
उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के मेरठ की सेंट्रल मार्केट में अवैध निर्माण मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है. आवासीय क्षेत्र के भू उपयोग नियमों में बदलाव करके किए गए निर्माण को अवैध करार देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उसे ढहाने का फैसला सुना दिया है. यानी अदालत ने डेढ़ हजार दुकानों और व्यावसायिक स्थलों को अवैध घोषित कर बुलडोजर चलाने का रास्ता साफ कर दिया है.
इस फैसले से मेरठ के शास्त्रीनगर स्थित सेंट्रल मार्केट के व्यापारियों को सुप्रीम कोर्ट से जोरदार झटका लगा है. सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने अपने फैसले के जरिए शास्त्री नगर विकास योजना के तहत आवासीय क्षेत्र में भू-उपयोग परिवर्तन कर किए गए सभी निर्माण को अवैध बताया है. उन्हें ध्वस्त करने का आदेश भी दिया है.
लापरवाही पर होगी कार्रवाई
कोर्ट ने ऐसे अवैध रूप से बनाए गए भवनों के मालिकों को परिसर खाली करने के लिए तीन महीने का वक्त दिया है. इसके 2 हफ्ते बाद आवास एवं विकास परिषद को अवैध निर्माणों को ध्वस्त करना होगा. इस कार्य में सभी प्राधिकारी सहयोग करेंगे. अगर इसमें कोई अधिकारी लापरवाही करता है, तो उनके खिलाफ कोर्ट की अवमानना के तहत कार्यवाही की जाएगी.
कोर्ट ने इसके साथ ही आवास एवं विकास के उन सभी जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ भी आपराधिक एवं विभागीय कार्रवाई के आदेश दिए हैं, जिनके कार्यकाल में ये सब कुछ घपला घोटाला होता रहा.
यह भी पढ़ें: 'देश तो बहुसंख्यक के हिसाब से चलेगा...' बयान देने वाले HC के जज को सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने किया तलब
इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला बरकरार
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के दस साल पहले 2014 में दिए उस आदेश को बहाल रखा है, जिसमें भूखंड 661/6 के अवैध निर्माण के ध्वस्तीकरण आदेश की पुष्टि की है. इसके साथ ही आवासीय क्षेत्र में हुए व्यावसायिक निर्माण को ध्वस्त करने के आदेश दिए गए हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने 19 नवंबर को सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया था. बेंच ने मेरठ में शास्त्री नगर सेंट्रल मार्केट के 499 भूखंडों के भू-उपयोग की स्टेटस रिपोर्ट आवास एवं विकास परिषद से मांगी थी. इसके बाद परिषद ने शास्त्रीनगर स्कीम-7 और स्कीम-3 में सर्वे करके कुल 1478 आवासीय भूखंडों की रिपोर्ट दी थी. उसमें लिखा था कि आवासीय भूखंडों का भू-उपयोग परिवर्तन कर व्यावसायिक गतिविधि चल रही है.
जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच के इस फैसले के बाद मेरठ के सेंट्रल मार्केट में बनी डेढ़ हजार से ज्यादा दुकानों के मालिकों में हड़कंप मचा हुआ है.
यह भी पढ़ें: 'ड्रग्स लेना बिल्कुल भी 'कूल' नहीं', यूथ में बढ़ रही नशे की लत पर सुप्रीम कोर्ट ने जताई चिंता
क्या है पूरा मामला?
दरअसल, सेंट्रल मार्केट के 661/6 प्लाट पर बनी जिन दुकानों को गिराने के हाईकोर्ट ने आदेश दिए थे. ये प्लॉट आज भी आवास विकास परिषद के रिकॉर्ड में काजीपुर के वीर सिंह के नाम से आवंटित हैं, जबकि 1992 से लेकर 1995 तक इस प्लॉट में बनी दुकानें बेच दी गईं. इतना ही नहीं मालिक बने व्यापारियों ने उन भवनों का मालिकाना हक अपने नाम भी नहीं कराया, क्योंकि ये मूल नियमों के खिलाफ हो जाता.
मजेदार तथ्य ये भी है कि जमीनी सच्चाई से अलग आवास विकास परिषद सिविल कोर्ट से लेकर हाईकोर्ट तक वीर सिंह को ही प्रोपर्टी का मालिक मानते हुए पक्षकार बनाती रही है. इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ व्यापारियों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी. शुरू में तो उस आदेश पर कोर्ट ने रोक लगा दी थी लेकिन 10 साल बाद 19 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने मामले में आदेश सुरक्षित रखते हुए आवास विकास परिषद से 499 भवनों की स्टेटस रिपोर्ट मांगी थी. परिषद की रिपोर्ट पर कोर्ट ने ये फैसला सुनाया है.