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'उदयनिधि के बयान पर सुप्रीम कोर्ट ले संज्ञान...', 262 प्रतिष्ठित हस्तियों ने CJI को लिखी चिट्ठी

उदयनिधि के बयान के खिलाफ सीजेआई से इस मामले में स्वतः संज्ञान लेने का निवेदन किया गया है. जिन लोगों ने ये पत्र लिखा है उन प्रतिष्ठित लोगों में हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीशों के साथ-साथ नौकरशाह शामिल हैं. चिट्ठी में लिखा है, "उदयनिधि स्टालिन की ओर से दिए गए नफरत भरे भाषण का स्वत: संज्ञान लिया जाए, जो सांप्रदायिक वैमनस्य और सांप्रदायिक हिंसा को भड़का सकता है.

उदयनिधि स्टालिन, भारत के मुख्य न्यायधीश डीवाई चंद्रचूड़ (फाइल फोटो) उदयनिधि स्टालिन, भारत के मुख्य न्यायधीश डीवाई चंद्रचूड़ (फाइल फोटो)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 05 सितंबर 2023,
  • अपडेटेड 2:25 PM IST

चेन्नई में तमिलनाडु सीएम के बेटे उदयनिधि स्टालिन के दिए बयान ने तूल पकड़ लिया है. उदयनिधि के बयान का चौतरफा विरोध हो रहा है. इसी बीच उनके खिलाफ सीजेआई से भी इस मामले में स्वतः संज्ञान लेने का निवेदन किया गया है. देश में विभिन्न पदों पर आसीन रही 262 प्रतिष्ठित हस्तियों ने मुख्य न्यायाधीश धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ को चिट्ठी लिखी है. उन्होंने इस चिट्ठी में उदयनिधि मामले में स्वत: संज्ञान लेने का अनुरोध किया है. चिट्ठी में लिखा है, "उदयनिधि स्टालिन की ओर से दिए गए नफरत भरे भाषण का स्वत: संज्ञान लिया जाए, जो सांप्रदायिक वैमनस्य और सांप्रदायिक हिंसा को भड़का सकता है."

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पत्र लिखने वालों में कई प्रतिष्ठित लोग शामिल
इन प्रतिष्ठित लोगों में हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीशों के साथ-साथ नौकरशाह शामिल हैं. CJI को पत्र लिखकर 'शाहीन अब्दुल्ला बनाम भारत संघ' मामले में SC के हालिया आदेश के संदर्भ में उदयनिधि स्टालिन के नफरत भरे भाषण पर ध्यान देने के लिए कहा, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने औपचारिक शिकायत दर्ज होने की प्रतीक्षा किए बिना ऐसे मामलों में स्वत: कार्रवाई करने के लिए सरकार और पुलिस अधिकारियों को निर्देश दिया था. 

पूर्व जज, पूर्व रॉ प्रमुख और विदेश सचिवों ने लिखी चिट्ठी
इन 262 लोगों में  तेलंगाना, गुजरात, इलाहाबाद, दिल्ली, पंजाब और हरियाणा, मध्य प्रदेश, सिक्किम से 14 पूर्व न्यायाधीश, 20 राजदूतों, पूर्व रक्षा सचिव, पूर्व रॉ प्रमुख, पूर्व विदेश सचिवों सहित 130 सेवानिवृत्त नौकरशाह, 118 सेवानिवृत्त सशस्त्र बल अधिकारी शामिल हैं. 

उदयनिधि के बयान पर जताई आपत्ति
उन्होंने पत्र में लिखा, उदयनिधि स्टालिन, ने चेन्नई  में अपने बयान में कहा कि 'कुछ चीज़ों का विरोध नहीं किया जा सकता, उन्हें ख़त्म कर देना चाहिए. हम डेंगू, मच्छर, मलेरिया या कोरोना का विरोध नहीं कर सकते, उन्हें सिर्फ मिटाया जा सकता है, इसी प्रकार हमें सनातन को मिटाना है. पत्र में लिखा है कि वह जानबूझ कर इससे भी आगे बढ़े और कहा कि
सनातन धर्म महिलाओं को गुलाम बनाता है और उन्हें, उन्हें अपने घरों से बाहर निकलने की अनुमति नहीं देता है. 

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शाहीन अब्दुल्ला बनाम भारत संघ केस का दिया हवाला
उन्होंने इसके लिए शाहीन अब्दुल्ला बनाम भारत संघ मामले का विवरण दिया. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने इस केस में देखा और महसूस करते हुए कहा कि, जब तक अलग-अलग धार्मिक समुदाय सद्भाव से रहने में सक्षम न हों तब तक भाईचारा नहीं हो सकता. सुप्रीम कोर्ट ने देश में नफरत फैलाने वाले भाषणों की बढ़ती घटनाओं पर चिंता जताई थी और सरकारों और पुलिस अधिकारियों को स्वत: संज्ञान लेकर ऐसे मामलों में औपचारिक शिकायत दर्ज होने की प्रतीक्षा किए बिना कार्रवाई करने का निर्देश दिया था. अगर इस मामले किसी तरह की देरी हुई तो यह अदालत की अवमानना जैसा गंभीर मुद्दा होगा.

संविधान की मूल भावना पर चोट
पत्र में लिखा गया है कि उदयनिधि स्टालिन ने न केवल नफरत भरा भाषण दिया बल्कि अपनी टिप्पणी के लिए माफी मांगने से भी इनकार किया. बल्कि उन्होंने यह कहकर खुद को सही ठहराया, वह अपने बयान पर कायम रहेंगे. हम सभी इन टिप्पणियों से बहुत चिंतित हैं. उदयनिधि स्टालिन की ये टिप्पणियां निर्विवाद रूप से हेट स्पीच हैं. यह भारत की एक बड़ी आबादी के खिलाफ है और भारत का संविधान के मूल पर प्रहार है,  जो भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के रूप में देखता है.

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