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यौन उत्पीड़न की सात शिकायतें, फिर भी बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ दर्ज नहीं हो रही FIR, जानिए क्या कहता है कानून

सात महिला पहलवानों की शिकायत के बावजूद WFI अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ अब तक FIR दर्ज नहीं हुई है, जबकि आरोप यौन उत्पीड़न जैसे संगीन हैं. वहीं सुप्रीम कोर्ट ने इसे लेकर दिल्ली पुलिस को नोटिस भेजा है. कानूनन भी यौन उत्पीड़न के मामले में शिकायत दर्ज नहीं करना अपराध की श्रेणी में आता है. सवाल है कि फिर भी कनॉट प्लेस थाना पुलिस ने FIR क्यों दर्ज नहीं की है.

पहलवान विनेश फोगाट, साक्षी मलिक पहलवान विनेश फोगाट, साक्षी मलिक
श्रेया चटर्जी
  • नई दिल्ली,
  • 25 अप्रैल 2023,
  • अपडेटेड 10:03 PM IST

एक नाबालिग समेत सात महिला पहलवानों की शिकायत के बावजूद आखिर WFI अध्यक्ष ब्रज भूषण शरण सिंह के खिलाफ FIR क्यों दर्ज नहीं हो पाई है, यह बड़ा सवाल है. पहलवानों का कहना है कि उन्होंने WFI अध्यक्ष के खिलाफ 21 अप्रैल को कनॉट प्लेस थाने में शिकायत दी थी और यौन शोषण का आरोप लगाया था. इसके बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हुई तो वह 23 अप्रैल जंतर-मंतर पर धरने पर बैठ गए थे. FIR कराने को लेकर पहलवान सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दायर कर चुके हैं और इस तरह जनवरी 2023 में सामने आई पहलवानों और महासंघ अध्यक्ष के बीच की ये 'कुश्ती' अब न्यायालय की चौखट पर है. सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी किया है.

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अब तक क्यों नहीं दर्ज हो पाई FIR
चूंकि मामला और आरोप यौन उत्पीड़न से जुड़े हुए हैं, जो कि इसे काफी संवेदनशील और संगीन बनाते हैं. वहीं इंडियन पीनल कोड भी ऐसे आरोंपो पर सख्त रुख ही रखता है. इसे इस एक लाइन से समझा जा सकता है कि, अगर पुलिस के सामने महिलाओं के खिलाफ अपराध का खुलासा करने वाली कोई शिकायत (मसलन यौन उत्पीड़न) आती है तो उसे दर्ज करना अनिवार्य है. अगर ऐसा नहीं किया जाता है तो यह एक दंडनीय अपराध भी है. ऐसे में महिला पहलवानों, जिनमें एक नाबालिग भी है, उनकी शिकायतों के आधार पर केस दर्ज में इतनी देरी करने की कोई वजह नहीं दिखती. खासतौर पर कोई कानूनी अड़चन तो बिल्कुल नहीं है, फिर भी अब तक FIR दर्ज नहीं हो पाई है. 

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यौन उत्पीड़न का मामला दर्ज नहीं होने पर ये है प्रावधान
IPC की धारा 166 A (c) में इसका उल्लेख है. अगर कोई पुलिस अधिकारी IPC 1973 (1974 का 2) की धारा 154 की उप-धारा (1) के तहत धारा 326ए, धारा 326बी, धारा के तहत दंडनीय संज्ञेय अपराध के संबंध में दी गई किसी भी जानकारी को दर्ज दर्ज नहीं करता है तो धारा 354, धारा 354B, धारा 370, धारा 370A, धारा 376, धारा 376A, 2 [धारा 376AB, धारा 376B, धारा 376C, धारा 376D, धारा 376DA, धारा 376DB], धारा 376E या धारा 509, के तहत कठोर कारावास का प्रावधान है. इसकी अवधि छह महीने से कम नहीं होगी और गंभीर मामलों में दो साल तक बढ़ सकती है. इस मामले में जुर्माने का भी प्रावधान है. ऐसे में यौन उत्पीड़न के मामले में, जो पहलवानों ने शिकायत दर्ज कराई है उस पर प्राथमिकी दर्ज की जानी चाहिए थी.

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली पुलिस को भेजा नोटिस
FIR दर्ज करने में दिल्ली पुलिस ने जब देरी की तो पहलवान इसकी मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट गए. मंगलवार को सुनवाई के दौरान, पहलवानों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने तर्क दिया, "सर्वोच्च न्यायालय के दिशानिर्देशों के अनुसार, पुलिस कर्मियों को भी ऐसे अपराधों में मामला दर्ज नहीं करने के लिए दंडित किया जाता है." दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी करते हुए मुख्य न्यायाधीश ने कहा, "यौन उत्पीड़न के संबंध में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले पहलवानों की याचिका में गंभीर आरोप लगाए गए हैं."

