
यूनिफॉर्म सिविल कोड. यह ऐसा मुद्दा है जो कि इन दिनों देश में सबसे ज्यादा चर्चित है. इस UCC से जुड़ा एक पहलू 'बहुविवाह' भी है. इस बहुविवाह के चलते एक अकेला पुरुष एक से अधिक महिलाओं से शादी करता है. ऐसे में अगर देश में UCC पर विचार किया जाना है, तो बहुविवाह पर वास्तविक डेटा और विवाह कैसे किए जाते हैं, इस पर विचार करना भी जरूरी होगा.
UCC के मुद्दे को हवा देने से पहले यह जान लेना भी जरूरी है कि देश में एक से ज्यादा पत्नियां कौन रख सकता है? भारत में हिंदू कानून, (जिसमें हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध शामिल हैं) इस प्रथा पर प्रतिबंध लगाता है. दरअसल, हिंदू कानून के तहत दो शादियां करने पर लोगों को आईपीसी की धारा 494 और 495 के तहत आपराधिक कार्यवाही का सामना करना पड़ सकता है. विशेष विवाह अधिनियम, ईसाई और पारसी कानून भी द्विविवाह को गैरकानूनी मानते हैं.
मुस्लिमों को है बहुविवाह की इजाजत!
लेकिन शरीयत संरक्षण अधिनियम के तहत भारत में मुसलमानों को बहुविवाह पर प्रतिबंध से छूट देता है. अनुसूचित जनजातियों की सांस्कृतिक प्रथाओं को दिए गए संरक्षण के कारण, उत्तर-पूर्वी राज्यों, ओडिशा, तेलंगाना और कुछ अन्य राज्यों में जनजातीय समूहों में बहुविवाह के कई मामले सामने आते रहते हैं.
ऐसे में अदालतों को उन मामलों से भी निपटना पड़ा है, जहां एक व्यक्ति ने दूसरी पत्नी से शादी करने के लिए किसी अन्य धर्म से इस्लाम धर्म को अपनाया है. जबकि सुप्रीम कोर्ट ने 1994 में अपने सरला मुद्गल फैसले में कहा था कि केवल दूसरी शादी के लिए धर्म परिवर्तन वैध नहीं था. साल 1961 और 2009 में विधि आयोग की रिपोर्ट ने भी दूसरी पत्नी की कानूनी स्थिति को स्पष्ट करने की जरूरत पर जोर डाला था. साथ ही अदालत ने कहा था कि ऐसी शादियों से पैदा हुए बच्चों की स्थिति को भी परिजनों को स्पष्ट करना होगा.
UCC पर बहस ने इस मुद्दे को लेकर बढ़ाई चिंता
यूसीसी पर बहस और सुप्रीम कोर्ट में समान विवाह और तलाक कानूनों की मांग करने वाली याचिकाओं ने मुस्लिम पुरुषों को कई पत्नियां रखने की इजाजत देने वाले भेदभावपूर्ण प्रावधान और ऐसी पत्नियों और उनके बच्चों के रखरखाव और अधिकारों के बारे में चिंताएं बढ़ा दी हैं.
डेटा क्या कहता है?
इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर पॉपुलेशन साइंसेज (IIPS) द्वारा 2022 में छपी एक स्टडी के मुताबिक, मुसलमानों में बहुपत्नी विवाह सबसे अधिक (1.9%) था, इसके बाद अन्य (1.6%) लोग थे. इसके बाद आखिरी में सबसे कम हिंदुओं में (1.3%) बहुविवाह के मामले देखे गए. IIPS के आंकड़े राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NHFS) के आंकड़ों पर आधारित हैं.
एनएफएचएस-पांच के अनुसार, हिंदुओं में बहुविवाह तेलंगाना, ओडिशा और तमिलनाडु में ज्यागा प्रचलित था और जम्मू-कश्मीर, हरियाणा और पंजाब में कम प्रचलित था. साथ ही मुसलमानों के बीच बहुपत्नी विवाह ओडिशा, असम और पश्चिम बंगाल में ज्यादा था और जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र और हरियाणा में कम था. डेटा ने बहुविवाह के ज्यादा मामले वाले जिलों को भी ट्रैक किया. ज्यादा मामले वाले जिले मेघालय, अरुणाचल प्रदेश और ओडिशा राज्यों में पाए गए. इन जिलों में, पूर्वी जंतिया हिल्स (20%), क्रा दादी (16.4%), पश्चिमी जैंतिया हिल्स (14.5%), और पश्चिमी खासी हिल्स (10.9%) में व्यापकता ज्यादा थी. पांच जिलों में, 10% से ज्यादा विवाह बहुपत्नी विवाह थे और अन्य 16 जिलों में, 5%-7% विवाह बहुपत्नी विवाह थे. ये सभी अनुसूचित जनजाति (ST) की अधिक आबादी वाले जिले हैं.
आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि जागरूकता और साक्षरता दर में बढ़ोतरी के चलते बहुपत्नी विवाह के मामलों में गिरावट आई है. एनएफएचएस-III के अनुसार बहुविवाह की प्रथा बौद्धों (3.8%) और मुसलमानों (2.6%) के बीच अधिक आम थी. जबकि एनएफएचएस-पांच में, यह अन्य धर्मों (2.5%) से ज्यादा था, इसके बाद ईसाई (2.1%) और मुस्लिम (1.9%) थे.
इस मुद्दे पर क्या है बहस?
मई में, सीएम हिमंत बिस्वा सरमा के नेतृत्व में असम सरकार ने बहुविवाह पर प्रतिबंध के कानूनी पहलुओं पर गौर करने के लिए एक पैनल का गठन किया था. इससे पहले, भाजपा सांसद साक्षी महाराज और अन्य ने यह कहकर सांप्रदायिक मुद्दा गरमा दिया था कि इस्लाम में बहुविवाह प्रथा पर प्रतिबंध लगाया जाएगा. अब यूसीसी पर बहस तेज होने के साथ, सभी वर्गों के राजनेता यूसीसी लागू होने की स्थिति में मुस्लिम कानून में लाए जाने वाले बदलावों पर चर्चा कर रहे हैं.
बीजेपी प्रवक्ता और वकील नलिन कोहली ने आजतक को बताया कि एनएचएफएस डेटा पूरी तस्वीर नहीं दिखा सकता है.
कोहली ने कहा, 'संख्याओं के संदर्भ में सभी डेटा पूरी तरह से तस्वीर को साफ नहीं कर सकते हैं. संख्याओं की सूचना नहीं दी जा सकती. हो सकता है लोग आगे न आएं, मुझे नहीं पता... हो सकता है कि वे इसे स्पष्ट करना नहीं चाह रहे हों या हो सकता है कि वे बस इसके साथ जी रहे हों. यह एक निजी बात है. यह संभव है कि जो परिवार बहुविवाह करता है वह इसे किसी प्रकार के डेटा में शामिल करने में सहज न हो. मुझे यकीन नहीं है कि 1.2% को पूर्ण माना जाएगा या नहीं और दूसरी बात यह है कि यह 1.2% भी क्यों अस्तित्व में रहना चाहिए? यदि 98% आबादी इस रास्ते पर नहीं जा रही है तो राजनीतिक दल इसे राजनीतिक मामला क्यों बना रहे हैं और कह रहे हैं कि हमें 1.2% के लिए महिलाओं के अधिकारों में बाधा डालने की अनुमति देनी चाहिए?'
सरकार को इन बातों का रखना होगा खास ख्याल
बहुविवाह कानून पर असम पैनल के सदस्य होने के नाते, कोहली ने आजतक को यह भी बताया कि इस मुद्दे पर किसी भी कानून का मसौदा तैयार करते समय धार्मिक, सांस्कृतिक और आदिवासी प्रथाओं के सभी पहलुओं को ध्यान में रखना होगा.
सलमान खर्शीद ने UCC को बताया मुस्लिमों पर हमला
वहीं दूसरी ओर वरिष्ठ वकील और कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद का कहना है कि मुसलमानों पर चयनात्मक हमला सही नहीं है.
खुर्शीद ने कहा, 'एनएचएफएस का यह डेटा चुनिंदा रूप से UCC के आयामों को ले रहा है और इसे इस तरह से पेश कर रहा है जैसे कि यह केवल एक समुदाय के लिए प्रासंगिक है. लेकिन बहुविवाह एक ऐसा मुद्दा है जो कई समुदायों में व्याप्त है और यह निश्चित रूप से हिंदुओं के लिए अज्ञात नहीं है, जहां इसे तब तक प्रतिबंधित किया जाता है जब तक कि पिछली पत्नी द्वारा इसकी स्वीकृति न हो. और निःसंदेह यह जनजातीय में है. अब अगर आप इसे खत्म करना चाहते हैं तो आपको इसे खत्म करने के लिए दोषी नहीं ठहराया जाएगा, लेकिन जब आप सुझाव देते हैं कि ऐसा इसलिए किया जाना चाहिए क्योंकि इसमें मुस्लिम शामिल हैं, तो यह अस्वीकार्य है.' एनएचएफएस के डेटा के बारे में आजतक से बात करते हुए खुर्शीद ने कहा कि सरकार को इस मुद्दे पर विचार करते समय बहुविवाह पर वास्तविक डेटा प्राप्त करना चाहिए.
खुर्शीद ने कहा, 'आपको इस देश में बड़ी संख्या में मुसलमानों को श्रेय देना चाहिए जो इसमें विश्वास नहीं करते हैं. जो लोग इस कानून को मानेंगे वे संभवतः इस्लाम की शर्तों का उल्लंघन करेंगे.'