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कनाडा तक ही सिमट कर रह जाएगा खालिस्तान आंदोलन, पूर्व कनाडाई मंत्री ने दावे के साथ दिए ये तर्क

कनाडा के वैंकूवर शहर में उदारवादी सिखों की एक प्रमुख आवाज दोसांझ पर फरवरी 1985 में चरमपंथी तत्वों के खिलाफ बोलने के बाद एक पार्किंग स्थल के बाहर खालिस्तानियों द्वारा हमला किया गया था. हमले में उनका हाथ टूट गया और सिर पर 80 टांके लगे थे. इसके बावजूद, दोसांझ सिख धर्म में चरमपंथी तत्वों के कठोर आलोचक बने रहे हैं. ऐसे में उन्होंने आजतक/इंडिया टुडे के कई सवालों के जवाब दिए. 

खालिस्तान आंदोलन पर कनाडाई सरकार के रुख को लेकर कनाडा के ही पूर्व मंत्री ने कही ये बातें खालिस्तान आंदोलन पर कनाडाई सरकार के रुख को लेकर कनाडा के ही पूर्व मंत्री ने कही ये बातें
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 24 सितंबर 2023,
  • अपडेटेड 6:25 PM IST

भारत और कनाडा के रिश्ते इन दिनों खराब स्थिति से गुजर रहे हैं. ऐसे में भारतीय मूल के पूर्व कनाडाई मंत्री उज्ज्वल दोसांझ का कहना है कि भारत और कनाडा के बीच अब बहुत कम भरोसा है क्योंकि ओटावा एक मित्र देश के टुकड़े करने का आह्वान करने वाले सिख चरमपंथियों की स्पष्ट रूप से निंदा नहीं करता है.

उज्ज्वल दोसांझ ने आजतक से कई विषयों पर बात की. इनमें भारत-कनाडाई संबंधों में गिरावट, कनाडा में खालिस्तानी आंदोलन की जड़ें और क्यों जस्टिन ट्रूडो के सिख चरमपंथियों के साथ मेलजोल ने भारत सरकार के साथ विश्वास के मुद्दे पैदा किए हैं, जैसे मुद्दों पर बात की. उज्ज्वल दोसांझ ब्रिटिश कोलंबिया के प्रमुख थे. वह 2004-11 तक लिबरल पार्टी के संसद सदस्य भी थे. उसी पार्टी के नेता जस्टिन ट्रूडो हैं. उन्होंने 2004-06 तक कनाडा के स्वास्थ्य मंत्री के रूप में भी काम किया है.

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कनाडा के वैंकूवर शहर में उदारवादी सिखों की एक प्रमुख आवाज दोसांझ पर फरवरी 1985 में चरमपंथी तत्वों के खिलाफ बोलने के बाद एक पार्किंग स्थल के बाहर खालिस्तानियों द्वारा हमला किया गया था. हमले में उनका हाथ टूट गया और सिर पर 80 टांके लगे थे. इसके बावजूद, दोसांझ सिख धर्म में चरमपंथी तत्वों के कठोर आलोचक बने रहे हैं. ऐसे में उन्होंने आजतक/इंडिया टुडे के कई सवालों के जवाब दिए. 

सवाल: जस्टिन ट्रूडो द्वारा भारत पर लगाए गए आरोप और उस पर नई दिल्ली की प्रतिक्रिया के बारे में आप क्या सोचते हैं?

जवाब: जब आप किसी राजनयिक को निष्कासित करते हैं, तो देश ऐसी प्रतिक्रिया करता है जिसे जैसे को तैसा वाला कदम कहा जाता है. ट्रूडो ने हाउस ऑफ कॉमन्स में बयान देकर इस मुद्दे को तूल दिया. अब दोनों देशों के बीच बहुत कम भरोसा है. भारत को ट्रूडो पर भरोसा नहीं है क्योंकि उनके नेतृत्व अभियान के बाद से ही उन्हें खालिस्तानियों के साथ मेलजोल रखते देखा गया है. उनके सबसे वरिष्ठ सलाहकारों और कैबिनेट मंत्रियों में से एक पर खालिस्तानी होने का आरोप लगाया गया था. अब उन्हें सरकार में जगमीत सिंह का समर्थन प्राप्त है, जो एक मशहूर खालिस्तानी है.

