
Uniform Civil Code: भारतीय जनसंघ के संस्थापक डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 1951 में जम्मू-कश्मीर की धरती से एक नारा दिया था- 'एक देश में दो निशान, दो प्रधान, दो विधान...नहीं चलेंगे, नहीं चलेंगे'. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2023 में मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में कहा- एक परिवार में दो कानून कैसे चलेंगे? दोनों के संदर्भ अलग थे. डॉक्टर मुखर्जी के नारे के केंद्र में जम्मू कश्मीर के अलग झंडे, अलग विधान थे और पीएम मोदी के सवाल में यूनिफॉर्म सिविल कोड (यूसीसी). दोनों में ही एक कॉमन तथ्य है- दो विधान.
देश में अगले साल लोकसभा चुनाव होने हैं. लोकसभा चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी ने इसी अलग-अलग विधान को समाप्त करने के लिए एक विधान यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड (यूसीसी) लाने का दांव चल दिया है. यूसीसी को लेकर लॉ कमीशन से लेकर स्टैंडिंग कमेटी तक एक्टिव हैं तो सियासी गलियारों से लेकर संविधान, कानून के विशेषज्ञों-जानकारों तक ये चर्चा का मुख्य विषय बन गया है. यूसीसी को लेकर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की है.
गृह मंत्री अमित शाह और धामी की यूसीसी को लेकर बैठक के बाद अब नई बहस छिड़ गई है. वो ये कि बीजेपी उत्तराखंड को ही यूसीसी की प्रयोगशाला क्यों बना रही है? सियासत के जानकार इसे उत्तराखंड चुनाव में ऐतिहासिक सफलता से जोड़ रहे हैं. उत्तराखंड चुनाव के दौरान प्रचार के अंतिम दिन सीएम धामी ने यूसीसी का दांव चला था. धामी ने वादा किया था कि बीजेपी अगर चुनाव जीतकर दोबारा सत्ता में आई तो एक पैनल का गठन किया जाएगा जो यूसीसी के लिए काम करेगा. इसके बाद बीजेपी ने उत्तराखंड राज्य गठन के बाद लगातार दूसरी बार सरकार बनाकर इतिहास रच दिया.
उत्तराखंड ने की थी यूसीसी की पहल
धामी सरकार जब दोबारा सत्ता में आई तो यूसीसी को लेकर उसने सुप्रीम कोर्ट की सेवानिवृत्त न्यायाधीश जस्टिस रंजना देसाई के नेतृत्व में कमेटी गठित कर दी. उत्तराखंड में यूसीसी के लिए ड्राफ्ट भी तैयार है. इन सबको लेकर साल 2017 से 2021 तक तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के मीडिया सलाहकार रहे रमेश भट्ट ने कहा कि उत्तराखंड यूसीसी के मुद्दे पर हॉटस्पॉट इसलिए बना हुआ है क्योंकि सबसे पहले उत्तराखंड सरकार ने इसे लेकर पहल की थी. वह भी तब जब इसकी इतनी चर्चा नहीं थी.
कम अल्पसंख्यक आबादी के तर्क को खारिज करते हुए उन्होंने कहा कि सूबे की डेमोग्राफी में तेजी से बदलाव हुआ है. उत्तराखंड राज्य गठन के समय मुस्लिमों की आबादी प्रदेश में दो फीसदी के करीब थी जो अब लगभग 14 फीसदी के आसपास पहुंच चुकी है. सिख समुदाय के लोगों की भी अच्छी-खासी संख्या है. रमेश भट्ट ने साथ ही ये भी कहा कि उत्तराखंड में बड़ी आबादी को आज भी ये तक नहीं पता है कि यूसीसी है क्या? यूसीसी का मुद्दा उतना असरदार नहीं लग रहा जितना राम मंदिर निर्माण और जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने का था.
मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार रहे रमेश भट्ट ने पुष्कर सिंह धामी के हालिया बयान का जिक्र करते हुए कहा दावे तो ड्राफ्ट तैयार कर लिए जाने के किए जा रहे हैं. लेकिन मुझे ऐसा नहीं लग रहा. उन्होंने कहा कि धामी और अमित शाह की मुलाकात में यूसीसी को लेकर जरूर विस्तार से बात हुई होगी. गौरतलब है कि धामी ने हाल ही में कहा था कि यूसीसी जल्द लागू करेंगे. हम इसमें देरी नहीं करेंगे लेकिन हमें इसे लेकर कोई जल्दबाजी भी नहीं है.
यूसीसी पर सरकार को मिले थे 20 लाख सुझाव
उत्तराखंड सरकार ने यूसीसी को लेकर सुप्रीम कोर्ट की सेवानिवृत्त जज जस्टिस रंजना देसाई की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई थी. सरकार ने यूसीसी को लेकर उत्तराखंड के लोगों, सरकारी और गैर सरकारी संगठनों से सुझाव मांगे थे. इसे लेकर एक ऑनलाइन पोर्टल भी बनाया गया था. यूसीसी को लेकर बनाई गई कमेटी को करीब 20 लाख सुझाव मिले थे. कहा जा रहा है कि यूसीसी का ड्राफ्ट भी जस्टिस रंजना प्रकाश कमेटी ने तैयार कर लिया है. यूसीसी पर पीएम मोदी के बयान से पहले नेशनल लॉ कमीशन ने भी जस्टिस रंजना देसाई कमेटी के सदस्यों के साथ बैठक की थी. दिल्ली में हुई इस बैठक के बाद जस्टिस रंजना देसाई ने कहा था कि यूसीसी को लेकर लॉ कमीशन ने सकारात्मक संकेत दिए हैं.
क्या है यूसीसी?
यूसीसी का सीधा अर्थ है देश में एक कानून. यूसीसी के लागू हो जाने पर हर धर्म और हर वर्ग के लोगों के लिए एक समान कानून होगा. शादी, तलाक, गोद लेने के नियम, उत्तराधिकार और संपत्तियों से जुड़े मामलों में भी हर धर्म के लोगों के लिए समान कानून होगा. इन मामलों में देश में अभी धार्मिक आधार पर अलग-अलग कानून हैं.