Advertisement

जब इलेक्टोरल बॉन्ड नहीं था, तब कैसे आता था चुनावी चंदा, किन समस्याओं को दूर करने के लिए लाई गई यह योजना?

राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से केंद्र सरकार ने 2017 के बजट में चुनावी बॉन्ड योजना के बारे में जानकारी दी थी. इसके बाद साल 2018 में इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम संसद से पारित हुई और सरकार ने इसी साल इसको अधिसूचित किया.

सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को असंवैधानिक बताते हुए इसकी वैधता को रद्द कर दिया. (प्रतीकात्मक तस्वीर/आज तक) सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को असंवैधानिक बताते हुए इसकी वैधता को रद्द कर दिया. (प्रतीकात्मक तस्वीर/आज तक)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 15 फरवरी 2024,
  • अपडेटेड 1:55 PM IST

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने गुरुवार को चुनावी बॉन्ड योजना (Electoral Bonds Scheme) को असंवैधानिक करार देते हुए इसे रद्द कर दिया. शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड की गोपनीयता अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत सूचना के अधिकार का उल्लंघन है. भारत के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पांच-जजों की संविधान पीठ ने भारतीय स्टेट बैंक (SBI) को तत्काल प्रभाव से चुनावी बॉन्ड को बंद करने का निर्देश दिया. बता दें कि चुनावी बॉन्ड योजना के शुरू होने के बाद से ही सवालों के घेरे में थी. आइए जानते हैं कि केंद्र सरकार द्वारा लाई गई यह स्कीम क्या थी, इसको लेकर सरकार ने क्या दावे किए थे और इससे पहले राजनीतिक पार्टियों को चुनावी चंदा देने की क्या प्रक्रिया थी?

Advertisement

इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम क्या है?

राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से केंद्र सरकार ने 2017 के बजट में चुनावी बॉन्ड योजना के बारे में जानकारी दी थी. इसके बाद साल 2018 में इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम संसद से पारित हुई और सरकार ने इसी साल इसको अधिसूचित किया. इस योजना के जरिए कोई व्यक्ति, कॉरपोरेट और संस्थाएं बॉन्ड खरीदकर राजनीतिक दलों को चंदा देती हैं. राजनीतिक दल इस बॉन्ड को बैंक में भुनाकर रकम हासिल करते हैं. भारतीय स्टेट बैंक की 29 शाखाओं को इलेक्टोरल बॉन्ड जारी करने और उसे इनकैश करने के लिए अधिकृत किया गया था. इस लिस्ट में नई दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, गांधीनगर, चंडीगढ़, पटना, रांची, गुवाहाटी, भोपाल, जयपुर और बेंगलुरु स्थित SBI की शाखाएं शामिल थीं. इस योजना की खास बात यह है कि चंदा देने वाला अपनी पहचान गोपनीय रखते हुए स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से एक करोड़ रुपए तक के इलेक्टोरल बॉन्ड्स खरीद सकता है और अपने पसंद की राजनीतिक पार्टी को डोनेट कर सकता है.

Advertisement

इलेक्टोरल बॉन्ड क्यों लाया गया था?

केंद्र की बीजेपी सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड की शुरुआत करते वक्त दावा किया था कि इससे राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता बढ़ेगी और बिल्कुल साफ-सुथरे तरीके से पार्टियों को चंदा मिलेगा. भारतीय वित्त मंत्रालय की शाखा आर्थिक कार्य विभाग के द्वारा 2 जनवरी 2018 को जारी की गई प्रेस रिलीज में कहा गया था कि सरकार ने पॉलिटिकल डोनेशन में ब्लैक मनी को रोकने के लिए चुनावी बॉन्ड योजना को अधिसूचित किया है. तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने जनवरी 2018 में कहा था कि इलेक्टोरल बॉन्ड योजना राजनीतिक चंदे में 'साफ-सुथरा' धन लाने और 'पारदर्श‍िता' बढ़ाने के लिए लाई गई है.'

अरुण जेटली ने कहा था कि इस योजना से राजनीतिक फंडिंग में दो स्तर पर पारदर्शिता आएगी- पहला, चंदा देने वाले के अकाउंट में रिफ्लेक्ट होगा कि उसने कितने के इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदे हैं और दूसरा, राजनीतिक पार्टी को भी बताना होगा कि उसे कुल कितना चंदा मिला है. उन्होंने कहा था कि चुनावी बॉन्ड योजना का उद्देश्य भी राजनीति में काले धन के उपयोग को रोकना था, जैसा कि यूपीए के दूसरे कार्यकाल के दौरान प्रस्तावित इलेक्टोरल ट्रस्ट के जरिए हासिल करने की कोशिश की गई थी.

