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डीपफेक पर केंद्र सरकार सख्त, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की बुलाई बैठक, 'विवादित' कंटेंट ना हटाने पर लिया जाएगा एक्शन

हाल ही में डीपफेक की चर्चा भी जोरों पर है. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसे लेकर चिंता जता चुके हैं. इस बीच, केंद्र सरकार ने साफ कर दिया है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर गलत और गुमराह करने वाला कंटेंट नहीं चलने दिया जाएगा. सरकार का कहना है कि सभी प्रमुख सोशल मीडिया प्लेटफार्मों को बुलाया जा रहा है और उन्हें चेतावनी दी जा रही है कि डीपफेक पाए जाने के बाद कंटेंट नहीं हटाने वाले प्लेटफॉर्म के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करेगी. उन पर मुकदमा चलाया जाएगा.

केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर. (फाइल फोटो) केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर. (फाइल फोटो)
राज चेंगप्पा
  • नई दिल्ली,
  • 21 नवंबर 2023,
  • अपडेटेड 6:51 AM IST

दुनियाभर में डीपफेक टेंशन बन गया है. इससे निपटने के लिए केंद्र सरकार भी अलर्ट मोड पर देखी जा रही है. सरकार ने डीपफेक से होने वाले 'गंभीर जोखिम' पर चर्चा के लिए 24 नवंबर को Google, Facebook, YouTube समेत ऑनलाइन प्लेटफार्मों को बुलाया है. केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने कहा कि ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के प्रमुखों के साथ 24 नवंबर को चर्चा की जाएगी. सरकार चेतावनी दे रही है कि डीपफेक पाए जाने के बाद कंटेंट नहीं हटाने वाले प्लेटफॉर्म के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी और उन पर मुकदमा चलाया जा सकता है. इंडिया टुडे ने केंद्रीय राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर से बातचीत की है. जानिए क्या कहा है...

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सवाल: डीपफेक मामले में सरकार सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को लेकर क्या कह रही है? चाहे फेसबुक, यूट्यूब, याहू या अन्य...
जवाब:
देखिए, एक बात जो मुझे जरूर कहनी चाहिए. वह यह है कि इस विशेष मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार सबसे आगे रही है. हम मई 2021 में आईटी नियम लेकर आए. फिर अक्टूबर 2022 में संशोधित किए गए और नए संशोधित नियम फरवरी 2023 में सामने आए. सभी इंटरनेट की सुरक्षा और विश्वास के बारे में बात करते हैं. यह इन सभी प्लेटफार्मों पर एक दायित्व डालता है और यह सुनिश्चित करना उनकी जिम्मेदारी बनाता है कि उनके प्लेटफार्मों पर ऑनलाइन सामग्री गलत सूचना नहीं है. आईटी में नियम 31बी के तहत 11 मुद्दे ऐसे हैं जिन्हें प्लेटफॉर्म अपने यहां शेयर नहीं कर सकते हैं. उदाहरण के लिए- बाल यौन शोषण सामग्री, इनसाइटफुल कंटेंट, पेटेंट उल्लंघन, हिंसात्मक सामग्री. इसके केंद्र में 31 बी पांच नियम है. इसमें कहा गया है कि गलत सूचना, स्पष्ट रूप से झूठी जानकारी अपने प्लेटफॉर्म पर नहीं ले जा सकते हैं. यदि वे अपने प्लेटफॉर्म पर गलत सूचना या डीप फेक लाते हैं तो उन पर इस अधिनियम के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है. क्योंकि जो सुरक्षा है, जो इम्युनिटी है, वो खत्म हो जाएगी.

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सवाल: क्या आप इसके बारे में विस्तार से बता सकते हैं?
जवाब:
जी हां, एक चीज जो हमें समझनी होगी, वह यह है कि यह अधिनियम- वह कानून है जो इंटरनेट को नियंत्रित करता है. इसलिए ये प्लेटफॉर्म एक आईटी अधिनियम है. यह 22 साल पुराना एक्ट है. यह साल 2000 में लाया गया और फिर 2008 में इसमें संशोधन किया गया था. अमेरिकी मॉडल का ब्लाइंड फॉलो करते हुए 2008 में आईटी अधिनियम में जो संशोधन किए गए थे, उनमें से एक को धारा 79 कहा जाता है. जो अनिवार्य रूप से किसी भी इंटरनेट प्लेटफॉर्म को किसी भी प्रकार के अभियोजन से प्रतिरक्षा प्रदान करता है.उस समय वहां यह नैरेटिव था कि ये प्लेटफॉर्म पर मौजूद कंटंट के लिए जिम्मेदार नहीं हैं. क्योंकि कुछ यूजर्स ही ऐसा करते हैं. ऐसे में यदि आपको किसी पर मुकदमा चलाना है तो यूजर्स पर मुकदमा चलाएं, ना कि प्लेटफॉर्म पर. 

