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आज का दिन: पंजाब से लेकर हरियाणा-राजस्थान तक... हर जगह क्यों मुश्किल में है कांग्रेस?

कांग्रेस ने तकरीबन 70 साल आज़ादी के लिए संघर्ष किया था और अब 70 साल आज़ादी के बाद सत्ता का सुख भोगती रही, अब पार्टी मुश्किल हालात में है, बहुत से कांग्रेसी नेता भी समय के साथ पार्टी का हाथ छोड़ कमल का दामन थाम चुके हैं लेकिन जो रह गए, वे दिन-ब-दिन पार्टी के लिए चिंताएं खड़ी करते जा रहे हैं.

सांकेतिक तस्वीर सांकेतिक तस्वीर
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 07 जुलाई 2021,
  • अपडेटेड 9:10 AM IST

कांग्रेस पार्टी जिसके इर्द-गिर्द भारतीय राजनीति फूली-फली, इस पार्टी के उत्थान और पतन को लेकर बहुत से लोग समय-समय पर अलग-अलग भविष्यवाणी करते रहें, कुछ सही हुई कभी तो कुछ ग़लत लेकिन एक आकलन पार्टी को लेकर बड़ा सही दिखाई पड़ता है और वो ये कि पार्टी ने तकरीबन 70 साल आज़ादी के लिए संघर्ष किया था और अब 70 साल आज़ादी के बाद सत्ता का सुख भोगती रही तो अब पार्टी की स्थिति ठन-ठन गोपाल ही रहने वाली है क्योंकि उन्होंने जितना संघर्ष किया था, उसका हासिल तो वो जी चुके, शायद इसीलिए बहुत से कांग्रेसी नेता भी समय के साथ पार्टी का हाथ छोड़ कमल का दामन थाम चुके हैं लेकिन जो रह गए , वे पार्टी को उबारेंगे क्या, दिन-ब-दिन पार्टी के लिए चिंताएँ खड़ी करते जा रहे हैं और ये एक - दो राज्य की बात नहीं, आप नाम लीजिये उस राज्य का जहाँ कांग्रेस की प्रजेंस हो और आप कमोबेश वही स्थिति पाएंगे.

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मंगलवार शाम की ही बात है, पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की मुलाकात कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से हुई, लेकिन एक घंटे तक चली इस मुलाकात के बाद भी हालात कुछ बदले हुए नज़र नहीं आये, मीटिंग के बाद कैप्टन जब निकले तो उनसे पत्रकारों ने सवाल पूछा, सवाल नवजोत सिंह सिद्धू को लेकर था, कैप्टन का जवाब था कि वो उनके बारे में कुछ नहीं जानते. ये तो हुई पंजाब की बात, ऐसी ही स्थिति राजस्थान में है, जहाँ पार्टी की 2018 से सरकार है, यहाँ भी राजस्थान कांग्रेस प्रभारी अजय माकन  सीएम अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच जारी तकरार को खत्म करने की कोशिश में लगे हुए हैं लेकिन वही ढांक के तीन पात वाली कहानी यहां भी है,

जहां सरकार है वहां की तो एक बात, जहाँ पार्टी सत्ता में नहीं वहाँ भी कलह चरम पर है, हरियाणा कांग्रेस की बात करें तो कहा जा रहा है कि हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के समर्थन वाले कांग्रेसी विधायक, संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल से मुलाकात कर, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कुमारी सैलजा को पद से हटाने और भूपेंद्र सिंह हुड्डा को पार्टी अध्यक्ष बनाने की माँग कर रहे हैं, वहीं गुजरात कांग्रेस में भरत सोलंकी एक बार फिर सूबे की कमान थामने के लिए प्रबल दावेदार के रूप में पेशबंदी कर रहे हैं तो शक्ति सिंह गोहिल, अर्जुन मोडवाडिया से लेकर सिद्धार्थ पटेल भी इस रस्साकशी में शामिल हैं. दक्षिण भारत में कर्नाटक कांग्रेस में भी पार्टी के दो दिग्गज नेता आमने-सामने हैं, कर्नाटक में साल 2023 में विधानसभा के चुनाव होने हैं. ऐसे में पार्टी की तरफ से मुख्यमंत्री का उम्मीदवार कौन होगा इसको लेकर सिद्धारमैया और शिवकुमार के बीच खींचतान शुरू हो गई है. ऐसे में सवाल ये है कि कांग्रेस पार्टी में इतनी असंतोष की आखिर वजह क्या है ? क्या इसका कोई हल भी नज़र आता है फ़िलहाल या के अभी दूर की कौड़ी है ? इन्हीं सवालों के जवाब पाने के लिए हमने बात की इंडिया टुडे मैगज़ीन के डेप्युटी एडिटर कौशिक डेका से और उनसे सबसे पहले यही पूछा कि...अलग-अलग राज्य स्तर पर दिग्गज कांग्रेसियों के असन्तोष की आख़िर वजह है क्या? जहां पर ये सरकार में है, वहां तो असन्तोष एक हद को मान भी लें, लेकिन जहाँ आप सत्ता में भी नहीं मसलन हरियाणा-गुजरात-कर्नाटक, वहां भी इन नेताओं के बीच कलह की वजह क्या है? क्या हाल-फ़िलहाल में सेंट्रल लीडरशिप के मसले पर क्या समाधान की कोई उम्मीद नज़र आती है ?

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देश में कोरोना के मामलों में धीरे-धीरे कमी देखी जा रही है. कल ही पिछले 111 दिन में सबसे कम केसेस दर्ज़ किए गए हैं. कुल चौंतीस हजार मामले. लगातार घटते आंकड़ों में गिरावट को देखते हुए कई जगहों पर लॉकडाउन, रिस्ट्रिक्शन में छूट दे दी गई है. आप एक तस्वीर मनाली से देख ही रहे होंगे सोशल मीडिया पर कैसे. कैसे वहां लोगों की भीड़ लगी हुई है. सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि बाकी देशों में भी प्रतिबंधों पर छूट दी जानी शुरू कर दी गई है. हर कोई चाहता है की सब जल्दी से जल्दी बैक टू नॉर्मल वाले हालात में आ जाए. लेकिन डेल्टा वैरिएंट और कुछ राज्यों कैसे केरल कर्नाटक महाराष्ट्र तमिलनाडु में केसेस अभी भी कम नहीं हुए हैं. और इस बीच सिविल एविएशन मिनिस्ट्री ने भी कह दिया है की एयरलाइंस 65 फीसदी क्षमता के साथ खुलेगी. जो पहले 50 फीसदी तक ही थी. इन सारी बातों को WHO ने भी माना है. WHO के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर माइक रयान ने वार्निंग दी है और कहा है कई देशों ने सामान्य हालात लाने के लिए बहुत जल्दबाज़ी की है. बल्कि इस दौर में तो देशों को और सतर्कता बरतनी चाहिए प्रतिबंधों में ढील देने से पहले. माहमारी अभी ख़त्म नहीं हुई है और कुछ महीनों में नई लहर आने की आशंका भी है. इधर कल ही जॉइंट सेक्रेटरी लव अग्रवाल ने कोरोना के हालात पर होने वाली नियमित प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि कोरोना की दूसरी लहर सीमित दायरे में ही सही, लेकिन अब भी मौजूद है.  हिल स्टेशनों पर भारी भीड़ का जिक्र कर उन्होंने कहा कि ऐसा करना अब तक के फायदे को कम कर सकता है. तो भारत के लिहाज से बात करें तो क्या सोचते हैं एक्स्पर्ट WHO और सरकार के बयान पर क्या सोचते है? क्या भारत ने भी अनलॉक में जल्दबाज़ी दिखाई है?

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विश्व बैंक ने एक स्टडी में बताया गया है कि पिछले कुछ दशकों में, भारत के गांवों में दहेज प्रथा के मामलों में कमी आई है। हालांकि, ये मामले अब भी सामने आ रहे हैं लेकिन पहले से कम. साल 1961 में दहेज प्रथा को गै़र-कानूनी घोषित किया जा चुका था। रिसर्चर्स ने 1960 से लेकर 2008 तक ग्रामीण भारत के 17 राज्यों में हुई 40 हजार शादियों पर स्टडी की है। चौंकाने वाली बात जो सामने इसमें आई वो ये है कि देश के सबसे ज़्यादा साक्षर राज्य केरल में धड़ल्ले से दहेज लिया और दिया जाता रहा है, केरल में 1970 के दशक से दहेज देने का चलन लगातार और तेजी से बढ़ा है. हाल के सालों में सबसे अधिक औसत दहेज यहीं लिया और दिया गया है। इसके अलावा पंजाब में भी शादियों में लेनदेन के मामले बढ़ रहे हैं. उन्होंने दावा किया है कि 95 फीसदी शादियों में दहेज दिया गया. हालांकि, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और महाराष्ट्र राज्यों में पिछले कुछ सालों में औसत दहेज में कमी आई है, तो देश के दूसरे राज्यों के मुक़ाबले केरल की आबादी तो अधिक साक्षर है, और फिर वहां दहेज के इतने अधिक मामले, ऐसा विरोधाभास क्यों? और जिन राज्यों में पिछले कुछ सालों में औसत दहेज में कमी आई है तो इन राज्यों में किस तरीके के उपाय अपनाये गए जिससे लोगों में जागरूकता बढ़ी?

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इन सब ख़बरों पर विस्तार से बात के अलावा हेडलाइंस और आज के दिन की इतिहास में अहमियत सुनिए 'आज का दिन' में अमन गुप्ता  ( https://twitter.com/amanalbelaa )  के साथ.

7 जुलाई 2021 का 'आज का दिन' सुनने के लिए यहां क्लिक करें...

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