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पॉलिटिकल PR का बढ़ता क्रेज, आखिर नेताओं को क्यों पड़ने लगी एजेंसियों की जरूरत?

भारत में चुनावी अभियानों और इससे जुड़ी पेचीदगियां पहले के मुकाबले अब काफी हद तक बदल गई हैं. भारत में चुनावी प्रचार-प्रसार में राजनीतिक सलाहकार पुराने राजनीतिक दलों के साथ मिलकर महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं. यदि कोई एक राजनीतिक दल किसी फर्म की सेवाओं का लाभ उठाता है तो दूसरी राजनीतिक पार्टी पीछे नहीं रहना चाहती है.

भारत में राजनीतिक सलाह देने के क्षेत्र में अन्य खिलाड़ी प्रमुखता से उभरे हैं. भारत में राजनीतिक सलाह देने के क्षेत्र में अन्य खिलाड़ी प्रमुखता से उभरे हैं.
राहुल गौतम/अमित भारद्वाज
  • नई दिल्ली,
  • 19 जुलाई 2024,
  • अपडेटेड 11:56 PM IST

कोई पैदाइशी नेता नहीं होता. बल्कि हालातों में तपकर और परिस्थितियों में ढलकर नेता तैयार होते हैं. वैसे है तो यह एक कहावत है, लेकिन सच भी है. राजनीतिक कामों के लिए जिस तेजी से सलाह देने वाली फर्मों की संख्या में तेजी आई है वो इस बात का सबूत भी है. इंडिया टुडे ने इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमेटी (IPAC) जैसी कुछ शीर्ष राजनीतिक परामर्श एजेंसियों (Political Consulting Agencies) के लोगों से बात की, ताकि यह समझा जा सके कि उनकी तेजी से बढ़ती लोकप्रियता के पीछे आखिर क्या कारण है और कहां सावधानी बरतने की जरूरत है.

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भारत में चुनावी अभियानों और इससे जुड़ी पेचीदगियां पहले के मुकाबले अब काफी हद तक बदल गई हैं. भारत में चुनावी प्रचार-प्रसार में राजनीतिक सलाहकार पुराने राजनीतिक दलों के साथ मिलकर महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं. इन सलाहकारों में, IPAC सबसे लंबे समय से आगे रहा है. आपको बता दें कि 2014 के आम चुनाव में पीएम नरेंद्र मोदी के अभियान का नेतृत्व करके IPAC तेजी से उभरा. इसके बाद 2015 में बिहार विधानसभा चुनाव में इस फर्म ने चुनावी अभियान को पूर्ण रूप से संभाला जो IPAC की यात्रा में एक मील का पत्थर साबित हुआ.

IPAC कांग्रेस, आम आदमी पार्टी (AAP), जनता दल यूनाइटेड (JDU) और DMK जैसी अलग-अलग पार्टियों के लिए सफलतापूर्वक चुनावी अभियान चला चुकी है. हालांकि, 2017 में उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी-कांग्रेस गठबंधन के चुनावी अभियान में उसे सफलता नहीं मिली जिसके बाद उनके ट्रैक रिकॉर्ड में हार वाला कॉलम भी जुड़ गया. हाल ही में आंध्र प्रदेश में IPAC का एक और चुनावी प्रयास विफल रहा क्योंकि YSR कांग्रेस पार्टी (YSRCP) को वहां चुनाव में बड़ी हार का सामना करना पड़ा. 

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राजनीतिक सलाह देने के क्षेत्र में अब अन्य कई खिलाड़ी भी काफी प्रमुखता से उभरे हैं जिससे यह अब पहले के मुकाबले काफी विस्तारित हो गया है. इसी सिलसिले में शोटाइम नाम की कंपनी का जिक्र करना आवश्यक होगा. इस कंपनी ने 2019 से तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) का काम-काज संभाल रखा है और  हाल ही में हुए आंध्र प्रदेश के चुनावों में पार्टी ने दमदार जीत हासिल की है. महाराष्ट्र में होने वाले आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए शोटाइम और इस फील्ड में इसकी  विशेषज्ञता की मांग बढ़ गई है. शिवसेना (एकनाथ शिंदे गुट) राज्य में अपने चुनावी अभियान को धार देने के लिए 2022 से शोटाइम की सेवाओं का लाभ ले रहा है. 

तमिलनाडु में डीएमके की अपनी रणनीति फर्म है - पॉपुलस एम्पावरमेंट नेटवर्क (PEN). पार्टी का इस फर्म से जुड़ा काम डीएमके नेता और राज्य के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के दामाद वी सबरीसन करते हैं. नवंबर 2022 में बनी PEN का लक्ष्य डीएमके के लिए टेक्लोलॉजी का उपयोग करने के साथ-साथ पार्टी के लिए रणनीति बनाना है ताकि पार्टी अपने पॉलिटिकल गोल को हासिल कर सके.  

तमिलनाडु में रजत सेठी ने AIADMK के साथ मिलकर काम किया है. वहीं, डिज़ाइनबॉक्स के नरेश अरोड़ा को अशोक गहलोत और डीके शिवकुमार जैसे प्रमुख नेताओं के साथ काम करने का अनुभव है. फिलहाल में अरोड़ा महाराष्ट्र में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP- अजित पवार गुट) के चुनावी अभियान को देख रहे हैं.

