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बूंद-बूंद से बर्बाद होता पानी, साल दर साल सूख रहा महानगरों का गला... जल संकट की ओर बढ़ रहा भारत

देश में घटते जल स्तर के कारण लाखों लोग स्वच्छ पानी की कमी से जूझ रहे हैं. जहां जलवायु परिवर्तन पानी की कमी के पीछे का एक प्रमुख कारण है तो वहीं अत्यधिक उपयोग और बर्बादी ने भी जल संकट के खतरे को और बढ़ा दिया है. दिल्ली में भी हालत बदतर नजर आ रहे हैं. कई इलाकों को ड्राई जोन घोषित कर दिया गया है.

देश में लगातार पानी का संकट पैदा होता जा रहा है (प्रतीकात्मक तस्वीर) देश में लगातार पानी का संकट पैदा होता जा रहा है (प्रतीकात्मक तस्वीर)
सम्राट शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 14 जून 2024,
  • अपडेटेड 9:25 PM IST

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली इन दिनों जल संकट से जूझ रही है. कई इलाकों को ड्राई जोन घोषित किया जा चुका है. दिल्ली में रोजाना 50 मिलियन गैलन पानी की शॉर्टेज बताई जा रही है. लोग बूंद-बूंद पानी को मोहताज नजर आ रहे हैं. मुद्दे पर सियासत भी जारी है. दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार ने हरियाणा पर पानी की आपूर्ति न करने का आरोप लगाया है.

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हरियाणा द्वारा राष्ट्रीय राजधानी को अतिरिक्त पानी देने से इनकार करने के बाद दिल्ली में जल संकट कानूनी लड़ाई में बदल गया. हालांकि, केवल दिल्ली ही जल संकट का दंश नहीं झेल रही है, बल्कि देश के विभिन्न हिस्सों में पड़ रही भीषण गर्मी ने बिजली और पानी की खपत बढ़ा दी है. दिल्ली-बेंगलुरु जैसे तमाम महानगरों में भारी पानी की किल्लत देखने को मिल रही है.

घटते जल स्तर के कारण लाखों लोग स्वच्छ पानी की कमी से जूझ रहे हैं. जहां जलवायु परिवर्तन पानी की कमी के पीछे का एक प्रमुख कारण है तो वहीं अत्यधिक उपयोग और बर्बादी ने भी जल संकट के खतरे को और बढ़ा दिया है.

रिपोर्ट बताती है कि औसत भारतीय अपनी दैनिक पानी की ज़रूरत का 30 प्रतिशत बर्बाद कर देते हैं. यूनाइटेड स्टेट्स जियोलॉजिकल सर्वे के मुताबिक, प्रति मिनट 10 बूंदें टपकने वाला नल प्रतिदिन 3.6 लीटर पानी बर्बाद करता है. साथ ही, शौचालय के हर फ्लश में लगभग छह लीटर पानी खर्च होता है.

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डाउन टू अर्थ पत्रिका की रिपोर्ट में कहा गया है, "पानी की बर्बादी का एक और अनुमान बताता है कि हर दिन 4,84,20,000 करोड़ क्यूबिक मीटर यानी एक लीटर की 48.42 अरब बोतल पानी बर्बाद हो जाता है, जबकि इस देश में करीब 16 करोड़ लोगों को साफ और ताजा पानी नहीं मिल पाता है."

भारत में पानी की कितनी कमी है?

भारत में वैश्विक आबादी का लगभग 18 प्रतिशत हिस्सा रहता है, लेकिन वैश्विक जल संसाधनों का केवल चार प्रतिशत ही भारत में है. वर्ल्ड बैंक के मुताबिक भारत में प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता लगभग 1,100 क्यूबिक मीटर है, भारी किल्लत को दर्शाता है. कारण, जब प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 1,700 क्यूबिक मीटर यानी 17 लाख लीटर से कम होती है, तब माना जाता है कि देश में पानी की कमी हो रही है. लेकिन जब ये उपलब्धता 1,000 क्यूबिक मीटर यानी 10 लाख लीटर से कम हो जाएगी तो माना जाएगा कि भारत में पानी की भयानक किल्लत है. इसकी तुलना में, वैश्विक प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 5,500 क्यूबिक मीटर है.

देश में बढ़ती जनसंख्या और आर्थिक विकास ने मिलकर जल संसाधनों पर भारी दबाव डाला है. आधी सदी पहले, 1970 में, भारत में प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता वर्तमान स्तर से 2.5 गुना अधिक थी. 1970 में प्रति व्यक्ति मीठे पानी की उपलब्धता 2,594 क्यूबिक मीटर थी. वर्ल्ड बैंक के मुताबिक, यह लगातार कम होकर 1990 में 1,661 क्यूबिक मीटर और 2020 में 1,036 क्यूबिक मीटर रह गई.

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भारत में लगातार बढ़ता जल सकंट

उत्तरी और उत्तर-पश्चिमी भारत अन्य क्षेत्रों की तुलना में अधिक सकंट से जूझ रहा है. 2020 में, पंजाब ने सीमा से कहीं अधिक 164.4 प्रतिशत पानी निकाला. जल शक्ति मंत्रालय के मुताबिक, राजस्थान ने 2020 में अपने वार्षिक भूजल का 150.2 प्रतिशत, हरियाणा ने 134.6 प्रतिशत और दिल्ली ने 101.4 प्रतिशत निकाला.

 

क्या दुनिया के अन्य हिस्सों में भी पानी की कमी ऐसी ही है?

मीठे पानी की लगातार कमी वैश्विक समस्या से ज़्यादा सिर्फ भारत की समस्या है. 197 देशों में, प्रति व्यक्ति मीठे पानी की उपलब्धता के मामले में भारत 141वें स्थान पर है. आइसलैंड में प्रति व्यक्ति मीठे पानी की उपलब्धता सबसे ज़्यादा 4.6 लाख क्यूबिक मीटर है, कनाडा में 74,986 क्यूबिक मीटर और रूस में 29,929 क्यूबिक है.

देश में भारी जल संकट के बाद भी पानी का इस्तेमाल खूब हो रहा है. और कई इलाकों में लोग बूंद-बूंद को मोहताज नजर आ रहे हैं.

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