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मोदी सरकार 2.0 का दूसरा साल पूरा, लोकसभा को अभी तक नहीं मिला डिप्टी स्पीकर

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के कार्यकाल के दूसरा साल पूरा होने जा रहा है. इसके बावजूद अभी तक लोकसभा उपाध्यक्ष यानी डिप्टी स्पीकर का चुनाव नहीं हो सका है. यह अब के इतिहास में सबसे लंबी अवधि है, जिसमें यह पद रिक्त है जबकि कांग्रेस लगातार उपाध्यक्ष के चुनाव की मांग कर रही है.

कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली ,
  • 25 मई 2021,
  • अपडेटेड 10:13 AM IST
  • मोदी सरकार 2.0 का दूसरा साल पूरा होने जा रहा
  • संसद में पहली बार डिप्टी स्पीकर का पद रिक्त
  • लोकसभा उपाध्यक्ष का पद विपक्षी दल को मिलता है

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार 30 मई को अपने लगातार दूसरे कार्यकाल के दूसरा साल पूरा करने जा रही है. इसके बावजूद लोकसभा उपाध्यक्ष यानी डिप्टी स्पीकर का चुनाव नहीं हो सका है. यह अब के इतिहास में सबसे लंबी अवधि है, जिसमें यह पद रिक्त है. इससे पहले मार्च 1998 में जब अटल बिहारी वाजपेयी दूसरी बार पीएम बने, तो डिप्टी स्पीकर का पद तय करने में लगभग नौ महीने लग गए थे. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि मोदी सरकार के दो साल पूरे होने के बाद क्या लोकसभा को डिप्टी स्पीकर मिल सकेगा? 

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हालांकि, लोकसभा उपाध्यक्ष का चुनाव न होने की स्थिति में लोकसभा सदन के कामकाज पर कोई खास असर नहीं पड़ रहा है, क्योंकि अध्यक्ष की अनुपस्थिति में उनके द्वारा नामित पीठासीन अध्यक्ष मंडल के सदस्य सदन की कार्यवाही संचालित करते ही हैं. वहीं, लोकसभा में कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला को पिछले साल ही पत्र लिखकर लोकसभा सदन का उपाध्यक्ष चुनने का आग्रह किया था.

अधीर रंजन के पत्र और कांग्रेस की मांग के बाद भी अभी तक लोकसभा उपाध्यक्ष चुनाव न हो पाना हैरानी पैदा करता है. इतना ही नहीं लोकसभा उपाध्यक्ष को लेकर अभी तक को निर्णय और प्रस्ताव भी नहीं हो सका है, इसके पीछे कोरोना महामारी भी बड़ी वजह मानी जा रही है. ऐसे में संसद का सत्र सामान्य रूप से शुरू होने पर फिर से लोकसभा के डिप्टी स्पीकर के चुनाव की प्रक्रिया तेज हो सकती है. 

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जनता पार्टी के दौर में विपक्ष को मिला पद
राजनीतिक परंपरा के मुताबिक तो लोकसभा उपाध्यक्ष का पद विपक्षी दल को दिया जाता है, लेकिन यह परंपरा बीच-बीच में भंग होती रही है. इस परंपरा की शुरुआत छठी लोकसभा से हुई थी. पहली लोकसभा से लेकर पांचवीं लोकसभा तक सत्तारूढ़ कांग्रेस से ही उपाध्यक्ष चुना जाता रहा. लेकिन, आपातकाल के बाद 1977 में छठी लोकसभा के गठन के बाद जनता पार्टी ने सत्ता में आने पर लोकसभा उपाध्यक्ष का पद विपक्षी पार्टी को देने की परंपरा शुरू की थी, जिसके बाद लोकसभा में कांग्रेस के गौडे मुराहरि उपाध्यक्ष चुने गए थे.

