
बिहार के सीएम नीतीश कुमार की पहल पर पटना में 23 जून को 15 विपक्षी दलों की बैठक हुई. नीतीश की बुलाई इस बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी के साथ ही तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख और पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी भी मौजूद थीं. कांग्रेस के अध्यक्ष और पूर्व अध्यक्ष की मौजूदगी में ममता ने बंगाल कांग्रेस के रवैये पर सवाल उठाया था.
ममता ने कहा था कि बंगाल में कांग्रेस के रवैये के कारण बीजेपी को फायदा मिल रहा है. बैठक के बाद कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी कहा था कि हमारे बीच कुछ मतभेद हैं लेकिन हमने मिलकर चलने का फैसला कर लिया है. ममता की आपत्ति, खड़गे के बयान के बाद ऐसा लग रहा था जैसे पश्चिम बंगाल की सियासी तस्वीर बदल जाएगी. टीएमसी के खिलाफ हमलावर कांग्रेस के सुर नरम पड़ जाएंगे, बीजेपी को हराने की चाह से दोनों दल हाथ मिला लेंगे.
लेकिन हो ठीक उलट रहा. एक तरफ दोनों दलों का शीर्ष नेतृत्व बीजेपी के खिलाफ एकजुट होने की संभावनाएं तलाश रहा है तो वहीं दूसरी तरफ पश्चिम बंगाल में दोनों दलों के बीच जमकर बयानी तीर चल रहे हैं. पश्चिम बंगाल कांग्रेस के अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी ममता बनर्जी की पार्टी को चोरों की पार्टी, बीजेपी की बी टीम बता रहे हैं तो वहीं ममता भी कांग्रेस पर बीजेपी से सांठगांठ के आरोप लगा रही हैं.
विपक्षी एकजुटता की कवायद के बीच अधीर रंजन चौधरी, ममता बनर्जी पर इतने हमलावर क्यों हैं?
पश्चिम बंगाल के वरिष्ठ पत्रकार जयंतो घोषाल कहते हैं कि इसके पीछे कई कारण हैं. उन्होंने कहा कि पटना की बैठक के बाद मंच पर ममता बनर्जी और राहुल गांधी का एक-दूसरे को लेकर बॉडी लैंगुएज सारी कहानी बयान कर दे रहा है. ममता बनर्जी और राहुल गांधी के बीच की तल्खी खत्म हो गई या कम हुई है, ऐसा मैसेज दोनों ही नेताओं के बयान या बॉडी लैंगुएज से निकलकर नहीं आया. ममता बनर्जी वैसे भी नीतीश कुमार के बुलावे पर, उनकी पहल पर पटना गई थीं, राहुल गांधी से बात करने नहीं.
उन्होंने कहा कि इतने दलों के नेता एक मंच पर आए और दोबारा साथ बैठने के लिए हामी भर दी, यही पटना महाजुटान की बड़ी सफलता है. 2024 चुनाव में हार के डर से ये सारे दल एकसाथ बैठ जरूर गए लेकिन ऐसा लग रहा है कि बस ऊपर के मन से. जयंतो घोषाल कहते हैं कि दोनों ही दल गठबंधन के पेंच समझ रहे हैं. क्या राहुल गांधी, अधीर को ममता के खिलाफ बयानबाजी करने से मना नहीं कर सकते? लेकिन वे ऐसा नहीं कर रहे हैं तो इसके पीछे भविष्य की राजनीति और गठबंधन के कम आसार भी वजह हैं.
बंगाल में कांग्रेस से गठबंधन नहीं चाहतीं ममता
जयंतो घोषाल कहते हैं कि ममता बनर्जी कांग्रेस या किसी भी दल के साथ पश्चिम बंगाल में गठबंधन नहीं चाहतीं, कम से कम अभी के हालात में. ममता बनर्जी सूबे की एक भी सीट किसी भी दल के लिए छोड़ने को तैयार नहीं हैं. ऐसे में अधीर का ममता और उनकी पार्टी पर लगातार हमला बोलना गठबंधन को लेकर प्रेशर पॉलिटिक्स का भी हिस्सा हो सकता है. प्रेशर पॉलिटिक्स इसलिए, जिससे ममता को लगे कि हम कांग्रेस को साथ नहीं लेते हैं तो ये कुछ सीटों पर नुकसान पहुंचा सकती है, हार की वजह बन सकती है.
