
इस साल पूरी दुनिया में मई का महीना सबसे गर्म रहा, जिसमें कई देशों में रिकॉर्ड गर्मी, बारिश और बाढ़ का कहर भी देखने को मिला. यूरोपीय संघ की जलवायु एजेंसी कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस (C3S) ने बताया कि यह लगातार 12वां महीना था, जब रिकॉर्ड-उच्च तापमान दर्ज किया गया, जो अब कमजोर हो रहे अल नीनो और मानव जनित जलवायु परिवर्तन के संयुक्त प्रभाव का परिणाम है.
मई के महीने में गर्मी, बारिश और बाढ़ का कहर
कॉपरनिकस का अपडेट विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) के अनुमान से मैच है. जिसमें कहा गया है कि 80 प्रतिशत संभावना है कि अगले पांच वर्षों में से एक साल औद्योगिक युग की शुरुआत की तुलना में कम से कम 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म होगा. वहीं, 86 प्रतिशत संभावना है कि इनमें से कम से कम एक साल तापमान का नया रिकॉर्ड बनेगा, जो 2023 को पीछे छोड़ देगा क्योंकि यह वर्तमान में सबसे गर्म वर्ष है.
कॉपरनिकस ने बताया कि मई 2024 के लिए वैश्विक औसत तापमान 1850-1900 के पूर्व-औद्योगिक औसत से 1.52 डिग्री सेल्सियस अधिक था, जो लगातार 11वां महीना (जुलाई 2023 से) 1.5 डिग्री सेल्सियस या उससे ज्यादा रहा है. वहीं, पेरिस समझौते में यह पहले ही बताया गया था कि तापमान में इतनी ज्यादा बढ़ोतरी ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ाएगी. यूरोपीय जलवायु एजेंसी ने बताया कि पिछले 12 महीनों (जून 2023-मई 2024) के लिए वैश्विक औसत तापमान रिकॉर्ड पर सबसे अधिक है, जो 1991-2020 के औसत से 0.75 डिग्री सेल्सियस अधिक और 1850-1900 के पूर्व-औद्योगिक औसत से 1.63 डिग्री सेल्सियस अधिक है.
C3S के निदेशक कार्लो बुओंटेम्पो ने बताया ये चौंकाने वाला है कि मई लगातार 12वां महीना था, जब दुनिया में रिकॉर्ड-उच्च तापमान दर्ज किया गया. उन्होंने दुनिया में इतनी भीषण गर्मी का कारण जलवायु परिवर्तन को बताया है. उनका कहना है कि अगर हम निकट भविष्य में वायुमंडल में जीएचजी की कंसंट्रेशन को स्थिर करने में कामयाब हो जाते हैं, तो हम सदी के अंत तक इन 'ठंडे' तापमान की स्थिति में वापस पहुंच सकते हैं.
वैज्ञानिकों ने दी ये जानकारी
जलवायु वैज्ञानिकों के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के सबसे बुरे प्रभावों से बचने के लिए देशों को वैश्विक औसत तापमान वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक अवधि से 1.5 डिग्री सेल्सियस ऊपर सीमित करने की आवश्यकता है. वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों - मुख्य रूप से कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन - की तेजी से बढ़ने के कारण पृथ्वी की सतह का तापमान पहले ही 1850-1900 के औसत की तुलना में लगभग 1.15 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है. इस गर्मी को दुनिया भर में रिकॉर्ड सूखे, जंगल की आग और बाढ़ का कारण माना जाता है.
जर्मनी के पॉट्सडैम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इम्पैक्ट रिसर्च के वैज्ञानिकों द्वारा हाल ही में किए गए एक अध्ययन के अनुसार, जलवायु प्रभावों से वैश्विक अर्थव्यवस्था को 2049 तक प्रति वर्ष लगभग 38 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का नुकसान हो सकता है, जिसमें समस्या के लिए सबसे कम जिम्मेदार देश और प्रभावों से निपटने के लिए न्यूनतम संसाधन होने के कारण सबसे अधिक नुकसान उठाना पड़ सकता है.
वैश्विक स्तर पर, पिछले 174 सालों में 2023 सबसे गर्म वर्ष था, जिसमें वैश्विक औसत तापमान पूर्व-औद्योगिक आधार रेखा (1850-1900) से 1.45 डिग्री सेल्सियस अधिक था. वैज्ञानिकों का कहना है कि 2024 में तापमान में वृद्धि एक नया रिकॉर्ड बना सकती है, क्योंकि एल नीनो मध्य और पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह का गर्म होना. आमतौर पर अपने विकास के दूसरे वर्ष में वैश्विक जलवायु पर सबसे अधिक प्रभाव डालता है.
दुनिया 2023-24 एल नीनो और मानव-जनित जलवायु परिवर्तन के संयुक्त प्रभाव के तहत मौसम के खतरनाक रूप को देख रही है. स्वास्थ्य मंत्रालय और पीटीआई के अनुसार, भीषण गर्मी के बीच भारत में मार्च से मई तक हीट स्ट्रोक के करीब 25,000 संदिग्ध मामले दर्ज किए गए और गर्मी से संबंधित बीमारियों के कारण 56 मौतें हुईं हैं. हालांकि, इस डेटा में उत्तर प्रदेश, बिहार और दिल्ली में हुई मौतें शामिल नहीं हैं और अंतिम संख्या इससे अधिक होने की उम्मीद है.
भारत मौसम विज्ञान विभाग सहित वैश्विक मौसम एजेंसियां अगस्त-सितंबर तक ला नीना की स्थिति की उम्मीद कर रही हैं. जबकि अल नीनो की स्थिति भारत में कमजोर मॉनसूनी हवाओं और शुष्क परिस्थितियों से जुड़ी है. ला नीना की स्थिति अल नीनो के विपरीत मॉनसून के मौसम में भरपूर बारिश का संकेत देती है.