
लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election) नतीजों के बाद 18वीं लोकसभा का गठन हो चुका है. नरेंद्र मोदी ने तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली. इसके साथ ही उनके मंत्रिमंडल का हिस्सी बनने वाले सांसदों ने भी मंत्री पद की शपथ ली. मिनिस्टर पद की शपथ लेने वाले सांसदों में रवनीत सिंह बिट्टू का भी नाम है, जो पंजाब से सिख चेहरे के रूप में मोदी सरकार का हिस्सा होंगे. लोकसभा चुनाव में भले ही बिट्टू (48) लुधियाना से हार गए लेकिन उनको केंद्रीय मंत्री बनाया गया.
बीजेपी ने पटियाला की पूर्व सांसद और पंजाब के पूर्व सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह की पत्नी परनीत कौर, अमृतसर से हारने वाले पूर्व राजनयिक तरनजीत सिंह संधू, बठिंडा से हारने वाली पूर्व आईएएस अधिकारी परमपाल कौर सिद्धू और फरीदकोट से हारने वाले गायक हंस राज हंस की जगह रवनीत सिंह बिट्टू को चुना है. बता दें कि बीजेपी राज्य में खाता नहीं खोल सकी है.
कौन हैं रवनीत सिंह बिट्टू?
तीन बार कांग्रेस सांसद रह चुके रवनीत सिंह बिट्टू पहली बार 2009 में आनंदपुर साहिब से लोकसभा के लिए चुने गए थे. इसके बाद 2014 और 2019 में लुधियाना से जीते थे. हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव से पहले, वे बीजेपी में शामिल हो गए, लेकिन पंजाब कांग्रेस प्रमुख अमरिंदर सिंह राजा वारिंग से लगभग 20 हजार वोटों से हार गए. बिट्टू ने पांच शहरी क्षेत्रों में बढ़त हासिल की, लेकिन बीजेपी के खिलाफ किसानों के विरोध की वजह से ग्रामीण इलाकों में उन्हें हार का सामना करना पड़ा.
सीमेंट यूनिट चलाते थे बिट्टू, राहुल गांधी की वजह से सियासत में आए
बिट्टू की उम्र सिर्फ 11 साल थी, जब उनके पिता की मौत हो गई और 20 साल की उम्र में उनके दादा और पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की 31 अगस्त 1995 को चंडीगढ़ में खालिस्तान समर्थक आतंकवादियों ने हत्या कर दी. साल 2007 में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से मुलाकात के बाद बिट्टू राजनीति में आए. उससे पहले बिट्टू एक छोटी सी सीमेंट प्रोडक्शन यूनिट चलाते थे. बिट्टू को 2008 में 33 साल की उम्र में पंजाब युवा कांग्रेस का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था.
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खालिस्तानी समर्थकों के आलोचक हैं बिट्टू
लुधियाना जिले के कोटला अफगाना गांव से ताल्लुक रखने वाले बिट्टू का परिवार कांग्रेसी रहा है. उनके बीजेपी में शामिल होने के बाद परिवार में राजनीतिक मतभेद हो गया है. उनके चाचा तेज प्रकाश सिंह पूर्व कैबिनेट मंत्री थे और उनके चचेरे भाई गुरकीरत कोटली दो बार विधायक और कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं. दोनों अभी भी कांग्रेस में हैं और लोकसभा चुनाव में पार्टी के लिए प्रचार कर चुके हैं.
खालिस्तान समर्थक कट्टरपंथी आवाजों के मुखर आलोचक माने जाने वाले बिट्टू को कई बार धमकियां भी मिल चुकी हैं. रवनीत सिंह बिट्टू ने 2017 के विधानसभा चुनाव में जलालाबाद से तत्कालीन डिप्टी सीएम सुखबीर सिंह बादल और तत्कालीन राज्य AAP प्रमुख भगवंत मान के खिलाफ चुनाव लड़ा था और तीसरे स्थान पर रहे थे.
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लुधियाना के सांसद के रूप में अपने 10 साल के कार्यकाल में बिट्टू को काफी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा, खासकर तब जब उनके सौतेले भाई गुरइकबाल सिंह हनी को कांग्रेस सरकार के दौरान सहानुभूति के आधार पर पंजाब पुलिस का उपाधीक्षक नियुक्त किया गया था.