अरुण जेटली ने चुनावी बॉन्ड को क्यों बताया था जरूरी?

Advertisement

इलेक्टोरल बॉन्ड की आवश्यकता पर अरुण जेटली ने 7 जनवरी 2018 को एक आर्टिकल में लिखा था, 'भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है. पिछले सात दशकों से विभिन्न संस्थानों को मजबूत करने के बावजूद, भारत एक पारदर्शी राजनीतिक फंडिंग सिस्टम विकसित नहीं कर पाया है. चुनाव और राजनीतिक दल संसदीय लोकतंत्र की मूलभूत विशेषता हैं. चुनाव में पैसा खर्च होता है. राजनीतिक दलों के साल भर के कामकाज में बड़ा खर्च शामिल होता है. पार्टियां पूरे देश में कार्यालय चलाती हैं. कर्मचारियों का वेतन, यात्रा खर्च, राजनीतिक दलों के नियमित खर्च हैं. ऐसा कोई वर्ष नहीं गया, जब संसद या राज्य विधानसभाओं के लिए चुनाव न हुए हों. व्यक्तिगत उम्मीदवारों के खर्च के अलावा, राजनीतिक दलों को चुनाव प्रचार, यात्रा और चुनाव से संबंधित आयोजनों पर भी पैसे खर्च करने पड़ते हैं. ये खर्च सैकड़ों करोड़ों का होता है. फिर भी राजनीतिक फंडिंग के लिए कोई पारदर्शी व्यवस्था नहीं बन पाई है'.

उन्होंने आगे लिखा था, 'अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली पहली एनडीए सरकार के दौरान एक बड़ा कदम उठाया गया था. आयकर अधिनियम में यह प्रावधान शामिल करने के लिए संशोधन किया गया कि राजनीतिक दलों को दिए गए चंदे को व्यय माना जाएगा और इस प्रकार चंदा देने वाले को कर लाभ मिलेगा. अगर राजनीतिक दल निर्धारित तरीके से अपने चंदे का खुलासा करता है, तो उसे कोई कर भी नहीं देना होगा. एक राजनीतिक दल से अपेक्षा की जाती थी कि वह आयकर अधिकारियों और चुनाव आयोग दोनों के साथ अपना रिटर्न दाखिल करेगा. उम्मीद थी कि चंदा देने वाले तेजी से चेक के जरिए भुगतान करना शुरू कर देंगे. कुछ चंदा देने वालों ने इस प्रोसेस का पालन करना शुरू कर दिया था, लेकिन उनमें से ज्यादातर किसी राजनीतिक दल को दिए गए चंदे की मात्रा की जानकारी का खुलासा करने में अनिच्छुक थे'.

Advertisement

इलेक्टोरल बॉन्ड से पहले कैसे दिया जाता था राजनीतिक चंदा?

केंद्र सरकार के द्वारा चुनावी बॉन्ड स्कीम लाए जाने से पहले राजनीतिक पार्टियों को चेक के जरिए चंदा दिया था. चंदे में दी गई राशि की पूरी जानकारी उनके एनुअल अकाउंट में होती थी. राजनीतिक पार्टियां चुनाव आयोग को चंदा देने वाले का नाम और प्राप्त राशि की जानकारी देती थीं. ऐसी स्थिति में आमतौर पर कॉरपोरेट चेक के जरिए बड़ी रकम का चंदा देने से बचते थे, क्योंकि इसकी पूरी जानकारी आयोग को देनी होती थी. बता दें कि आज से लगभग 40 साल पहले सभी राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं के पास एक रसीद बुक हुआ करती थी. इस बुक को लेकर कार्यकर्ता घर-घर जाते थे और अपनी पार्टी के लिए लोगों से चंदा वसूलते थे. 

नवंबर 2023 में केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि वित्त वर्ष 2004-05 से 2014-15 के बीच 11 साल की अवधि के दौरान राजनीतिक दलों की कुल आय का 69 फीसदी हिस्सा 'अज्ञात स्रोतों' से प्राप्त हुआ था. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट को ADR की रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया था कि इस अवधि के दौरान, 'अज्ञात स्रोतों' से राष्ट्रीय पार्टियों की आय 6,612.42 करोड़ रुपये और क्षेत्रीय पार्टियों की आय 1,220.56 करोड़ रुपये थी. अज्ञात स्रोत का अर्थ हुआ कि ऐसे राजनीतिक चंदे का कोई लेखा जोखा नहीं होता. ऐसे राजनीतिक चंदे कैश में दिए जाते हैं और बैंकिंग सिस्टम से बाहर रहते हैं. इस कारण ऐसे चंदे को ब्लैक मनी माना जा सकता है.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement