
आज तक रेडियो पर 23 जून के सुबह के न्यूज़ एनालिसिस पॉडकास्ट में जिन ख़बरों बात होगी वो ख़बरें नीचे दी जा रही हैं. अमन गुप्ता ने एक्सपर्ट्स के साथ इन पर विस्तार से चर्चा की है. इसे सुनने के लिए यहां क्लिक करें या इस स्टोरी के आख़िर में भी लिंक दी गई हैं वहां जाकर भी आप इस न्यूज़ पॉडकास्ट तक पहुंच जाएंगे.
साल 2024 के लोकसभा चुनाव में अभी करीब 3 साल का वक्त बाकी है, लेकिन लगता है विपक्षी दल अभी से 24 की रणनीति बनाने की कोशिशों में जुट से गए हैं. ऐसा इसीलिए क्योंकि दिल्ली में कल विपक्षी पार्टियों की एक बैठक हुई. बैठक एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार के घर हुई, हालांकि, इस मीटिंग को लेकर जितना हो-हंगामा हुआ,उतना कुछ निकलकर आया नहीं, वजह ये थी कि इस मीटिंग में कोई भी कद्दावर नेता की मौजूदगी का अभाव दिखा. साथ ही, मीटिंग खत्म होने के बाद एनसीपी सांसद माजिद मेमन ने स्प्ष्ट किया कि ये बैठक शरद पवार ने नहीं, बल्कि टीएमसी नेता यशवंत सिन्हा ने बुलाई थी. इस मीटिंग में नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला भी पहुंचे थे, लेकिन थोड़ी ही देर में वो वहां से निकल गए. मीटिंग के ख़त्म होते ही मीडिया में ये ख़बर ज़रूर आयी कि यशवन्त सिन्हा कुछ राष्ट्र मंच के बैनर तले एक टीम बनाएंगे जो ज़रूरी मसलों पर एक विजन प्रस्तुत करेगी. हमने इस शोर-शराबे, कयासों से इतर बात की इंडिया टुडे मैगज़ीन के डेप्यूटी एडिटर कौशिक डेका से… और उनसे सबसे पहले यही पूछा कि सबसे पहले तो शरद पवार की अगुवाई में तीसरे मोर्चा को गढ़ने की ख़बर आयी, फिर यशवन्त सिन्हा की अगुवाई की ख़बर किसी राष्ट्र मोर्चे के नाम से आयी, ऐसे में ये मेल-मिलाप क्या थर्ड फ्रंट की शक्ल ले सकता है , क्या ये माने कि राष्ट्र मंच ही भविष्य का तीसरा मोर्चा है? और कांग्रेस इससे किनारे क्यों है?
एक रिपोर्ट में ये दावा किया गया है कि भारतीय अधिकारियों ने तालिबानी नेताओं से गुपचुप बातचीत के लिए दोहा का दौरा किया, अगर ये ख़बर सही है तो ऐसा पहली बार होगा जब तालिबान और भारत एक दूसरे से सीधे तौर पर मुखातिब हुए होंगे. साथ ही, ये भी पहली मर्तबा है जब वार्ता में शामिल किसी क़तर अधिकारी ने भारत और तालिबान की गोपनीय बातचीत की पुष्टि की हो. इस रिपोर्ट के बाद सियासत भी शुरू हो गई है जहाँ पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती ने कहा कि अगर तालिबान से बात हो सकती है तो पाकिस्तान से क्यों नहीं. ऐसे में, कुल मिलाकर बात अब इस दावे पर है, कितनी सच्चाई है इसमें ? और, किस कॉन्टेक्स्ट में ये कथित बातचीत हुई? भारत के लिए क्या ऐसा दाव पर है अफगानिस्तान में जो तालिबान से कथित तौर पर बातचीत की ज़रूरत पड़ी ?
ये ऐसे ही नहीं कहा जाता कि एक से भले दो इस बात के पीछे जो राज है वह है टीमवर्क का. आप खुद ही देखेंगे कि किसी भी बड़े प्रोडेक्ट या सर्विस की कामयाबी में उसकी टीम का हाथ होता है और ये सब टीम की पावर या क्षमता पर निर्भर करता है. हर फील्ड में टीम वर्क की जरूरत है क्योंकि इससे कब क्या शानदार आइडियाज निकल कर आ जाए कुछ नहीं कह सकते. और एक फील्ड है जहां अगर टीमवर्क से काम किया जाए तो चीज़ें कुछ आसान हो जाती है. वो है एग्रीकल्चरल फील्ड. दरअसल महाराष्ट्र के कुछ किसान मिलकर एक ग्रुप बनाकर तरह तरह के सब्जियां उगा रहे हैं ताकि वो सीधे ग्राहकों को सब्जियां बेच सके. बीच में मंडियों का कोई झमेला ही नहीं रहे! इस टाइप के फार्मिंग को ग्रुप फार्मिंग कहते हैं. ग्रुप फार्मिंग कुछ नया तरीका नहीं है. बस महाराष्ट्र में ये एक नया ट्रेंड है. तो ग्रुप फार्मिंग की शुरुवात कैसे और किसने की? इस आइडिया का आधार क्या है? महाराष्ट्र के किसानों का आगे का प्लान क्या है ताकि ये ग्रुप फार्मिंग और राज्यों तक पहुंच पाए?
ऊपर दी गईं तमाम ख़बरों पर विस्तार से बात के अलावा, हेडलाइंस और आज के दिन की इतिहास में अहमियत सुनिए 'आज का दिन' में अमन गुप्ता के साथ.