Advertisement

चंद्रयान-2 की वो दो गलतियां... जिनसे सबक लेकर चंद्रयान-3 ने रच दिया इतिहास

चंद्रयान-3 की कामयाबी ने दिखा दिया है कि हार से सबक सीखने वाला ही आगे जाता है. चंद्रयान की कामयाबी से सारा देश खुशी से झूम रहा है. लेकिन 4 साल पहले माहौल अलग था. चंद्रयान-2 की नाकामी से देश को धक्का लगा. लेकिन इसरो के वैज्ञानिकों ने हौसला बनाए रखा और अपने मिशन मून की हर कमजोरी पर काम किया और इतिहास बना दिया.

इसरो का चंद्रयान 2 मिशन कामयाब नहीं हो सका था (फाइल फोटो) इसरो का चंद्रयान 2 मिशन कामयाब नहीं हो सका था (फाइल फोटो)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 23 अगस्त 2023,
  • अपडेटेड 11:59 PM IST

चंद्रमा अब दुनिया के लिए दूर के नहीं रहा है. इसमें बड़ी वजह, कमियों को दूर करने की लगन रही है. 2019 में जिन वजहों से भारत का चंद्रयान-2 सफल नहीं हो पाया, उन कमियों पर वैज्ञानिकों ने लगातार काम किया. नतीजा आज दुनिया देख रही है. चंद्रयान-3 की कामयाबी ने दिखा दिया है कि हार से सबक सीखने वाला ही आगे जाता है. चंद्रयान की कामयाबी से सारा देश खुशी से झूम रहा है. लेकिन 4 साल पहले माहौल अलग था. चंद्रयान-2 की नाकामी से देश को धक्का लगा. लेकिन इसरो के वैज्ञानिकों ने हौसला बनाए रखा और अपने मिशन मून की हर कमजोरी पर काम किया और इतिहास बना दिया.

Advertisement

भारत चांद के दक्षिणी ध्रुव के पास कामयाब लैंडिंग करने वाला दुनिया का पहला देश बन गया है. आज सारी दुनिया भारत को सलाम कर रही है. आज दुनिया की हर छोटी बड़ी अंतरिक्ष एजेंसी इसरो को बधाई दे रही है. दुनियाभर से बधाइयां दी जा रही हैं. लेकिन सवाल ये है कि भारत ने ये कमाल कैसे किया? पिछली बार की किन गलतियों पर इसरो के वैज्ञानिकों ने काम किया? इन्हीं सवालों में अंतरिक्ष में हिंदुस्तान की ऐतिहासिक कामयाबी का राज छिपा है.

सबसे बड़ी बात. चांद पर चंद्रयान-3 की लैंडिंग से पहले ही इसरो चीफ ने सारे देश को बता दिया कि इस बार की पूरी तैयारी पिछली नाकामियों को ध्यान में रखकर की गई है. अगर पिछली बार पहली गलती की बात करें तो वो विक्रम लैंडर की स्पीड को लेकर थी, जिसे कम करने के लिए जो पांच इंजन लगाए गए थे. उन्होंने जरूरत से ज्यादा थ्रस्ट पैदा किया. जिससे क्राफ्ट तेजी से मुड़ने लगा और अपने रास्ते से भटक कर अनियंत्रित होकर चांद की सतह से टकराकर टू गया.

Advertisement

इस बार सुधारी गईं गलतियां

इस गलती से सबक सीखते हुए इस बार लैंडिंग साइट के लिए छोटे टारगेट की जगह किसी बड़ी जगह को टारगेट किया गया, जिससे लैंडिंग आसान हो गई. पिछली बार चंद्रयान-2 का  विक्रम लैंडर चांद पर उतरने के लिए सही जगह ढूंढते हुए उसकी सतह के नजदीक पहुंचा. ज्यादा रफ्तार होने की वजह से वो चांद की सतह पर क्रैश हो गया था. इस गलती को सुधारते हुए इस बार ईंधन की क्षमता बढ़ाई गई ताकि अगर लैंडिंग स्पॉट ढूंढने में मुश्किल हो तो उसे वैकल्पिक लैंडिंग साइट तक आसानी से ले जाया जा सके.

चांद के दक्षिणी हिस्से में फहराया तिरंगा

इसका नतीजा सबके सामने है. हिंदुस्तान ने वो कर दिखाया जो आजतक अमेरिका-रूस और चीन जैसी महाशक्तियां नहीं कर पाई. चांद के दक्षिणी हिस्से में हिंदुस्तान ने तिरंगा फहरा दिया. पिछली बार इसरो भले ही अपने मून मिशन में नाकाम रहा था, लेकिन सारी दुनिया ने इसरो की मेहनत को सराहा. प्रधानमंत्री मोदी ने भी इसरो चीफ को हिम्मत बंधाते हुए हार से सबक सीखने की बात कही थी.

रंग लाई 4 साल की तैयारी

पिछले 4 साल की तैयारी का ही नतीजा था कि चांद पर चंद्रयान-3 की लैंडिंग सटीक रही. जिन 17 मिनट इस पूरे मिशन की लिए सबसे अहम माना जा रहा था, जिन 17 मिनट ने चंद्रयान-2 की उम्मीदें तोड़ी थीं, जिन्हें इसरो ने टेरर ऑफ 17 मिनट्स कहा था, उसकी बाधा को पार करके हिंदुस्तान ने दुनिया में अपना डंका बजा दिया.

Advertisement

पिछले मून मिशन के साथ क्या हुआ था? 

पिछली बार चंद्रयान-2 की लैंडिंग के दौरान विक्रम लैंडर अपने रास्ते से टर्मिनल डिसेंट फेज से लगभग तीन मिनट पहले अपने रास्ते से भटक गया था. लैंडर को 55 डिग्री पर घूमना था लेकिन यह 410 डिग्री से अधिक पर घूम गया और अततः चांद की सतह से टकरा गया. चंद्रयान-2 ने 'एटीट्यूड होल्ड' चरण और 'फाइन ब्रेकिंग' चरण के बीच एक निर्णायक मोड़ पर अपना नियंत्रण खो दिया था जिससे यह क्रैश कर गया था. 

(आजतक ब्यूरो)

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement