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2900 KM लंबी नदी के लिए दुनिया की 37% आबादी में 'WATER WAR', ब्रह्मपुत्र के पानी को कैसे हथियार बना रहा चीन

पिछले कुछ महीनों में हुए घटनाक्रमों ने ये उम्मीद जताई थी कि अब शायद भारत-चीन के रिश्तों में हर मोर्चे पर सुधार आ सकता है. लेकिन चीन ने एक बार फिर इन उम्मीदों को झटका दिया है और फिर से दोनों देशों के रिश्ते आरोपों, बयानबाजियों और तल्खियों में उलझ रहे हैं.

ब्रह्मपुत्र नदी को लेकर भारत-चीन में क्यों छिड़ा है 'WATER WAR' (तस्वीर-सोशल मीडिया) ब्रह्मपुत्र नदी को लेकर भारत-चीन में क्यों छिड़ा है 'WATER WAR' (तस्वीर-सोशल मीडिया)
आकाश सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 05 जनवरी 2025,
  • अपडेटेड 2:45 PM IST

भारत-चीन के रिश्ते में समझौते और सहयोग के वादे शायद सबसे 'लचीले' हैं. पिछले साल दोनों देशों में LAC पर पेट्रोलिंग को लेकर समझौते हुए थे. अक्तूबर में रूस के शहर कजान में पीएम मोदी और शी जिनपिंग की शानदार मुलाकात हुई थी. संसद में विदेश मंत्री ने भी चीन के साथ सुधरते रिश्ते को लेकर बयान दिया था और फिर NSA अजित डोभाल ने चीन की यात्रा की थी. कुछ ही महीनों में हुए इतने घटनाक्रम ने ये उम्मीद जताई थी कि अब शायद दोनों देशों के रिश्तों में हर मोर्चे पर सुधार आ सकता है. लेकिन चीन ने एक बार फिर इन उम्मीदों को झटका दिया है और फिर से दोनों देशों के रिश्ते आरोपों, बयानबाजियों और तल्खियों में उलझ रहे हैं.

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ताजा मामला लद्दाख में चीन की ओर से दो काउंटी बनाने और ब्रह्मपुत्र नदी पर दुनिया का सबसे बड़ा डैम बनाने की तैयारी से जुड़ा है. जिसने एक बार फिर साबित कर दिया है कि 'एक कदम पीछे हटकर दो कदम आगे आना' चीन की विस्तारवादी नीति का हिस्सा है. ये बार-बार देखने को मिला है. इसके कई उदाहरण दशकों में देखे गए हैं.

पहले बात लद्दाख की...

चीन ने हाल ही में ऐलान किया था कि वह होतान प्रांत में दो नए काउंटी बनाएगा. रिपोर्ट्स के मुताबिक,  इसका कुछ हिस्सा लद्दाख में है. भारत ने चीन के इस कदम की आलोचना करते हुए कहा कि इस कदम को स्वीकार नहीं किया जा सकता है. ये इलाका भारत का है और यहां चीन का दावा पूरी तरह से अवैध है.

वहीं, दूसरा मामला ब्रह्मपुत्र नदी से जुड़ा हुआ है. दरअसल, चीन भारत सीमा के नजदीक तिब्बत के पास ब्रह्मपुत्र नदी पर एक डैम बनाने की तैयारी कर रहा है. 25 दिसंबर को चीन ने इसकी मंजूरी भी दे दी है. इसे दुनिया का सबसे बड़ा बांध बताया जा रहा है, जिसमें करीब 140 अरब डॉलर खर्च होने की उम्मीद है. चीन की इस तैयारी पर भी भारत ने निशाना साधा है. सवाल उठाए हैं. चीन की ओर से भी सफाई आई है. 

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लेकिन ये कोई पहला मामला नहीं है जब ब्रह्मपुत्र पर भारत-चीन को लेकर विवाद देखा गया हो. दोनों देशों में पहले भी इसे लेकर बयानबाजियां होती रही हैं. अब आइए समझते हैं कि आखिर कैसे ये नदी दुनिया के दो सबसे आबादी वाले देशों के बीच वॉटर वार का कारण है.

ब्रह्मपुत्र नदी के बारे में जानिए

ब्रह्मपुत्र नदी तिब्बत स्थित कैलाश पर्वत के पास मानसरोवर झील से निकलती है और भारत के अरुणाचल प्रदेश और असम से होते हुए बांग्लादेश तक बहती है और बंगाल की खाड़ी में जाकर मिल जाती है. असम में इसे ब्रह्मपुत्र या लुइत, तिब्बत में इसे यारलुंग त्सांगपो और अरुणाचली में सियांग/दिहांग नदी और बंगाली में जमुना नदी के नाम से जाना जाता है. प्रवाह के हिसाब से दुनिया की 9वीं सबसे बड़ी नदी है और 15वीं सबसे लंबी नदी है.

क्यों खास है ब्रह्मपुत्र नदी

ब्रह्मपुत्र नदी भारत-चीन और बांग्लादेश के लिए वरदान की तरह है. सिंचाई और परिवहन के लिए ये नदी काफी महत्वपूर्ण है. लेकिन जब हिमालयी क्षेत्रों में बर्फ पिघलती है तो इसमें बाढ़ भी आती है. कई सहायक नदियां इसमें समाहित होती हैं.

दुनिया की 37 फीसदी का 'दखल'

ब्रह्मपुत्र नदी दुनिया की दो सबसे बड़ी आबादी वाले देश भारत और चीन से होकर गुजरती है और बांग्लादेश में जाकर मिलती है. अगर दुनिया की कुल आबादी से इसकी तुलना करें तो कहा जा सकता है कि 2900 किमी लंबी यह नदी दुनिया की 37 फीसदी आबादी को प्रभावित करती है. लिहाजा इसको लेकर विवाद भी खूब है. अगर दुनिया में वाटर वॉर की बात करें तो इथियोपिया-इजिप्ट, तुर्की और इराक की तरह ब्रह्मपुत्र को लेकर भारत-चीन में भी विवाद है.

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आबादी ही विवाद का मुख्य कारण भी

भारत-चीन की आबादी भले ही दुनिया की कुल आबादी का 37 फीसदी हो लेकिन सामूहिक रूप से इन दोनों देशों में दुनिया का केवल 11% फ्रेश पानी मौजूद है. जल प्रदूषण और औद्योगीकरण अर्थव्यवस्थाओं की बढ़ती मांगों के कारण यह बेमेल और भी बढ़ गया है. 

पानी को लेकर चीन की बेचैनी का एक कारण ये भी है कि उसकी करीब 23 मिलियन आबादी के सामने साफ पानी पीने का संकट है. चीन के कई इलाकों में बिजली संकट भी आम है. इसलिए हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट चीन की मजबूरी हैं. चीन के सरकारी आंकड़ों के अनुसार चीन का लगभग 60 प्रतिशत भूजल दूषित है. चीन की 12वीं पंचवर्षीय योजना में माना गया था कि जल संसाधनों की कमी के कारण देश की आर्थिक स्थिति प्रभावित हो रही है.

वहीं, दूसरी ओर नदियां भारत के लिए लाइफलाइन की तरह हैं. देश की बड़ी आबादी नदियों से सीधे तौर पर जुड़ी हैं. ब्रह्मपुत्र नदी की ही बात करें तो ये भारत के पूर्वोत्तर इलाके के लिए वरदान जैसी है. रिपोर्ट्स की मानें तो केवल असम की ही 27 मिलियन आबादी को इस नदी से फायदा होता है. सांस्कृतिक और पौराणिक तौर पर भी इस नदी का बड़ा महत्व है. बिजली उत्पादन और मछली के लिए भी इस नदी की काफी अहमियत है. रणनीतिक रूप से भी ब्रह्मपुत्र भारत के लिए काफी अहम है.

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ब्रह्मपुत्र नदी का किस देश में कितना हिस्सा

ब्रह्मपुत्र नदी की बात करें तो इसकी कुल लंबाई करीब 2900 किमी है. जिसमें यह करीब 1700 किमी चीन के क्षेत्र में बहती है और फिर अनुमानित 916 किमी यह भारत की सीमा में रहकर बहती है. फिर तीस्ता नदी से मिलकर बाकी बचे हुए हिस्से बांग्लादेश की सीमा में आते हैं. 

अब जानिए ताजा विवाद क्या है...

दरअसल, 25 दिसंबर को चीन ने तिब्बत में यारलुंग त्सांगपो (ब्रह्मपुत्र) नदी पर दुनिया की सबसे बड़ी जलविद्युत परियोजना के निर्माण को मंजूरी दी. यह 60,000 मेगावाट (MW) की क्षमता वाली परियोजना दुनिया की सबसे बड़ी जलविद्युत परियोजना थ्री गॉर्जेस डैम से तीन गुना अधिक बिजली उत्पादन करेगी. लेकिन इसको लेकर भारत ने सवाल उठाए हैं.