कांग्रेस ने तोड़ दी परंपरा
केंद्र में जनता पार्टी की सरकार गिरने के बाद साल 1980 में कांग्रेस ने जब सत्ता में वापस की. इसके बाद कांग्रेस ने लोकसभा में उपाध्यक्ष का पद विपक्ष को देने की परंपरा को मान्यता नहीं दी. हालांकि, कांग्रेस ने अपने किसी सदस्य को तो उपाध्यक्ष नहीं बनाया, लेकिन यह पद विपक्षी पार्टी को देने के बजाय अपनी सहयोगी पार्टी एआईएडीएमके को दिया, जिसके बाद जी लक्ष्मणन उपाध्यक्ष बने. कांग्रेस ने इस परंपरा को 1984 में भी अपनाया और एआईएडीएमके के एम थंबी दुराई को सदन का उपाध्यक्ष बनाया.

राजीव गांधी के नेतृत्व में 1989 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की हार हुई और जनता दल के नेतृत्व में सरकार बनी. इसके बाद लोकसभा में उपाध्यक्ष के पद को विपक्षी पार्टी को देने की परंपरा 1989 में फिर से शुरू हुई और इस बार कांग्रेस के शिवराज पाटिल सर्वसम्मति से उपाध्यक्ष चुने गए. इसके बाद 1991 में वो लोकसभा अध्यक्ष भी चुने गए. नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली सरकार में कांग्रेस ने फिर लोकसभा उपाध्यक्ष का पद विपक्ष को देने के बजाय अपने सहयोगी को दिया. एम. मल्लिकार्जुनैय्या उपाध्यक्ष चुने गए. 

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इसके बाद 1997 में संयुक्त मोर्चा की सरकार बनी तो उस परंपरा का पालन फिर किया गया, जिसके तहत उपाध्यक्ष का पद विपक्षी दलों को दिया गया. बीजेपी के सूरजभान को सर्वसम्मति से लोकसभा उपाध्यक्ष चुना गया था. इसके बाद 1998 में लोकसभा चुनाव के बाद बीजेपी के नेतृत्व में सरकार बनी तो उपाध्यक्ष पद को विपक्ष को देने की परंपरा का पालन किया गया और कांग्रेस के पीएम सईद उपाध्यक्ष चुने गए, लेकिन इस के लिए 9 महीने का इंतजार करना पड़ा. यही नहीं 1999 के चुनाव के बाद जब बीजेपी की सरकार आई तो पीएम सईद ही उपाध्यक्ष बने. 


कांग्रेस ने परंपरा का पालन किया
कांग्रेस के नेतृत्व में 2004 में यूपीए की सरकार बनी तो पहली बार कांग्रेस ने विपक्षी परंपरा का पालन करते हुए लोकसभा में उपाध्यक्ष का पद एनडीए के नेता को दिया. अकाली दल के चरणजीत सिंह अटवाल उपाध्यक्ष चुने गए. इसके बाद 2009 में भी कांग्रेस ने इसी परंपरा का पालन करते हुए बीजेपी के करिया मुंडा को सर्वसम्मति से उपाध्यक्ष चुना, 

मोदी के सत्ता में आने के बाद टूटी परंपरा 
2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार बनी तो लोकसभा में उपाध्यक्ष का पद विपक्षी दल को देने की परंपरा को तोड़ दिया. बीजेपी ने विपक्ष के बजाय अपने सहयोगी एआईएडीएमके को दे दिया. एम थंबी दुराई एक बार फिर लोकसभा उपाध्यक्ष चुने गए. अब 2019 के सरकार बनने के बाद से यह पद खाली है, जिसकी मांग कांग्रेस ने उठायी है.  पिछली लोकसभा में उपाध्यक्ष रहे थंबी दुराई इस बार चुनाव हार गए हैं. 

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हालांकि, अधीर रंजन के पत्र लिखे जाने के बाद कांग्रेस की नजर इस पद को प्राप्त करने के खिलाफ, सरकार अन्य विपक्षी दलों के विकल्पों पर विचार कर रही थी. इसके लिए बीजेडी उम्मीदवार के लिए ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक से संपर्क किया था, लेकिन पटनायक ने ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई. ऐसे में इस पद के लिए अभी तक कोई प्रस्ताव तय नहीं हो पाया है. ऐसे में दो साल के बाद इस बार देखना होगा कि किसे लोकसभा में उपाध्यक्ष का पद मिलता है.

 

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