राजीव चंद्रशेखर ने आगे कहा, यह सोशल प्लेटफॉर्म का खुद को बचाने का एक शातिराना तरीका था. मैं उन दिनों आईटी कमेटी में था और मैं अकेला था जिसने इसका विरोध किया था. चाहे जो भी हो, यह मायने रखता है. अब यह अकैडमिक है. लेकिन उस सुरक्षित पनाह देने के कारण प्लेटफार्मों में अच्छे व्यवहार की भावना या अच्छे आचरण का दायित्व नहीं रह गया है. इसलिए अब हम इस विषैलेपन को देखते हैं और ऐसे हर मामले में सरकार दुर्भाग्य से प्लेटफॉर्म और यूजर्स के बीच विवाद की मध्यस्थ बन जाती है. मुझे लगता है कि अब आईटी नियमों के साथ यह स्पष्ट है कि हम कहते हैं कि सुरक्षित पनाहगाह उन 11 तरह के कंटेंट को एड्रेस करने के लिए सशर्त है जो वे अपने प्लेटफार्मों पर नहीं रख सकते हैं. 

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'डीपफेक यूजर्स की सुरक्षा और भरोसे के लिए गंभीर खतरा'

केंद्रीय मंत्री ने कहा, जिस तरह से अब हम डीपफेक को नियंत्रित करेंगे, वो बहुत सरल है. यह उन नियमों में है, जिन्हें हमने फरवरी 2023 में अधिनियमित किया था. यदि किसी भी प्लेटफॉर्म पर कोई डीपफेक है, चाहे वो मैसेंजर प्लेटफॉर्म हो या सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म... इस प्रकार का कंटेंट ना डालने के निर्देश के बावजूद वे इसे प्लेटफॉर्म पर रखते हैं. उसके बाद जब उन्हें इसकी सूचना दी जाती है तो कंटेंट फर्जी पाया जाता है. तब उनके पास इसे हटाने के लिए 36 घंटे का समय होता है. यदि वो प्लेटफॉर्म ऐसा नहीं करता है तो उसे अदालत में ले जाया जा सकता है. उस पर आईपीसी और आईटी एक्ट के तहत आपराधिक मुकदमा चलाया जा सकता है.

राजीव चंद्रशेखर का कहना था कि यह सिर्फ इतना है कि किसी व्यक्ति का आपराधिक प्रतिरूपण आईपीसी के तहत एक संज्ञेय अपराध है. इसलिए, आपराधिक कानून के तहत कई प्रावधान हैं. उन्हें सुरक्षित आश्रय द्वारा संरक्षित किया गया है, जो 2008 से यूपीए के दौरान संशोधन के बाद से लागू है. उस सुरक्षित आश्रय को अब उनके अच्छे आचरण पर सशर्त बना दिया गया है. हम तीन दिन बाद 24 नवंबर को सभी प्लेटफार्मों के साथ एक बैठक करने जा रहे हैं. हम यह बताएंगे कि सरकार डीप ब्रेक और गलत सूचना के जोखिम को कितना गंभीर जोखिम मानती है. यह गंभीर चुनौती है. सुरक्षा और विश्वास दायित्व के लिए गंभीर खतरा है. हमारा मानना ​​है कि हम भारत के लोगों और भारतीय इंटरनेट के यूजर्स के प्रति उत्तरदायी हैं. हम उनके लिए व्यवस्था करेंगे. हम डेक के हर उदाहरण के लिए यह सुनिश्चित करेंगे कि नियमों के तहत अदालत में मुकदमा चलाने के लिए प्रावधान लागू किया जाएगा. जो भी नागरिक या संगठन दोष से व्यथित है। और क्या होगा.

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