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भारत ट्रूडो पर भरोसा नहीं करना चाहता, इसका दूसरा कारण यह है कि वे (कनाडाई सरकार के सदस्य) हमेशा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का आश्रय लेते हैं. जिसे व्यक्त करने का अधिकार सभी को है. लेकिन अगर आप भारत को एक मित्र देश और साथी लोकतंत्र मानते हैं, तो कनाडा के नेता के रूप में आपका दायित्व है कि आप अपने नागरिकों को बताएं कि देखो दोस्तों, आपको खालिस्तान की मांग करने का अधिकार है लेकिन मेरी सरकार एक मित्र राष्ट्र के टुकड़े-टुकड़े करने का समर्थन नहीं करती है. उन्होंने ऐसा कभी नहीं कहा. वास्तव में, किसी भी कनाडाई राजनेता ने ऐसा नहीं कहा है.

कनाडा के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री उज्जवल दोसांझ

सवाल: भारत की भूमिका के बारे में क्या?

जवाब: अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण से, अगर भारत ने ऐसा किया है (निज्जर की हत्या में उसकी भूमिका थी), जबकि ट्रूडो ने अभी तक कोई सबूत नहीं दिया है, तो यह गलत है. आप सीमा पार जाकर लोगों की हत्या नहीं करवा सकते. भारत के लिए उचित कार्रवाई (निज्जर के लिए) प्रत्यर्पण प्रक्रिया शुरू करना चाहिए था जैसा कि युवा सिद्धू महिला के मामले में किया गया था जो भारत में मारी गई थी लेकिन उसकी हत्या की योजना कनाडा में बनाई गई थी. निज्जर के मामले में यही उचित रास्ता होता क्योंकि उन पर भारत ने कई आरोप लगाए थे.

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दूसरी ओर नरेंद्र मोदी को एक लोकतंत्रवादी के रूप में नहीं देखा जाता है. उन्हें ऐसे नेता के रूप में नहीं देखा जाता जो अपने देश में अल्पसंख्यकों की रक्षा के लिए काम करता है. तब आपको संदेह होगा कि शायद नरेंद्र मोदी वह करने में सक्षम हैं जो ट्रूडो ने उन पर आरोप लगाया है.

सवाल: क्या आपको लगता है कि कनाडा में खालिस्तानी आंदोलन भारत तक फैल जाएगा?

जवाब: मुझे शक है. खालिस्तान आंदोलन यहीं कनाडा में ही रहने वाला है. जब आप भारत जाते हैं, जब आप पंजाब में रहते हैं, तो आप गैर-सिखों के साथ रहते हैं. वे आपके मित्र और परिवार हैं. वे अंतर्जातीय विवाह करते हैं, वे एक साथ पढ़ते हैं और काम करते हैं. 1984 का सारा गुस्सा समय के साथ गायब हो गया है.

जबकि जो लोग भारत के खिलाफ या भारत सरकार के खिलाफ, वैध रूप से या नहीं, आहत महसूस करते हैं, उनके लिए कनाडा में कोई इलाज नहीं है. वे एक साथ (यहां अन्य समुदायों के साथ) नहीं रहते हैं. वे अपने-अपने मंदिरों में जाते हैं, मूल रूप से हिंदू मंदिरों में जाते हैं, सिख अपने गुरुद्वारों में जाते हैं. हिंदुओं और सिखों के बीच बहुत कम मेल-मिलाप होता है, कभी-कभी शायद शादी के रिसेप्शन में भी. लोगों को यह एहसास नहीं है कि वे बिल्कुल हमारे जैसे हैं, उन्होंने हमें चोट नहीं पहुंचाई, वे हमारे दुश्मन नहीं हैं.

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सवाल: सिख, जो इतना बड़ा समुदाय नहीं है, कनाडा की राजनीति में इतना प्रभाव क्यों रखते हैं?

