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संसद के विशेष सत्र के चौथे दिन राज्यसभा में महिला आरक्षण पर वोटिंग हुई. इस वोटिंग में सभी सांसदों ने एक सुर में बिल को समर्थन दिया. राज्यसभा में बिल के पक्ष में 214 वोट डाले गए. जबकि बिल के विरोध में एक भी वोट नहीं डाला गया. बिल पारित होने के बाद तमाम महिला सांसदों ने संसद के गेट पर खड़े होकर पीएम मोदी का आभार जताया. इस दौरान कई सांसदों ने उन्हें बुके और शॉल गिफ्ट की, साथ में सभी के साथ पीएम मोदी ने भी फोटो खिंचवाए.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्यसभा से महिला आरक्षण बिल पास होने पर ट्वीट किया. पीएम ने लिखा, हमारे देश की लोकतांत्रिक यात्रा में एक निर्णायक क्षण! 140 करोड़ भारतीयों को बधाई. मैं उन सभी राज्यसभा सांसदों को धन्यवाद देता हूं जिन्होंने नारी शक्ति वंदन अधिनियम के लिए वोट किया. इस तरह का सर्वसम्मत समर्थन वास्तव में ख़ुशी देने वाला है.
उन्होंने कहा कि संसद में नारी शक्ति वंदन अधिनियम के पारित होने के साथ, हम भारत की महिलाओं के लिए मजबूत प्रतिनिधित्व और सशक्तिकरण के युग की शुरुआत करते हैं. यह महज एक विधान नहीं है, यह उन अनगिनत महिलाओं को श्रद्धांजलि है जिन्होंने हमारे देश को बनाया है. भारत उनके लचीलेपन और योगदान से समृद्ध हुआ है.
पीएम ने आगे लिखा, जैसा कि हम आज मनाते हैं, हमें अपने देश की सभी महिलाओं की ताकत, साहस और अदम्य भावना की याद आती है. यह ऐतिहासिक कदम यह सुनिश्चित करने की प्रतिबद्धता है कि उनकी आवाज़ को और भी अधिक प्रभावी ढंग से सुना जाए.
बिल के पक्ष में लोकसभा में डाले गए 454 वोट
बीते दिन यह बिल लोकसभा से भी पास हुआ था. इस बिल के पक्ष में लोकसभा में 454 वोट डाले गए थे. जबकि इसके विरोध में 2 वोट AIMIM सांसदों ने डाले थे. इसके बाद आज राज्यसभा से बिल पास हो गया. अब यह बिल राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा. उनकी मंजूरी मिलते ही यह कानून बन जाएगा. कानून बनने के बाद जब महिला आरक्षण लागू होगा तो संसद में और देश की सभी विधानसभाओं में महिलाओं की संख्या 33 फीसदी हो जाएगी. यहां एक नजर इस बिल पर डाल लेते हैं.
इस बिल में क्या है?
महिला आरक्षण विधेयक में लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फीसदी या एक तिहाई सीटें आरक्षित करने का प्रस्ताव है. विधेयक में 33 फीसदी कोटा के भीतर एससी, एसटी और एंग्लो-इंडियन के लिए उप-आरक्षण का भी प्रस्ताव है. विधेयक में प्रस्तावित है कि प्रत्येक आम चुनाव के बाद आरक्षित सीटों को रोटेट किया जाना चाहिए. आरक्षित सीटें राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में रोटेशन द्वारा आवंटित की जा सकती हैं.
दोनों सदनों से पारित होने के बाद जब राष्ट्रपति इस बिल पर मुहर लगा देंगी तब यह कानून बन जाएगा. लेकिन यह कानून बनने के बाद भी लागू होने तक की राह में कई रोड़े हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि चुनावों में महिलाओं को आरक्षण का फायदा जनगणना और फिर परिसीमन के बाद ही मिलने वाला है. लेकिन देश में इस पूरी प्रक्रिया को पूरा होने में ही लंबा वक्त लग जाएगा.
वैसे तो देश में 2021 में ही जनगणना होनी थी, जो कि आज तक हो नहीं पाई है. आगे यह जनगणना कब होगी इसकी भी कोई जानकारी नहीं है. खबरों में कहीं 2027 तो 2028 की बात कही गई है. इस जनगणना के बाद ही परिसीमन या निर्वाचन क्षेत्रों का पुनर्निर्धारण होगा, तब जाकर महिलाओं को आरक्षण मिल सकेगा.
27 सालों से पेंडिंग था बिल
करीब 27 सालों से लंबित महिला आरक्षण विधेयक अब राष्ट्रपति की टेबल पर है. मौजूदा आंकड़ों के मुताबिक, लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या 15 फीसदी से कम है, जबकि राज्य विधानसभा में उनका प्रतिनिधित्व 10 फीसदी से भी कम है. इस मुद्दे पर आखिरी बार कदम 2010 में उठाया गया था, जब राज्यसभा ने हंगामे के बीच बिल पास कर दिया था और मार्शलों ने कुछ सांसदों को बाहर कर दिया था, जिन्होंने महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण का विरोध किया था. हालांकि यह विधेयक रद्द हो गया क्योंकि लोकसभा से पारित नहीं हो सका था.
लोकसभा में 14 फीसदी महिला सांसद
वर्तमान स्थिति की बात करें तो लोकसभा में 78 महिला सदस्य चुनी गईं, जो कुल संख्या 543 के 15 प्रतिशत से भी कम हैं. बीते साल दिसंबर में सरकार द्वारा संसद में साझा किए गए आंकड़ों के अनुसार, राज्यसभा में भी महिलाओं का प्रतिनिधित्व करीब 14 प्रतिशत है. इसके अलावा 10 राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 10 फीसदी से भी कम है, इनमें आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, असम, गोवा, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, मेघालय, ओडिशा, सिक्किम, तमिलनाडु, तेलंगाना, त्रिपुरा और पुडुचेरी शामिल हैं.
2008 में आखिरी बार पेश हुआ महिला बिल
साल 2008 से पहले इस बिल को 1996, 1998 और 1999 में भी पेश किया गया था. गीता मुखर्जी की अध्यक्षता में एक संयुक्त संसदीय समिति ने 1996 के विधेयक की जांच की थी और 7 सिफारिशें की थीं. इनमें से पांच को 2008 के विधेयक में शामिल किया गया था, जिसमें एंग्लो इंडियंस के लिए 15 साल की आरक्षण अवधि और उप-आरक्षण शामिल था.
इस बिल में यह भी शामिल था, अगर किसी राज्य में तीन से कम लोकसभा की सीटें हों, दिल्ली विधानसभा में आरक्षण और कम से एक तिहाई आरक्षण. कमेटी की दो सिफारिशों को 2008 के विधेयक में शामिल नहीं किया गया था. पहला राज्यसभा और विधान परिषदों में सीटें आरक्षित करने के लिए था और दूसरा संविधान द्वारा ओबीसी के लिए आरक्षण का विस्तार करने के बाद ओबीसी महिलाओं के लिए उप-आरक्षण के लिए था.
2008 के विधेयक को कानून और न्याय संबंधी स्थायी समिति को भेजा गया था, लेकिन यह अपनी अंतिम रिपोर्ट में आम सहमति तक पहुंचने में विफल रहा. समिति ने सिफारिश की कि विधेयक को संसद में पारित किया जाए और बिना किसी देरी के कार्रवाई में लाया जाए.