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अनुच्छेद 370 हटने के 5 साल बाद आज पहली बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर दौरे पर पहुंच रहे हैं. वे वहां बड़ी जनसभा को संबोधित करेंगे और कृषि अर्थव्यवस्था और पर्यटक उद्योग को नई रफ्तार देने के लिए 6400 करोड़ की विकास परियोजनाओं की सौगात देंगे. पीएम मोदी श्रीनगर में बख्शी स्टेडियम से हजरतबल (दरगाह) तीर्थस्थल प्रोजेक्ट और सोनमर्ग स्की ड्रैग लिफ्ट के एकीकृत विकास परियोजनाओं का उद्घाटन भी करेंगे. जम्मू कश्मीर में हजरतबल दरगाह को मुस्लिम तीर्थस्थलों में सबसे प्रतिष्ठित और खास माना जाता है. जानिए हजरतबल दरगाह का इंटीग्रेटेड डेवलपमेंट और इतिहास के बारे में....
हजरतबल दरगाह को तीर्थयात्रा कायाकल्प और आध्यात्मिक संवर्धन अभियान (प्रसाद) के तहत विकसित किया गया है. श्रीनगर में स्थानीय लोग बताते हैं कि हजरतबल दरगाह में हर धर्म से जुड़े लोग मत्था टेकने के लिए आते हैं. इसे ऐतिहासिक दरगाह भी कहा जाता है. जो लोग कश्मीर के इतिहास से वाकिफ हैं, उन्हें इसका ऐतिहासिक महत्व पता होगा. पीएम कश्मीरियों के साथ संवाद करेंगे और उनका हाल-चाल जाना.
हजरतबल दरगाह में क्या विकास कार्य हुए?
हजरतबल तीर्थ पर तीर्थयात्रियों और पर्यटकों के लिए विश्व स्तरीय बुनियादी ढांचा तैयार किया गया है. पीएम मोदी ने कहा कि यहां होने वाले विकास कार्य पूरे हो गए हैं. यहां बेहतरीन सुविधाओं का निर्माण किया गया है. परियोजना में प्रमुख रूप से तीर्थस्थल की चारदीवारी के निर्माण हुआ है. पूरे क्षेत्र का स्थल विकास भी शामिल है. हजरतबल तीर्थ परिसर में रोशनी की व्यवस्था की गई है. तीर्थस्थल के चारों ओर घाटों और देवरी पथों का सुधार किया गया है. सूफी व्याख्या केंद्र का निर्माण किया गया. पर्यटक सुविधा केंद्र का निर्माण, संकेतक की स्थापना, बहुस्तरीय मंजिला कार पार्किंग, सार्वजनिक सुविधा ब्लॉक और तीर्थस्थल के प्रवेश द्वार का निर्माण और अन्य कार्य शामिल हैं.
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जानिए क्या है हजरतबल दरगाह का ऐतिहासिक महत्व?
- इस्लामिक मान्यता है कि इस दरगाह में इस्लाम धर्म के आखिरी नबी पैगंबर मोहम्मद साहब का दाढ़ी का बाल सुरक्षित रखा हुआ है. कहा जाता है कि मोहम्मद साहब के बाल को सैयद अब्दुल्ला द्वारा कश्मीर लाया गया था, फिर उन्होंने इसी दरगाह पर उनके बाल को दफना दिया था.
- कश्मीरी भाषा में 'बल' का अर्थ 'जगह' होता है और हजरतबल का अर्थ है 'हजरत (मुहम्मद) की जगह'. हजरतबल कश्मीर की डल झील की बाईं ओर स्थित है. चूंकि यह दरगाह हजरत से जुड़ी हुई है. इसलिए इसके दीदार करने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं. सभी धर्मों से जुड़े लोग भी मन्नत मांगने के लिए आते हैं.
- इसे कश्मीर का सबसे पवित्र मुस्लिम तीर्थ माना जाता है. फारसी भाषा में 'बाल' को 'मू' या 'मो' कहा जाता है, इसलिए हजरतबल में सुरक्षित बाल को 'मो-ए-मुक़द्दस' या 'मो-ए-मुबारक' (पवित्र बाल) भी कहा जाता है.
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- हजरतबल दरगाह का इतिहास 17वीं सदी से जुड़ा है. कहा जाता है कि कश्मीर में मुगल बादशाह शाहजहां के सूबेदार सादिक खान ने 1623 ईस्वी में यहां बगीचे, इमारत और आरामगाह बनवाया था. साल 1634 में शाहजहां ने इस महल को इबादतगाह में बदलने का आदेश दिया था. कहते हैं कि इस दरगाह का निर्माण 1968 में मुस्लिम औकाफ ट्रस्ट के शेख मोहम्मद अब्दुल्ला की देखरेख में शुरू हुआ था. इस इमारत का निर्माण साल 1979 में पूरा हुआ था.
- दरगाह में प्रवेश करने से पहले आपको सिर ढकना होता है. दरगाह में कोई भी महिला नहीं जा सकती है. क्योंकि ये दरगाह के साथ-साथ एक मस्जिद भी है. यह मस्जिद पैगंबर के लिए मुस्लिमों के प्यार और भक्ति का प्रतीक मानी जाती है.
- सफेद संगमरमर के बाहरी हिस्से की वजह से हजरतबल को 'सफेद मस्जिद' के रूप में भी जाना जाता है. यह वास्तुकला और सुंदरता के लिए भी प्रसिद्ध है. भारतीय और पाकिस्तानी दोनों देशों के लोगों के लिए प्रसिद्ध तीर्थ स्थल भी है.
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- इस दरगाह की वास्तुकला बहुत ही खूबसूरत है. इसे कश्मीरी स्थापत्य शैली और मुगल वास्तुकला की तरह बनाया गया है. कई दरवाजे हैं जहां से अंदर जा सकते हैं. दरगाह के आसपास कई खूबसूरत गार्डन भी हैं.
राहुल गांधी भी पहुंचे थे हजरतबल दरगाह...
- जनवरी 2023 में कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा श्रीनगर में समाप्त होने के बाद राहुल गांधी भी हजरतबल दरगाह पहुंचे थे. यहां उन्होंने जियारत की थी और देश में अमन और शांति की दुआ की थी.
जब आतंकियों ने हजरतबल दरगाह में कर लिया था कब्जा
- हजरतबल दरगाह से 90 के दशक की एक बड़ी आतंकी घटना भी जुड़ी हुई है. 15 अक्टूबर 1993 को जम्मू कश्मीर लिब्रेशन फ्रंट (JKLF) के करीब 50-70 आतंकी हथियारों के साथ हजरतबल दरगाह में दाखिल हुए थे. इन आतंकियों ने हजरतबल दरगाह पर कब्जा कर लिया और यहां मौजूद सभी लोगों को बंधक बना लिया था.
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- इसके अगले दिन सुरक्षाबलों ने दरगाह को घेर लिया. 32 दिन तक आतंकी दरगाह पर कब्जा किए रहे. इस दौरान सरकार और आतंकियों के बीच बातचीत जारी रही. 32 दिन बाद सभी आतंकियों को सुरक्षित जाने दिया गया. आतंकियों को बिना शर्त छोड़ दिया गया. इस घटना को लेकर मौजूदा नरसिम्हा राव सरकार की काफी आलोचना भी हुई थी.