
इस समय धार्मिक स्थलों को लेकर विवाद चर्चा में बने हुए हैं. बात चाहे काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद की हो या फिर मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर और शाही ईदगाह मस्जिद की.. इन्हीं विवादों की चर्चा के बीच धार का भोजशाला विवाद भी चर्चा में आ गया है.
दरअसल, इंदौर हाईकोर्ट बेंच में धार भोजशाला का मामला पहुंच गया है. एक याचिका दायर की गई है. इस याचिका में यहां पर सरस्वती देवी की प्रतिमा स्थापित करने और पूरे भोजशाला परिसर की फोटोग्राफी-वीडियोग्राफी करवाने की मांग की गई है. इसके साथ ही यहां नमाज बंद कराने की मांग भी याचिका में की गई है.
धार का भोजशाला विवाद नया नहीं है. वसंत पंचमी आते ही यहां का विवाद चर्चा में आ जाता है. यहां कई बार सांप्रदायिक माहौल भी गर्म हो चुका है. फिलहाल यहां मंगलवार और वसंत पंचमी के दिन सरस्वती पूजा करने की इजाजत है और शुक्रवार के दिन नमाज पढ़ने की. अब हिंदू पक्ष ने मांग की है कि यहां नमाज को बंद किया जाए और पूरा परिसर हिंदुओं के हवाले किया जाए. भोजशाला का विवाद समझने से पहले यहां का इतिहास समझना जरूरी है.
क्या है इसका इतिहास?
हजार साल पहले धार में परमार वंश का शासन था. यहां पर 1000 से 1055 ईस्वी तक राजा भोज ने शासन किया. राजा भोज सरस्वती देवी के अनन्य भक्त थे. उन्होंने 1034 ईस्वी में यहां पर एक महाविद्यालय की स्थापना की, जिसे बाद में 'भोजशाला' के नाम से जाना जाने लगा. इसे हिंदू सरस्वती मंदिर भी मानते थे.
ऐसा कहा जाता है कि 1305 ईस्वी में अलाउद्दीन खिलजी ने भोजशाला को ध्वस्त कर दिया. बाद में 1401 ईस्वी में दिलावर खान गौरी ने भोजशाला के एक हिस्से में मस्जिद बनवा दी. 1514 ईस्वी में महमूद शाह खिलजी ने दूसरे हिस्से में भी मस्जिद बनवा दी.
बताया जाता है कि 1875 में यहां पर खुदाई की गई थी. इस खुदाई में सरस्वती देवी की एक प्रतिमा निकली. इस प्रतिमा को मेजर किनकेड नाम का अंग्रेज लंदन ले गया. फिलहाल ये प्रतिमा लंदन के संग्रहालय में है. हाईकोर्ट में दाखिल याचिका में इस प्रतिमा को लंदन से वापस लाए जाने की मांग भी की गई है.
आखिर क्या है विवाद?
हिंदू संगठन भोजशाला को राजा भोज कालीन इमारत बताते हुए इसे सरस्वती का मंदिर मानते हैं. हिंदुओं का तर्क है कि राजवंश काल में यहां कुछ समय के लिए मुस्लिमों को नमाज पढ़ने की अनुमति दी गई थी. दूसरी ओर, मुस्लिम समाज का कहना है कि वो सालों से यहां नमाज पढ़ते आ रहे हैं. मुस्लिम इसे भोजशाला-कमाल मौलाना मस्जिद कहते हैं.
ये भी पढ़ें-- कौन हैं राजकुमारी दीया सिंह जो ताजमहल की मिल्कियत का कर रही हैं दावा, जयपुर राजघराने से है नाता
यहां पूजा और नमाज की अनुमति कैसे मिली?
1909 में धार रियासत ने भोजशाला को संरक्षित स्मारक घोषित कर दिया. बाद में इसे पुरातत्व विभाग को सौंप दिया गया. इसकी देखरेख की जिम्मेदारी पुरातत्व विभाग के पास ही है. धार रियासत ने ही 1935 में यहां शुक्रवार को नमाज पढ़ने की अनुमति दी थी. पहले भोजशाला शुक्रवार को ही खुलती थी.
1995 में यहां विवाद हो गया. इसके बाद मंगलवार को पूजा और शुक्रवार को नमाज पढ़ने की अनुमति दे दी गई. 12 मई 1997 को कलेक्टर ने भोजशाला में आम लोगों के आने पर प्रतिबंध लगा दिया और मंगलवार को होने वाली पूजा पर भी रोक लगा दी. सिर्फ वसंत पंचमी के दिन पूजा और शुक्रवार को ही नमाज पढ़ने की अनुमति दी गई. 31 जुलाई 1997 को ये प्रतिबंध हटा दिया गया.
6 फरवरी 1998 को पुरातत्व विभाग ने आगामी आदेश तक प्रवेश पर रोक लगा दी. मंगलवार की पूजा भी बंद हो गई. 2003 में मंगलवार को फिर से पूजा करने की अनुमति दी गई. पर्यटकों के लिए भी भोजशाला को खोल दिया गया.
2013 में बसंत पंचमी और शुक्रवार एक ही दिन पड़ गया, जिससे यहां माहौल बिगड़ गया. हिंदुओं ने जगह छोड़ने से इनकार कर दिया. माहौल इतना बिगड़ा कि पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा. इसके बाद 2016 में भी बसंत पंचमी और शुक्रवार एक ही दिन पड़ने पर यहां तनाव का माहौल बन गया था. हिंदू यहां सरस्वती की फोटो रखकर पूजा करते हैं.