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कांग्रेस के अभियान का नेतृत्व सुनील कनुगोलू के पास है, जबकि AAP की राजनीतिक मामलों की समिति (PAC) पार्टी के चुनावी अभियान को संभालती है. राजनीतिक सलाहकारों का यह जटिल जाल भारत में आधुनिक चुनावी राजनीति में की जटिलता और प्रोफेशनलिज्म की ओर इशारा करता है. 

यहां सचमुच FOMO है?

नेताओं में दूसरों से पीछे रह जाने का डर काफी अधिक और वास्तविक रूप से मौजूद है. यदि कोई एक राजनीतिक दल किसी फर्म की सेवाओं का लाभ उठाता है तो दूसरी राजनीतिक पार्टी पीछे नहीं रहना चाहती है. यहां टैलेंटेड लोगों को फर्म काम पर रखती है और ये लोग अपने स्कील से इसे आकर्षक बनाते हैं. ये पेशेवर फर्म राजनीतिक दलों के लिए सर्वे और डेटा क्रंचिंग के माध्यम से रणनीति बनाते हैं ताकि उन्हें कोई निर्णय लेने में मदद मिल सके.

फर्म क्या करते हैं और कैसे करते हैं?

IPAC, जिसे इस क्षेत्र में सबसे आगे माना जाता है, फिलहाल TMC और YSRCP के साथ मिलकर काम कर रही है. यह पहले AAP, DMK, कांग्रेस जैसी पार्टियों को चुनाव जीतने में मदद कर चुकी है. IPAC के निदेशक प्रतीक जैन ने इंडिया टुडे को बताया कि फर्म की कई योग्यताओं में एक नेताओं की जीत की संभावना पर सटीक रिपोर्ट देना, उनका चुनावी अभियान कितना प्रभावी तरीके से काम कर रहा है इसका आकलन करना और इस बारे में सही जानकारी देना है. 

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इसी तरह, शोटाइम 2019 से TDP और 2022 से एकनाथ शिंदे गुट की शिवसेना के साथ काम कर रहा है. STC के संस्थापक रॉबिन शर्मा बताते हैं, 'एक नेता चारों तरफ से राजनीतिक लोगों से घिरा होता है. उनमें से प्रत्येक का अपना-अपना हित होता है. उनकी बातों में या फीडबैक में कुछ पूर्वाग्रह होना तय है. ऐसे में नेता (पार्टी प्रमुख) के लिए सच्चाई के सबसे करीब निर्णय लेना मुश्किल होता है. हमारा काम जमीनी हकीकत के करीब निर्णय लेने में मदद करना है.'

क्या सिर्फ जीतने वाले घोड़े पर दांव लगाया जाता है?

आलोचक अक्सर इन फर्म्स को कम बताकर आंकते हैं. वो इन पर दिल्ली में AAP और तमिलनाडु में DMK जैसी जीतने वाली पार्टियों पर दांव लगाने का आरोप लगाते हैं और सवाल उठाते हैं कि ये राजस्थान अशोक गहलोत के लिए कुछ नहीं कर पाए.

हालांकि, एजेंसियों के पास इसका जवाबी तर्क है. वो कहते हैं कि वे सिर्फ बाजार में बिकने वाला सामान ही बेच सकते हैं. प्रतीक जैन ने इंडिया टुडे से कहा, 'हम 2 प्रतिशत वोट शेयर वाली किसी भी पार्टी को चुनाव में नहीं जिता सकते. इसके लिए हमें एक गंभीर खिलाड़ी की जरूरत है, जिसके पास मजबूत संगठन और नेतृत्व हो और जो बदलते माहौल के अनुसार ढलने के लिए तैयार हो. एसटीसी के संस्थापक शर्मा ने जमीनी स्तर पर लोगों की नब्ज पकड़ने की जरूरत पर जोर देते हुए कहा, आप आंध्र प्रदेश में महाराष्ट्र के चुनावी अभियान की नकल नहीं कर सकते. चुनावी अभियान क्षेत्रों के अनुसार होना चाहिए. 

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इस इंडस्ट्री का भविष्य क्या है?

2014 में पीएम मोदी के चुनावी अभियान के लिए एक छोटी सी कंसल्टेंसी फर्म के रूप में शुरू हुआ यह बाजार अब भारत में अरबों रुपये का उद्योग बन चुका है. IPAC के निदेशक प्रतीक जैन के अनुसार कोई भी इंसान किसी भी काम के आकार (आर्थिक रूप से) का अनुमान नहीं लगा सकता है. लेकिन, अगर इस इंटस्ट्री में काम कर रहे लोगों के का ही मार्केट वैल्यू जोड़ लिया जाए तो यह उद्योग 1500-2000 करोड़ रुपये का हो जाता है.  

राजनीतिक रणनीति बनाना इस समय में एक हॉट सेलिंग केक (बाजार में जिसकी खूब मांग हो) बनी हुई है और यह पैसे कमाने का एक बेहतरीन जरिया बनती हुई दिखाई देती है. ऐसे कई रणनीतिकार हैं जो पहले से ही इस फील्ड की ओर कदम बढ़ा चुके हैं. PDAG के संस्थापक अरिंदम बनर्जी बताते हैं कि कुछ चुनिंदा लोगों ने इसके बजाय नीति निर्माण (policy-making) पर ध्यान देना शुरू कर दिया है. ऐसा करने के पीछे का कारण है कि अधिकतर मामलों में राजनीतिक सुझाव देना और या फिर चुनावी अभियान को चलाना अपने आप में एक अंतिम टारगेट बन जाता है, क्योंकि पेशेवर लोग या फिर संगठन नीति बनाने और गवर्नेंस जैसे कठिन फील्ड में प्रवेश नहीं करते हैं.

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