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एक होली, 52 जुमा... संभल की 'प्रयोगशाला' से निकला नया नारा, क्या इसी से मिलेगा बिहार चुनाव में सहारा?

कोई भी त्योहार जब हर दल की सियासत से बचता नहीं है तो फिर अबकी होली से पहले यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जो 52 जुमा-एक होली की राजनीतिक लकीर संभल से खींची है. क्या वो संभल की सियासी प्रयोगशाला का नया राजनीतिक उत्प्रेरक है. जिसे अब देश के अगले चुनावी राज्य बिहार में भी इस्तेमाल करना शुरू कर दिया गया है.

एक होली, 52 जुमा. एक होली, 52 जुमा.
आजतक ब्यूरो
  • नई दिल्ली,
  • 10 मार्च 2025,
  • अपडेटेड 12:44 AM IST

एक होली और 52 जुमा को लेकर पूरे देश में राजनीति गरमाती जा रही है. संभल से निकले इस नारे ने बिहार की राजनीति में भी एंट्री ले ली है. हालांकि, बिहार में बीजेपी की सहयोगी जेडीयू के कुछ नेताओं ने इस नारे से दूरी बनाई है.

कोई भी त्योहार जब हर दल की सियासत से बचता नहीं है तो फिर अबकी होली से पहले यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जो 52 जुमा-एक होली की राजनीतिक लकीर संभल से खींची है. क्या वो संभल की सियासी प्रयोगशाला का नया राजनीतिक उत्प्रेरक है. जिसे अब देश के अगले चुनावी राज्य बिहार में भी इस्तेमाल करना शुरू कर दिया गया है.

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यूपी में 80 बनाम 20

इसी तरह 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में में 80 बनाम 20 चला, लेकिन 2024 के चुनाव में यूपी में हिंदू वोट बंटा तो बीजेपी की सीटें घट गईं और तब ये सवाल फिर आ जाता है कि 80 बनाम 20 की राजनीतिक निरंतरता को बनाए रखने के लिए एक होली- 52 जुमा की बात आई है. उस वक्त 80 बनाम 20 के नारे के जवाब में विपक्ष ने नारा दिया- 85 बनाम 15...यानी 85 फीसदी में पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक, बाकी 15 में सिर्फ सवर्ण हिंदू.

80-20 के फॉर्मूले पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सीधा कहा था कि राम मंदिर, काशी विश्वनाथ का विरोध करने वाले लोग हैं वो 20 फीसदी...सीएम ने तब कहा था कि जो हिंदू विरोधी हैं वो देश विरोधी हैं...80 बनाम 20 यानी बहुसंख्यक वोट साधने वाली इस सियासत का असर अब यूपी से लेकर बिहार तक दिख रहा है. जहां अबकी बार होली से पहले 80 बनाम 20 की सियासत को ही एक होली और 52 जुमा से जोड़कर पेश किया जा रहा है.

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क्या पहली बार साथ हो रहे हैं होली और रमजान का जुमा

अब सवाल ये है कि क्या होली पर पहली बार रमजान का जुमा पड़ रहा है?. जवाब है कि 64 साल के बाद होली का त्योहार और रमजान का शुक्रवार एक साथ पड़ रहा है. इससे पहले 1961 में 4 मार्च (शुक्रवार) को होली और रमजान का शुक्रवार साथ-साथ पड़ा था.

तीसरी अहम बात- दावा है कि 1961 में होली-रमजान का जुमा एक दिन पड़ने पर किसी तरह के तनाव या हिंसा का रिकॉर्ड नहीं मिलता है. साल 2022 में भी होली और जुमा एक साथ पड़े थे. उस समय कानपुर और लखनऊ से ही कुछ तनाव की खबरें सामने आई थीं, लेकिन कानून व्यवस्था के लिए कोई बड़ी चुनौती नहीं रही. चर्चा है कि अबकी होली पर सुरक्षा को लेकर नमाज स्थगित भी हो सकती है, लेकिन इसका सियासी संदेश दूर तक जा रहा है.

सवाल ये भी है कि क्या कहीं पर मुस्लिम पक्ष की तरफ से जुमे के दिन होली खेले जाने को लेकर ऐतराज जताया था या फिर जुमे की नमाज के दिन होली के दौरान किसी मुस्लिम नागरिक पर रंग पड़ने पर विवाद और फिर विवाद से तनाव बढ़ने की आशंका को भांपकर 52 जुमा-एक होली की बात आई है?. अगर विवाद कहीं पहले था ही नहीं तो क्या सियासी दांव ये है कि विपक्षी नेताओं की प्रतिक्रिया को होली के मुकाबले रमजान के जुमे की ज्यादा चिंता के तौर पर राजनीति में दिखाकर 80-20 किया जाए? या फिर पहले से माहौल में तनाव दिखाकर शांति से सब कुछ होने के बाद मजबूत कानून-व्यवस्था का क्रेडिट लिया जाए?

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संभल में निकाला गया चौपाई जुलूस

वहीं, सोमवार को संभल से आई तस्वीरों ने भी बड़ा सियासी संदेश दिया है. जहां संभल की शाही जामा मस्जिद के सर्वे के दौरान हिंसा भड़की थी, वहां रंग एकादशी पर पुलिस की सुरक्षा में चौपाई जुलूस निकाला गया. इस दौरान खूब गुलाल खेलते हुए चौपाई जुलूस निकला. तो क्या इसी तरह होली के दिन भी संदेश दिया जाना है कि जहां पत्थर चलते थे...अब वहां शांति से बहुसंख्यक होली खेलते हैं यानी 20 के लिए चर्चित संभल से 80 के लिए संदेश... इस बार जरिया 52 जुमा और एक होली बन रहा है.

क्रांतिकारियों ने देश को किया एकजुट

इसके इतर हमारे ही देश में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक जैसे क्रांतिकारी रहे. जिन्होंने गणेशोत्सव के सार्वजनिक और सामूहिक आयोजन के जरिए अंग्रेजों के खिलाफ भारतीयों को एकजुट करने में ध्यान लगाया, लेकिन आज की राजनीति में किसी भी पक्ष के त्योहार हों...राजनीतिक विवादों का रंग लगा दिया जाता है.

याद करिए पश्चिम बंगाल, जहां पहले मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए सरस्वती पूजन पर रोक के आरोप लगते रहे. हर बार हम लोग देखते हैं कि रामनवमी शोभा यात्रा जब निकलती है तो कई राज्यों में तनाव की स्थिति बन जाती है. 

इसी तरह मुहर्रम के जुलूस के दौरान भी देखा जाता है. दिल्ली समेत कई राज्यों में पहले हनुमान जयंती की धर्म यात्रा के दौरान हिंसा हो चुकी है.

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वहीं, करवा चौथ आता है तो मेहंदी लगाने को लेकर विवाद पनपते हैं, कुछ हिंदू संगठन कहते हैं कि मुस्लिमों से मेहंदी ना लगवाएं. नवरात्र आते हैं तो मीट की दुकानों पर बंदी को लेकर कई राज्यों में राजनीति होती है. ऐसे ही सावन के महीने में कांवड़ यात्रा के दौरान कांवड़ के रास्ते पर दुकानों के बाहर पहचान जाहिर करने का जब आदेश आया तो अदालत तक मामला पहुंच गया है.

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