर मेन लाइन के अलावा लूप लाइन भी होती है. अमूमन ये लूप लाइन हर स्टेशन के करीब होती है. यूं समझ लीजिए जैसे मेन रोड के किनारे कई जगहों पर सर्विस लेन होती है. ठीक वैसे ही लूप लाइन होती है. लूप लाइन का इस्तेमाल गाड़ियों की दिशा बदलने, किसी गाड़ी को रोककर दूसरी गाड़ी को आगे जाने देने या फिर अमूमन मालगाड़ी को रोकने के लिए किया जाता है.
अब सवाल ये है कि कोरोमंडल एक्सप्रेस जिसको मेन लाइन से ही होकर गुजरना था, वो लूप लाइन पर कैसे पहुंची? इसी एक सवाल में सदी के इस सबसे बड़े रेल हादसे का पूरा सच छुपा है. तो सच जानने से पहले ये जानना जरूरी है कि किसी ट्रेन या मालगाड़ी को मेन लाइन से लूप लाइन या लूप लाइन से मेन लाइन पर भेजने या फिर किसी गाड़ी को रेड ग्रीन या येलो सिग्नल देने का काम करता कौन है?
ऐसे काम करती है नई टेक्नोलॉजी
जब से नई टेक्नोलॉजी आई है, तब से रेलवे ने भी काफी तरक्की की है. अब लाइन बदलने से लेकर सिग्नल तक का काम पूरी तरह से कंप्यूटराइज्ड हो चुका है. देशभर में फैले लगभग एक लाख बीस हजार किलोमीटर के रेलवे ट्रैक पर बिजली का एक वायर लगा होता है, इस वायर में करंट तो होता है, लेकिन बेहद कम वोल्टेज का. इसी वायर के जरिए देश के लगभग हर स्टेशन पर स्टेशन मास्टर को ये पता चलता है कि उस वक्त एक खास दूरी पर पटरी पर कुल कितनी ट्रेनें हैं.
उन ट्रेनों के बीच कितना गैप है. ये सब कुछ स्टेशन मास्टर अपने कंप्यूटर पर लाइव देख रहा होता है. इसके लिए एक वक्त में कम से कम दो कर्मचारी कंप्यूटर के सामने मौजूद रहते हैं. पटरियों के नीचे लगे इसी वायर के जरिए ट्रेन को जिस तरह कंट्रोल किया जाता है, उसे इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग सिस्टम या फिर इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग लॉजिक कहते हैं. ये वो सिस्टम है जो फेल होने के बावजूद काम करता है.
अगर एक ही पटरी पर गलती से दो ट्रेनें आमने-सामने से आ रही हों, या एक ही पटरी पर आगे पीछे दो ट्रेनें बेहद नजदीक से दौड़ रही हों, तो ये सिस्टम उसे पकड़ लेता है और फौरन सिग्नल से लेकर बाकी स्टाफ को वक्त रहते आगाह कर देता है. अगर मान लें कि सिस्टम की चेतावनी के बावजूद कर्मचारी उस पर ध्यान नहीं देते, तो भी हादसा नहीं हो सकता. क्योंकि ऐसी किसी भी गलती को पकड़ने के साथ-साथ इले. इंटरलॉकिंग सिस्टम फौरन सिग्नल रेड करता है. इतना ही नहीं वो गाड़ी की रफ्तार भी रोक देता है.
आखिर गलती थी किसकी?
ओडिशा के बालासोर में हुए रेल हादसे के बाद की अब तक की तफ्तीश के मुताबिक कोरोमंडल ट्रेन के डाइवर की कोई गलती नहीं थी. उसे आखिरी बार सिग्नल ग्रीन मिला था. वो निर्धारित अधिकतम 130 किमी की रफ्तार से कम 128 किमी की गति पर ही ट्रेन चला रहा था. दूसरी तरफ मालगाड़ी की भी कोई गलती नहीं थी. वो पहले से ही लूप लाइन पर खड़ी थी, ताकि कोरोमंडल को रास्ता दे सके. जबकि यशवंतपुर हावडा एक्सप्रेस के ड्राइवर की तो कोई गलती ही नहीं थी. तो फिर गलती किसकी थी?
रेल मंत्री ने उठाए सवाल
इस हादसे पर एक सवाल खुद रेल मंत्री उठा रहे हैं और वो ये कि बहुत मुमकिन है कि किसी ने जानबूझ कर इले. इंटरलॉकिंग सिस्टम के साथ छेड़छाड़ की है. पर वो कौन है? जाहिर है अगर सचमुच सिस्टम से छेड़छाड़ की गई है, तो वो कोई बाहरी शख्स नहीं हो सकता. ये किसी सिस्टम को अंदर से जानने वाले जानकार का ही काम हो सकता है. लेकिन वो ऐसा क्यों करेगा?
दो सुपरफास्ट एक्सप्रेस और एक मालगाड़ी की टक्कर के बाद रेलवे ट्रैक तक उखड़ चुका है. पूरा एरिया लगभग बर्बाद हो गया. अगर हादसे वाली जगह पर ही इले. इंटरलॉकिंग सिस्टम के साथ छेडछाड की गई, या यूं कहें कि हादसे वाली जगह पर ही पटरियों से इस सिस्टम से जुड़े वायर के साथ छेड़छाड़ की गई, तो उसका पता लगाना फिलहाल मुश्किल है. क्योंकि मौका ए वारदात पर सबकुछ तहस-नहस हो चुका है. लिहाजा, रेल मंत्रालय अब फॉरेंसिक जांच के जरिए ही ये पता लगाने की कोशिश कर रहा है कि क्या रेलवे ट्रैक के वायर से जानबूझ कर छेड़छाड़ की गई?
तो कुल मिलाकर, रेल मंत्रालय 275 लोगों की मौत के मामले को हादसा, इंसानी गलती, या लापरवाही मानने की बजाय फिलहाल साजिश के पहलू से देख रहा है. हालांकि इसके साथ-साथ रेल मंत्री बाकायदा मीडिया से ये भी कह चुके हैं कि गुनहगारों की पहचान कर ली गई है. तो फिर सबसे बड़ा सवाल यही है कि वो गुनहगार हैं कौन? और उनका मकसद क्या था?