उद्धव...राज और अब आदित्य, 'हिंदुत्व' की राजनीति के लिए अयोध्या ही मुफीद पिच

बीजेपी से अलग होकर भी, कांग्रेस के साथ चलकर भी, शिवसेना हिंदुत्व की राजनीति नहीं छोड़ने वाली है, उसको समझ लग चुकी है कि राजनीति में सक्रिय रहना है तो राम का ठप्पा लेना जरूरी है.

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आदित्य ठाकरे आदित्य ठाकरे
सुधांशु माहेश्वरी
  • नई दिल्ली,
  • 13 जून 2022,
  • अपडेटेड 9:30 PM IST

महाराष्ट्र में तीन साल पहले हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनी थी. उसने 105 सीटें जीती थीं. उसकी साथी शिवसेना दूसरे नंबर की पार्टी रही और उसके खाते में 56 सीटें गईं. लेकिन चुनाव के बाद सीएम कुर्सी को लेकर ऐसी रस्साकशी देखने को मिली कि उद्धव ठाकरे ने एनसीपी प्रमुख शरद पवार से हाथ मिला लिया. उनके साथ में कांग्रेस पार्टी भी आ गई और महाराष्ट्र में महा विकास अघाडी की सरकार बन गई. 

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शिवसेना ने शुरुआत से जिस हिंदुत्व की राजनीति की है, ऐसे में उसका कांग्रेस और एनसीपी से हाथ मिलना एक बड़ा दांव रहा. सत्ता मिली और सीएम कुर्सी भी, इसलिए फायदा तो हुआ लेकिन वैचारिक रूप से पार्टी के सामने कई चुनौतियां खड़ी हो गईं. सबसे बड़ी चुनौती उसकी पुरानी साथी बीजेपी ही रही जो आज भी विचारधारा को लेकर पार्टी को कठघरे में खड़ा कर रही है. इस समय हर बार पार्टी को हिंदुत्व पर परीक्षा देनी पड़ती है, खुद को मौके-मौके पर हिंदू साबित करना पड़ता है. लेकिन शिवसेना ने इस परीक्षा से पार पाने की एक काट ढूंढ निकाली है. इस काट का नाम है- अयोध्या...वहीं अयोध्या जो सियासत की धुरी मानी जाती है, जहां पर धर्म के नाम पर पिछले कई दशकों से राजनीति जारी है.

आज भी अयोध्या के सियासी मायने नहीं बदले हैं. हिंदुत्व पर राजनीति करनी हो तो अयोध्या मुफीद....खुद को बड़ा हिंदू साबित करना हो तो भी अयोध्या मुफीद. इसी बात को शिवसेना ने समझ लिया है. इसी वजह से मुख्यमंत्री सहपरिवार अयोध्या दौरा कर चुके हैं. एमएनस प्रमुख राज ठाकरे भी अयोध्या जाने की तैयारी में हैं और अब आदित्य ठाकरे 15 जून को रामलला के दर्शन करने आने वाले हैं. सजंय राउत कह रहे हैं कि इस दौरे के कोई राजनीतिक मायने नहीं हैं. लेकिन अयोध्या की धरती और वहां की राजनीति जिस धुरी पर चलती है, कुछ भी सिर्फ संजोग या आकस्मिक नहीं कहा जा सकता. वैसे भी शिवसेना ने इस अयोध्या दौरे की जिस स्तर पर तैयारी की है, उसको देख साफ समझा जा सकता है कि दौरा अयोध्या का है लेकिन संदेश पूरे देश को है.

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बताया जा रहा है कि बड़ी संख्या में शिवसैनिक ठाणे से ट्रेनों में बैठ अयोध्या के लिए निकल चुके हैं. अलग-अलग शहरों से निकल सभी बड़ी संख्या में रामनगरी आने की तैयारी कर रहे हैं.  उनके नेता आदित्य ठाकरे भी अयोध्या आ रहे हैं, ये जान सभी खासा उत्साहित हैं. आदित्य ठाकरे का ये कार्यक्रम जिस तरीके से सेट भी किया गया है, उसको देख भी समझा जा सकता है कि पार्टी किसे और क्या संदेश देना चाहती है. आदित्य रामलला के दर्शन तो करेंगे ही, इसके अलावा गंगा आरती में भी शामिल होंगे. उनके साथ मौके पर हजारों की संख्या में शिवसैनिक, पार्षद, पदाधिकारी भी मौजूद रहने वाले हैं.

वैसे जो संदेश अभी आदित्य ठाकरे देने जा रहे हैं, जब महाराष्ट्र में महा विकास अघाडी के 100 दिन पूरे हुए थे, तब उद्धव ठाकरे भी अयोध्या पहुंचे थे. उस समय मीडिया से बात करते हुए उन्होंने जो कहा था, वहीं उनके उस दौरे का आधार भी रहा. उन्होंने कहा कि मैं बीजेपी से अलग हूं, हिंदुत्व से नहीं. बीजेपी का मतलब हिंदुत्व नहीं होता है. इसके अलावा उनकी तरफ से राम मंदिर निर्माण के लिए एक करोड़ रुपये भी दान किए गए. कहने को ये उनकी आस्था है, उनकी श्रद्धा है, लेकिन टाइमिंग और राजनीति के खेल ने उनके उस ऐलान के मायने राजनीतिक गलियारे में सभी को समझा दिए थे. अब आदित्य आ रहे हैं, दर्शन करने वाले हैं, क्या बयान देते हैं, किस पर निशाना साधते हैं, इस पर सभी की नजर रहने वाली है.

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यहां ये भी जानना जरूरी हो जाता है कि अयोध्या इस समय सिर्फ शिवसेना के लिए 'समाधान' नहीं बनी है. कई दूसरी पार्टियां भी जो वैसे तो धर्म के नाम पर राजनीति करने से बचती हैं, लेकिन अयोध्या में राम दर्शन करना नहीं भूलती हैं. वे भी ये मानकर चल रही हैं कि बीजेपी के हिंदुत्व का तोड़ ये अयोध्या ही है. इसके जितना करीब रहा जाएगा, समाज का एक बड़ा वर्ग भी साथ खड़ा रहेगा. इसी वजह से उत्तर प्रदेश चुनाव के समय बसपा ने अपने ब्राह्मण सम्मेलन का आगाज अयोध्या से किया था. इसी वजह से आम आदमी पार्टी ने भी अपना यूपी चुनाव का शंखनाद रामनगरी से किया. अखिलेश भी चुनाव के दौरान प्रचार के लिए अयोध्या आते रहे. अब  बीजेपी से अलग होकर भी, कांग्रेस के साथ चलकर भी, शिवसेना हिंदुत्व की राजनीति नहीं छोड़ने वाली है, उसको समझ लग चुकी है कि राजनीति में सक्रिय रहना है तो राम का ठप्पा लेना जरूरी है.

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