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'धर्म के आधार पर आरक्षण नहीं...', बंगाल सरकार की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी

जस्टिस गवई ने कहा, "धर्म के आधार पर आरक्षण नहीं हो सकता." राज्य सरकार की तरफ से पेश हुए सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने कहा, "यह धर्म के आधार पर नहीं, पिछड़ेपन के आधार पर है."

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aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 10 दिसंबर 2024,
  • अपडेटेड 11:03 AM IST

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने आरक्षण के मुद्दे पर सुनवाई करते हुए कहा, "धर्म के आधार पर आरक्षण नहीं दिया जा सकता." कोर्ट ने यह फैसला कलकत्ता हाई कोर्ट के उस फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई करते हुए सुनाया, जिसमें 2010 से पश्चिम बंगाल में कई जातियों को दिए गए ओबीसी दर्जे को रद्द कर दिया गया था. हाई कोर्ट के 22 मई के फैसले को चुनौती देने वाली बंगाल सरकार की याचिका सहित अन्य याचिकाओं पर जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने सुनवाई किया.

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जस्टिस गवई ने कहा, "आरक्षण धर्म के आधार पर नहीं हो सकता." राज्य सरकार की तरफ से पेश हुए सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने कहा, "यह धर्म के आधार पर नहीं है. यह पिछड़ेपन के आधार पर है." 

कलकत्ता हाई कोर्ट का क्या फैसला था?

हाई कोर्ट ने पश्चिम बंगाल में 2010 से दी गई कई जातियों को मिला ओबीसी का दर्जा रद्द कर दिया था और पब्लिक सेक्टर की नौकरियों और राज्य द्वारा संचालित शैक्षणिक संस्थानों में उनके लिए रिजर्वेशन को अवैध ठहराया था. हाई कोर्ट के फैसले में कहा गया था, "यकीनन इन समुदायों को ओबीसी घोषित करने के लिए धर्म ही एकमात्र मानदंड नजर आता है. मुसलमानों के 77 वर्गों को पिछड़ा वर्ग के रूप में चुनना मुस्लिम समुदाय का अपमान है."

राज्य के 2012 के रिजर्वेशन लॉ और 2010 में दिए गए आरक्षण के प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए हाई कोर्ट ने साफ किया कि जो नागरिक पहले से सेवा में हैं या आरक्षण का फायदा ले चुके हैं या राज्य के किसी सेलेक्शन प्रोसेस में सफल हुए हैं, उनकी सेवाएं इस फैसले से प्रभावित नहीं होंगी.

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हाई कोर्ट ने अप्रैल, 2010 और सितंबर, 2010 के बीच दिए गए कुल 77 रिजर्वेशन क्लासेज को खारिज कर दिया. इसने पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग अधिनियम, 2012 के तहत ओबीसी के रूप में दिए गए 37 आरक्षण वर्गों को भी खारिज कर दिया.

यह भी पढ़ें: 'आरक्षण के लिए नहीं दी जा सकती धर्मांतरण की इजाजत', SC ने खारिज की याचिका

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

सोमवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने मामले में उपस्थित वकीलों से मामले पर ओवरव्यू करने को कहा. 

हाईकोर्ट के फैसले का जिक्र करते हुए कपिल सिब्बल ने कहा कि अधिनियम के प्रावधानों को निरस्त कर दिया गया है. उन्होंने कहा, "इसलिए ये बहुत गंभीर मुद्दे हैं. इससे उन हजारों छात्रों के अधिकार प्रभावित होते हैं, जो विश्वविद्यालयों में दाखिला लेना चाहते हैं, जो लोग नौकरी चाहते हैं."

इसलिए कपिल सिब्बल ने बेंच से गुजारिश किया कि कुछ अंतरिम आदेश पारित किए जाएं और हाई कोर्ट के आदेश पर एकतरफा रोक लगाई जाए. बेंच ने सीनियर एडवोकेट पीएस पटवालिया सहित अन्य वकीलों की दलीलें भी सुनीं, जो मामले में कुछ याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व कर रहे थे. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह 7 जनवरी को विस्तृत दलीलें सुनेगा.

5 अगस्त को मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार से ओबीसी लिस्ट में शामिल की गई नई जातियों के सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन और पब्लिक सेक्टर की नौकरियों में उनके अपर्याप्त प्रतिनिधित्व पर आंकड़े उपलब्ध कराने को कहा था.

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हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ राज्य सरकार की याचिका पर निजी वादियों को नोटिस जारी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार से एक हलफनामा दाखिल करने को कहा, जिसमें 37 जातियों (ज्यादातर मुस्लिम समूह) को ओबीसी लिस्ट में शामिल करने से पहले उसके और राज्य के पिछड़ा वर्ग पैनल द्वारा किए गए परामर्श(अगर कोई हो) की जानकारी दी गई हो.

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