भारत को इससे क्या नुकसान

इस परियोजना के निर्माण का असर पूर्वोत्तर भारत के लाखों लोगों उनकी आजीविका और पारिस्थितिकी पर पड़ सकता है.  कई पर्यावरणविद पहले भी चीन की इस कोशिश पर चिंता जाहिर कर चुके है. भारत ने भी चीन के लिए फैसले का कड़ा विरोध किया है. असम के मुख्यमंत्री हिमंता ने भी सवाल खड़े किए हैं. तर्क दिया जा रहा है कि चीन के इस बड़े डैम के निर्माण से आसपास की अन्य नदियों पर बुरा असर पड़ेगा. भारत आने वाले पानी का फ्लो घट जाएगा. 

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यारलुंग त्सांगपो परियोजना क्या है?

रिपोर्ट के अनुसार, इस परियोजना का जिक्र चीन की 14वीं पंचवर्षीय योजना (2021-2025) में हुआ था. यह 'ग्रेट बेंड' के पास है, जहां ब्रह्मपुत्र नदी अरुणाचल प्रदेश में प्रवेश करने से पहले मेदोग काउंटी में लगभग यू-टर्न लेती है.


चीन का इस परियोजना को लेकर क्या है दावा


चीन का दावा है कि यह परियोजना उसे पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों से दूर ले जाकर 2060 तक नेट कार्बन न्यूट्रलिटी हासिल करने में मदद करेगी. उसका कहना है ब्रह्मपुत्र नदी का बहाव इन स्थितियों के लिए आदर्श है.

हथियार के रूप में इस्तेमाल कर सकता है चीन

चीन इस डैम का इस्तेमाल हाइड्रोपावर के लिए तो करेगा ही, लेकिन इसका इस्तेमाल एक हथियार के रूप में भी किया जा सकता है. जैसे कि अगर दोनों मुल्कों में तनाव बढ़ते हैं तो चीन इस डैम से भारत के सीमाई इलाकों में भारी मात्रा में वाटर फ्लो करके बाढ़ जैसे हालात पैदा कर सकता है.

पुराने अनुभव क्या बताते हैं...

ब्रह्मपुत्र नदी पर प्रस्तावित इस बांध को लेकर तमाम सवाल उठ रहे हैं. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी चिंता जाहिर की गई. भारत भी विरोध जता रहा है. चीन के पुराने प्रयोग बताते हैं कि ये विरोध यूं ही नहीं हैं. इससे पहले चीन ने हुबेई प्रांत के यियांग शहर में यांगत्जी नदी पर 'थ्री गॉर्जेस डैम' बनाया था. इस बांध का आसपास के क्षेत्रों पर गंभीर पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभाव देखने को मिला था. उदाहरण के लिए, इस डैम ने 10 लाख से अधिक लोगों को विस्थापित किया था और इसके कारण भूकंप जैसी समस्याएं इस क्षेत्र में आम हो गई थीं. वहीं, ब्रह्मपुत्र नदी पर जहां बांध बनाने की चीन तैयारी कर रहा है वो हिमालयी क्षेत्र में आता है. वहां पहले से ही भूकंप के खतरे ज्यादा होते हैं.

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जानें ब्रह्मपुत्र पर कितने बांध

ब्रह्मपुत्र नदी या उससे जुड़ी नदियों पर पहले भी चीन कई परियोजनाओं की शुरुआत कर चुका है. 1998 में सबसे पहले चीन ने यामद्रोक हाइड्रोपावर स्टेशन की शुरुआत की थी. इसके बाद 2007 में झिकोंग हाइड्रो पावर स्टेशन फिर 2013, 2015 में जांगमू डैम, 2019 में और 2020 में भी अलग-अलग परियोजनाएं चालू की गईं. साथ ही 10 से ज्यादा परियोजनाएं अब भी प्रस्तावित हैं.

वहीं, भारत की बात करें तो अरुणाचल प्रदेश में सुबानसिरी डैम की शुरुआत की थी. लेकिन इसपर काम फिलहाल बंद है.  वहीं, 2001 में रंगानदी डैम, 2000 में रंगीत डैम बनाया गया था. वहीं, एक और प्रोजेक्ट दिबांग डैम का काम भी रुका हुआ है.

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