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FIR दर्ज ने करने पर क्या बोली दिल्ली पुलिस?
अभी तक दिल्ली पुलिस की ओर से इस पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है. हालांकि वरिष्ठ अधिकारियों के मुताबिक, दिल्ली पुलिस ने खेल मंत्रालय से निगरानी समिति की रिपोर्ट मांगी है. अधिकारियों का कहना है कि रिपोर्ट के निष्कर्षों के आधार पर, "उचित कार्रवाई की जाएगी".

पहलवानों के उठाए मामलें अब तक क्या-क्या हुआ?
बात निगरानी समिति की आई है तो एक बार फिर इस मामले में निगाह डाल लेने की जरूरत है कि अब तक पहलवानों के उठाए इन मुद्दों पर क्या-क्या हुआ है. पहलवानों के मुताबिक, 21 अप्रैल को उन्होंने यौन उत्पीड़न के आरोप में कनॉट प्लेस थाने में शिकायत दर्ज कराई थी. हालांकि,  दिल्ली पुलिस ने शिकायत मिलने के बाद भी FIR दर्ज नहीं की. इसके बाद साक्षी मलिक, विनेश फोगाट और बजरंग पुनिया सहित कुछ पहलवानों ने 23 अप्रैल से दिल्ली के जंतर मंतर पर अपना विरोध फिर से शुरू कर दिया था. इससे पहले जनवरी 2023 में भी पहलवान इन्हीं आरोपों (यौन शोषण, तानाशाही और अनियमितता) के साथ सामने आए थे, लेकिन तब केंद्रीय खेल मंत्री अनुराग ठाकुर के हस्तक्षेप के बाद उन्होंने अपना विरोध समाप्त कर दिया था.

खेल मंत्रालय ने किया था निगरानी समिति का गठन किया
पहलवानों के आरोपों के बाद खेल मंत्रालय ने खिलाड़ियों द्वारा लगाए गए आरोपों की जांच के लिए एक कमेटी का गठन किया था. कमेटी में 6 सदस्य थे, जिसे बॉक्सिंग लीजेंड मैरी कॉम ने लीड किया था. सूत्रों के मुताबिक, खेल मंत्रालय को रिपोर्ट पहले ही सौंपी जा चुकी है. जब पहलवानों ने बीते रविवार को अपना विरोध फिर से शुरू किया, तो उन्होंने आरोप लगाया कि उन्हें शक है कि कमेटी ने बृजभूषण शरण सिंह को क्लीन चिट दे दी है. 

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मीडिया से बात करते हुए साक्षी मलिक ने कहा था, “ढाई महीने हो गए हैं, और हमें पता नहीं है कि निगरानी समिति की रिपोर्ट में क्या कहा गया है. लोग सोचते हैं कि हमने झूठ बोला. हमने दिल्ली पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है, लेकिन वे FIR दर्ज नहीं कर रहे हैं. जब तक गिरफ्तारी नहीं हो जाती, हम इस विरोध स्थल को नहीं छोड़ेंगे. उन्होंने कहा कि हम समिति से किसी पर विश्वास नहीं करते हैं ”.

इस मामले में खेल मंत्रालय ने अब तक क्या किया है?
पहलवानों ने जब अपना विरोध फिर से शुरू किया, खेल मंत्रालय ने IOA को WFI चलाने के लिए एक तदर्थ समिति बनाने का निर्देश दिया और बाद में WFI की कार्यकारी समिति के गठन के लिए आगामी 7 मई के चुनावों पर भी रोक लगा दी. मंत्रालय ने 23 जनवरी को चार सप्ताह में अपनी रिपोर्ट पूरी करने के लिए निरीक्षण समिति का गठन किया था, हालांकि बाद में उन्हें छह सप्ताह का विस्तार दिया गया था. इस बीच मंत्रालय ने IOA को WFI चलाने का अधिकार देते हुए कहा कि उन्हें निरीक्षण समिति की रिपोर्ट मिल गई है और निष्कर्ष अभी जांच के अधीन हैं. 

हालांकि, प्रारंभिक तौर पर जो निष्कर्ष दिए गए हैं, उनसे दो सुझाव निकल कर सामने आए हैं. पहला तो ये कि "यौन उत्पीड़न रोकथाम अधिनियम 2013 के तहत एक विधिवत गठित आंतरिक शिकायत समिति की गैरमौजूदगी है, दूसरा ये कि शिकायत निवारण के लिए खिलाड़ियों के बीच जागरूकता के लिए पर्याप्त तंत्र की कमी है. इसके साथ ही खिलाड़ियों सहित महासंघ और हितधारकों के बीच अधिक पारदर्शिता और परामर्श की जरूरत है और फेडरेशन व खिलाड़ियों के बीच इफेक्टिव कम्यूनिकेशन की भी जरूरत है. " मंत्रालय ने IOA को तदर्थ समिति के गठन के बाद 45 दिनों के भीतर WFI की चुनाव प्रक्रिया को नजरअंदाज करने और पूरा करने का भी निर्देश दिया है.

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