
महाराष्ट्र के शिंदे बनाम उद्धव विवाद पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के समक्ष मंगलवार को शिंदे कैंप की तरफ से पक्ष रखा गया. वकील हरीश साल्वे ने कहा कि सिर्फ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने से सब कुछ नही सुलझ सकता. अदालत इस्तीफा देने वाले मुख्यमंत्री को वापस आने के लिए निर्देश नहीं दे सकती. जब भी कोई ऐसा सवाल खड़ा हो तो राज्यपाल को विश्वासमत के लिए सदन बुलाना चाहिए. इसमें कुछ भी गलत नहीं है.
साल्वे ने कहा है कि लोकतंत्र को सदन के पटल पर ही चलने दें. एसआर बोम्मई मामले में भी यही स्थिति रखी गई है. फ्लोर टेस्ट बुलाकर राज्यपाल ने कुछ भी गलत नहीं किया. जहां तक नबाम रेबिया की बात है तो इस पर नए सिरे से विचार करने की जरूरत है. अगर वास्तव में विश्वास मत होता तो क्या होता? इस अदालत ने कभी भी यह निष्कर्ष नहीं निकाला है कि सदन में बने रहने वाले किसी व्यक्ति के लिए अयोग्यता की चुनौती का लंबित होना उस व्यक्ति को कानूनी रूप से अयोग्य घोषित नहीं करता है. जब तक कि उसे अंतिम तौर पर अयोग्य घोषित नहीं किया जाता है.
साल्वे ने दलील दी कि जब तक अयोग्यता तय नहीं हो जाती, तब तक सदन की कार्रवाई में भाग लेने और मतदान करने का अधिकार है. लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि सिस्टम और कोर्ट शक्तिहीन हैं. यदि यह पाया जाता है कि अयोग्य ठहराए गए लोगों की एक बड़ी संख्या द्वारा विश्वास मत को प्रभावित किया जाता है, तो कोर्ट द्वारा हस्तक्षेप किया जाना चाहिए.
राज्यपाल ने गलत नहीं किया
हरीश साल्वे ने राज्यपाल के कार्यकलाप पर कहा कि राज्यपाल ने क्या गलत किया है? पूर्व मुख्यमंत्री ने इस्तीफा दिया था इसलिए स्वीकार करना ही था. शिंदे गुट की तरफ से नीरज किशन कौल ने बहस करते हुए दलील दी कि इस मामले में सबसे बड़ा कानूनी तर्क ये है कि क्या सुप्रीम कोर्ट संविधान में वर्णित विधानसभा स्पीकर की शक्तियों को दरकिनार करके विधायकों की अयोग्यता पर फैसला दे सकता है?
राजनीतिक पार्टी और विधायक दल दोनों का आपसी संबंध दो पहलू वाला है. वो आपस में जुड़े हुए भी हैं और स्वतंत्र भी हैं. लेकिन किसी भी सूरत में दोनों को अलग नहीं किया जा सकता है. असहमति लोकतंत्र का हिस्सा है. लेकिन ये तर्क देना भ्रामक है कि शिंदे गुट के विधायक सिर्फ विधायक दल का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं न कि शिवसेना पार्टी का.
उद्धव गुट चाहता है कि चुनाव आयोग, राज्यपाल, विधानसभा स्पीकर जैसे तीज संवैधानिक संस्थाओं की क्षेत्राधिकार का अतिक्रमण करे, है सही नहीं है. नीरज किशन कौल ने कहा कि अगर विधानसभा स्पीकर द्वारा विधायको की अयोग्यता पर फैसले की न्यायिक समीक्षा हो सकती है तो उसी तरह स्पीकर द्वारा अनिर्णय की स्थिति की भी न्यायिक समीक्षा की जा सकती है कि फैसला इसमें बाधक नहीं है.
कौल ने कहा कि राज्यपाल सिर्फ सामने आए सबूत देखेंगे. उन्हें चुनाव आयोग जैसी सख्ती के साथ जांच करने के लिए नहीं कहा जा सकता. जब बड़ी संख्या में विधायक समर्थन वापस ले लेते हैं, तो वह क्या करें? एसआर बोम्मई मामले में इस अदालत ने कहा है कि एक मुख्यमंत्री फ्लोर टेस्ट से भाग नहीं सकता है, जो कि उनके और उनकी सरकार के भरोसे का संकेत है. यही कारण है कि फ्लोर टेस्ट बुलाना गलत नहीं था.
कौल के बाद शिंदे गुट की तरफ से महेश जेठमलानी ने कहा कि जबसे महाविकास अघाडी सरकार बनी तबसे ही शिवसेना के अंदर ही इसका विरोध शुरू हो गया था. यह असंतोष 21 जून को गठबंधन के सहयोगियों (कांग्रेस और एनसीपी) के साथ लंबे समय से चले आ रहे वैचारिक मतभेद विभाजन के स्तर पर चला गया.