जवाब: मैं नहीं जानता कि राजनीति में उनका इतना दबदबा है या नहीं. लेकिन ऐसा लगता है कि ट्रूडो पर उनका प्रभाव किसी और से बेहतर है. ट्रूडो ने देश भर के सिख गुरुद्वारों में बने सदस्यों के दम पर अपना नेतृत्व हासिल किया. लेकिन ट्रूडो से पहले और उम्मीद है कि उनके बाद खालिस्तानियों का ऐसा दबदबा नहीं रहेगा. मेरा मतलब है कि (सिख) समुदाय का प्रभाव होना एक अद्भुत बात है. लेकिन अगर अलगाववादी तत्व इतना प्रभाव रखते हैं तो यह एक समस्या है.

सवाल: इसमें जगमीत सिंह की क्या भूमिका है?

जवाब: मैंने जगमीत सिंह के वर्षों पहले खालिस्तान पर संप्रभुता सम्मेलनों में बोलते हुए वीडियो देखे हैं. वह एक ज्ञात खालिस्तानी है और अब सरकार में ट्रूडो का समर्थन करता है. जगमीत के दृश्य में आने से पहले भी, ट्रूडो वही थे जो वे थे. अब फर्क सिर्फ इतना है कि आपके पास (सरकार में) निपटने के लिए उनमें से दो हैं.

सवाल: जस्टिन ट्रूडो अपने पिता पियरे से किस प्रकार भिन्न हैं, जिन्होंने कनाडा के प्रधानमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान खालिस्तानी खतरे पर भारत सरकार की चेतावनियों को खारिज कर दिया था?

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जवाब: दोनों के बीच कोई तुलना नहीं है. जस्टिन ट्रूडो में अपने पिता जैसा राजनीतिक विश्वास नहीं है. ट्रूडो सीनियर (जस्टिन ट्रूडो के पिता) एक वकील, संवैधानिक विद्वान और कार्यकर्ता थे. (जस्टिन) ट्रूडो पहचान की राजनीति से अधिक प्रभावित हैं. उसके लिए किसी भी छोटे समूह पर पकड़ बनाना आसान है जो अलग उपचार चाहता है.

सवाल: आपको क्या लगता है कि भारत-कनाडा संबंध अब कैसा आकार लेंगे? क्या आप जल्द ही कोई सामान्यीकरण देखते हैं?

जवाब: सरकारों के बीच कोई भरोसा नहीं है. मैं नहीं देखता कि सरकारें जल्द ही चीजों को सामान्य करने की कोशिश कर रही हैं. मुझे लगता है कि नरेंद्र मोदी या जस्टिन ट्रूडो के सत्ता से हटने के बाद ही दोनों देशों के बीच सुलह हो पाएगी.

सवाल: क्या आपको नहीं लगता कि किसी राजनयिक को आरोपों के आधार पर निष्कासित करना ट्रूडो का थोड़ा दूर का कदम है?

जवाब: ट्रूडो ने सबूत किसी के साथ साझा नहीं किया है और ये किस तरह का सबूत है ये भी पता नहीं है. आप कोई सबूत रिकॉर्ड पर न रखने के लिए उसकी आलोचना कर सकते हैं, लेकिन उसने जो किया उसके लिए उसकी निंदा करना मुश्किल है. क्योंकि अगर उनके पास वास्तव में सबूत हैं, तो उन्होंने जो कहा वह वैध है, भले ही उन्हें इसे उसी तरह से संभालना चाहिए था या नहीं. इसीलिए कनाडाई भी उनसे सबूत मांग रहे हैं.

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सवाल: भारत में, कनाडाई प्रधानमंत्री के आरोपों पर सरकार की प्रतिक्रिया पर खुशी व्यक्त की गई है. इस पर आपकी क्या राय है?

जवाब: समस्या यह है कि जो भारतीय खुश हैं, उन्हें यह एहसास नहीं है कि यहां असली पीड़ित 98 प्रतिशत भारतीय-कनाडाई हैं जो शांतिप्रिय हैं. वे विभिन्न कारणों से भारत आना चाहते हैं, जैसे शादी, परिवार में जन्म और मृत्यु और संपत्ति बेचना या खरीदना. अब वे ऐसा नहीं कर सकते.

इनपुट- ऋषभ शर्मा

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