राहुल गांधी से मुलाकात का किस्सा बताते हुए जयंतो घोषाल ने कहा कि हमने उनसे अधीर को लोकसभा में विपक्ष का नेता बनाने को लेकर सवाल किया था. तमाम दिग्गज नेताओं को दरकिनार कर अधीर को नेता विपक्ष बनाने के सवाल पर राहुल गांधी ने कहा था- वे स्ट्रीट फाइटर हैं. राहुल गांधी की बात से संदेश साफ है कि पश्चिम बंगाल में हाशिए पर खड़ी कांग्रेस पार्टी को अधीर से सूबे में पुनर्जीवन की आस है.
पंचायत चुनाव के कारण बढ़ा है राजनीतिक तापमान
पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनाव के कारण भी राजनीतिक तापमान बढ़ा हुआ है. टीएमसी को बीजेपी के साथ ही कांग्रेस-लेफ्ट गठबंधन से टक्कर मिल रही है. जयंतो घोषाल का कहना है कि टीएमसी हो या कांग्रेस, दोनों ही पंचायत चुनाव में प्रमुख प्रतिद्वंदी हैं. कई जगह हिंसक झड़प की घटनाएं हुई हैं. कांग्रेस और टीएमसी, दोनों ही दलों के कार्यकर्ताओं में एक-दूसरे को लेकर अभी रोष है. ऐसे में प्रदेश में दोनों ही दलों का नेतृत्व कम से कम पंचायत चुनाव तक ऐसा कोई संदेश देना नहीं चाहेगा जिससे उनके मनोबल पर असर पड़े, खासकर पश्चिम बंगाल में सिर उठाने की कोशिश कर रही कांग्रेस.
एक पहलू ये भी है कि टीएमसी और कांग्रेस, दोनों ही दल पंचायत चुनाव को एक तरह से लोकसभा चुनाव के पहले पंचायत चुनाव को लिटमस टेस्ट की तरह ले रहे हैं. टीएमसी को लग रहा है कि 'जो जहां मजबूत, वो वहां लड़े' के फॉर्मूले पर बात बढ़ती है तो उसके लिए पंचायत चुनाव का प्रदर्शन सूबे में अपनी दावेदारी को और पुख्ता करने में सहायक होगा. वहीं, कंग्रेस भी पंचायत चुनाव में अधिक से अधिक सीटें जीतकर अपनी मजबूत मौजूदगी दर्ज कराना चाहती है जिससे वह बार्गेन करने की स्थिति में रहे.
पश्चिम बंगाल में क्या हैं गठबंधन के पेच
जयंतो घोषाल बताते हैं कि पश्चिम बंगाल में टीएमसी का कांग्रेस और लेफ्ट के साथ गठबंधन कठिन है. टीएमसी नहीं चाहेगी कि दोनों में से किसी भी दल को सूबे में सिर उठाने का मौका दिया जाए. इसके पीछे ममता बनर्जी की अपनी सोच है. उनको इस बात का डर है कि अगर दोनों में से किसी को भी उभरने का मौका दे दिया और इनका पुराना वोट टीएमसी से छिटकर अगर वापस चला गया तो पार्टी के लिए आगे की राह मुश्किल हो जाएगी. पश्चिम बंगाल कांग्रेस के अध्यक्ष अधीर इस बात को पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से ज्यादा बेहतर समझ रहे हैं.
फिलहाल टीएमसी-कांग्रेस गठबंधन मुश्किल
वरिष्ठ पत्रकार जयंतो घोषाल कहते हैं कि कांग्रेस और टीएमसी में गठबंधन के आसार फिलहाल नहीं नजर आ रहे हैं. टीएमसी सूबे की एक भी लोकसभा सीट छोड़ने को तैयार नहीं है और कांग्रेस पश्चिम बंगाल में विपक्षी एकजुटता के नाम पर वॉकओवर दे देगी? ऐसी संभावनाएं भी न के बराबर हैं. वे साथ ही ये भी जोड़ते हैं कि राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं. हो सकता है कि शिमला में होने वाली दूसरी बैठक में कोई रास्ता निकल आए. तब तक पंचायत चुनाव भी संपन्न हो चुके होंगे. शिमला की बैठक के बाद तस्वीर काफी हद तक साफ हो जानी चाहिए कि पश्चिम बंगाल में टीएमसी और कांग्रेस साथ आएंगे या 2024 के चुनाव में अकेले जाएंगे?