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क्या है विशेष राज्य का दर्जा और विशेष श्रेणी का राज्य... नई सरकार के गठन के साथ क्यों चर्चा में हैं दोनों Terms

विशेष श्रेणी का दर्जा यानी SCS किसी पिछड़े राज्य को उनकी विकास दर के आधार पर दिया जाता है. यदि कोई राज्य भौगोलिक, सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा हो उसको कर और शुल्क में विशेष छूट देने के लिए विशिष्ट दर्जा दिया जाता है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, प्रमुख सहयोगी टीडीपी प्रमुख एन चंद्रबाबू नायडू और जेडी(यू) प्रमुख नीतीश कुमार के साथ एनडीए की बैठक की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, प्रमुख सहयोगी टीडीपी प्रमुख एन चंद्रबाबू नायडू और जेडी(यू) प्रमुख नीतीश कुमार के साथ एनडीए की बैठक की
संजय शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 06 जून 2024,
  • अपडेटेड 12:10 AM IST

नई सरकार के गठन की सुगबुगाहट के बीच नई शब्दावली भी चर्चा में है. विशेष राज्य का दर्जा और विशेष श्रेणी का राज्य! सुनने में ये शब्द भले एक से लगते हैं, लेकिन इनके मायने अलग हैं. राजनीतिक हलकों में एनडीए के घटक दलों में से जनता दल यूनाइटेड और तेलगुदेशम की विशेष दर्जे वाले राज्य की संभावित मांगों को लेकर अटकलों का बाजार गर्म है. ऐसे में SCS क्या है? किसी राज्य को यह दर्जा कैसे दिया जाता है और इससे उस राज्य और वहां की जनता को क्या लाभ होते हैं? आइए जानते हैं. 

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संविधान में नहीं है कोई प्रावधान
विशेष श्रेणी का दर्जा यानी SCS किसी पिछड़े राज्य को उनकी विकास दर के आधार पर दिया जाता है. यदि कोई राज्य भौगोलिक, सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा हो उसको कर और शुल्क में विशेष छूट देने के लिए विशिष्ट दर्जा दिया जाता है. हालांकि संविधान में किसी राज्य को उसके समग्र विकास के लिए विशेष दर्जा देने का कोई प्रावधान नहीं है, लेकिन 1969 में पांचवें वित्त आयोग की सिफारिश पर पिछड़े राज्यों को विशेष श्रेणी का दर्जा देने का प्रावधान किया गया.

इन राज्यों को मिला 1969 में विशेष दर्जा
इस श्रेणी में इस प्रावधान से पहले जम्मू और कश्मीर को विशिष्ट दर्जा मिला. हालांकि अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद अब वो एक केंद्र शासित प्रदेश है. इसके बाद पूर्वोत्तर के असम और नगालैंड ऐसे पहले राज्य थे जिन्हें 1969 में विशेष दर्जा दिया गया था. बाद में हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, सिक्किम, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, उत्तराखंड और तेलंगाना सहित ग्यारह राज्यों को विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा दिया गया.

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विशेष दर्जे से अलग है विशेष श्रेणी राज्य
तत्कालीन कांग्रेस नीत यूपीए सरकार के तहत 18 फरवरी 2014 को संसद ने विधेयक पारित कर तेलंगाना को आंध्र प्रदेश से अलग कर विशेष दर्जा दिया. इसके बाद 14वें वित्त आयोग ने पूर्वोत्तर और तीन पहाड़ी राज्यों को छोड़कर शेष राज्यों के लिए 'विशेष श्रेणी का दर्जा' समाप्त कर दिया. ऐसे राज्यों में संसाधन अंतर को कर हस्तांतरण के माध्यम से समायोजित करने का सुझाव दिया है. इसके लिए कर हस्तांतरण को 32% से बढ़ाकर 42% करने की सिफारिश की गई है. विशेष श्रेणी राज्य, विशेष दर्जे से अलग है. विशेष दर्जा विधायी और राजनीतिक अधिकारों को बढ़ाता है. स्पेशल स्टेटस स्टेट यानी एससीएस केवल आर्थिक और वित्तीय पहलुओं से संबंधित है.

राज्य को विशेष दर्जा देने के लिए है कुछ शर्तें
किसी राज्य को विशेष दर्जा देने के लिए कुछ शर्तें और अनिवार्यताएं हैं. यदि कोई पहाड़ी राज्य कम जनसंख्या घनत्व वाला हो या वहां जनजातीय आबादी का बड़ा हिस्सा हो या फिर पड़ोसी देशों के साथ सीमाओं पर रणनीतिक महत्व वाला क्षेत्र हो या फिर आर्थिक और बुनियादी ढांचे में पिछड़ा हुआ राज्य हो.  जिस राज्य में वित्त की अव्यवहार्य प्रकृति हो. 

विशेष श्रेणी का दर्जा मिलने पर राज्य को मिलते हैं क्या लाभ?
विशेष श्रेणी का दर्जा मिलने पर केंद्र सरकार उस राज्य को केंद्र प्रायोजित योजनाएं लागू करने के लिए 90 प्रतिशत धनराशि देती है, जबकि अन्य राज्यों में यह 60 प्रतिशत या 75 प्रतिशत होती है. बाकी धनराशि राज्य सरकार खर्चती है. यदि आबंटित धनराशि खर्च नहीं की जाती है तो वह समाप्त नहीं होती है तथा उसे कैरी फॉरवर्ड यानी आगे ले जाया जाता है. राज्य को सीमा शुल्क, आयकर और कॉर्पोरेट कर सहित करों और शुल्कों में भी महत्वपूर्ण रियायतें मिलती हैं. केन्द्र के सकल बजट का 30 प्रतिशत हिस्सा विशेष श्रेणी वाले राज्यों को जाता है. 

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