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कर्नाटक में कांग्रेस का वह फॉर्मूला जो उत्तर भारत में बन सकता है गेम चेंजर

कर्नाटक में शानदार चुनावी जीत के बाद, कांग्रेस अब मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे चुनावी राज्यों में फ्रंटफुट पर खेलती हुई नजर आएगी. कर्नाटक में जिन मुद्दों को पार्टी ने प्रमुखता से लोगों के सामने रखा था, उनमें से कुछ का इस्तेमाल वह उत्तर भारत में भी कर सकती है.

कांग्रेस ने चुनावी राज्यों के लिए तैयार की रणनीति कांग्रेस ने चुनावी राज्यों के लिए तैयार की रणनीति
रशीद किदवई
  • नई दिल्ली,
  • 15 मई 2023,
  • अपडेटेड 4:10 PM IST

नरेंद्र मोदी और अमित शाह की कार्यशैली से सीख लेते हुए, कांग्रेस ने कर्नाटक में शानदार चुनावी जीत के तुरंत बाद मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे चुनावी राज्यों की तैयारी शुरू कर दी है. दरअसल, 2014 के बाद बीजेपी में एक अलग कार्यशैली विकसित हुई जिसके तहत, किसी भी राज्य के चुनावी नतीजे घोषित होने के तुरंत बाद पार्टी दूसरे राज्यों पर फोकस करना शुरू देती है. प्रधानमंत्री मोदी के साथ मिलकर अध्यक्ष के रूप में अमित शाह ने 2014-2020 तक इस कार्यशैली के तहत शानदार परिणाम दिए. इसके तहत, चुनावी राज्यों में पार्टी अपनी तैयारी कम से कम छह महीने पहले शुरू कर देती है.

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कर्नाटक की तर्ज पर होगा अभियान

कांग्रेस के पास इस साल नवंबर-दिसंबर में होने वाले राजस्थान और छत्तीसगढ़ चुनाव में सत्ता को बचाए रखने की चुनौती है जबकि मध्य प्रदेश पर फिर से कब्जा करने का लक्ष्य भी पार्टी ने तय कर रखा है. मध्य प्रदेश में उसने 2018 में जीत हासिल की थी लेकिन 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया गुट के 22 विधायकों ने पाला बदल लिया जिसके बाद कमलनाथ सरकार गिर गई.

कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने 2024 के आम चुनावों से पहले चुनावी राज्यों में 'कर्नाटक टेम्पलेट' को दोहराने का फैसला किया है. मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के लिए कांग्रेस ने जो योजना तैयार की है उसमें स्थानीय रणनीति, सकारात्मक अभियान, मुफ्त उपहार, टिकटों का जल्द वितरण और कांग्रेस की विचारधारा पर जोर देना जैसी प्रमुख विशेषताएं शामिल हैं. इन्ही विशेषताओं के बल पर कांग्रेस कर्नाटक चुनाव में भी मैदान में उतरी थी.

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एमपी की तैयारियां शुरू

रविवार को कांग्रेस के चार पर्यवेक्षक कुलदीप राठौर, अर्जुन मोढवाडिया, सुभाष चोपड़ा और प्रदीप टम्टा मौजूद थे जो क्रमशः हिमाचल प्रदेश, गुजरात, दिल्ली और उत्तराखंड के प्रमुख नेताओं में शुमार हैं. मध्य प्रदेश कांग्रेस प्रमुख प्रमुख कमलनाथ और कांग्रेस महासचिव जय प्रकाश अग्रवाल की उपस्थिति में एक लंबी बैठक हुई, जिसमें पार्टी नेताओं ने जल्द से जल्द एक चुनावी घोषणापत्र तैयार करने और युवाओं (50 साल से कम उम्र के) को अधिक से अधिक टिकट देने का फैसला किया. कांग्रेस ने 2021 में अपने उदयपुर मंथन सत्र में 50 साल से कम उम्र वालों को 50 फीसदी टिकट देने का वादा किया था.

38 सेकंड का एक छोटा सा वीडियो कांग्रेस हलकों में प्रसारित किया जा रहा है. इसमें बजरंग बली शैली का एक करैक्टर भगवान राम को बता रहा है कि कर्नाटक में काम पूरा हो गया है. मास्टर को अपने सबसे उत्साही भक्त कमलनाथ की मदद करने के लिए कहते हुए सुना जा सकता है. कमलनाथ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष होने के साथ-साथ कांग्रेस के मुख्यमंत्री पद का चेहरा भी हैं. संयोग से, नाथ हनुमान भक्त भी हैं.

कमलनाथ ने अपने निर्वाचन क्षेत्र छिंदवाड़ा में हनुमान की 101 फीट ऊंची प्रतिमा बनवाने में सक्रिय भूमिका निभाई थी, जहां से वह दस बार सांसद और विधानसभा सदस्य चुने गए. यह देश की सबसे ऊंची हनुमान प्रतिमा है. नाथ ने कहा था, "छिंदवाड़ा हनुमान की मूर्ति दिल्ली के छतरपुर में स्थित मूर्ति से 8 इंच लंबी है. हनुमान जी के प्रति अपनी आस्था की वजह से  मैंने यह प्रतिमा स्थापित करवाई.'

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खास तरह से बन रही है रणनीति

इसके अलावा, माइंडशेयर एनालिटिक्स के चुनावी रणनीतिकार सुनील कानुगोलू और डिज़ाइन बॉक्स के नरेश अरोड़ा को भी जिम्मा सौंपा गया है. लो प्रोफाइल रहने वाले कानुगोलू को कथित तौर पर 2024 के संसदीय चुनावों के लिए पार्टी के अधिकृत पैनल में शामिल किया गया है. अरोड़ा 2021 में असम विधानसभा चुनाव के बाद से कांग्रेस के लिए काम कर रहे हैं और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत  के साथ भी काम कर रहे हैं. कांग्रेस के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि सुनील कानुगोलू और नरेश अरोड़ा दोनों सीधे कांग्रेस अध्यक्ष के दफ्तर को रिपोर्ट करते हैं.  

छत्तीसगढ़ में, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के राजनीतिक सलाहकार विनोद वर्मा (एक पूर्व पत्रकार) ने स्वयंसेवकों का एक विशाल नेटवर्क विकसित किया है, जो समय-समय पर ग्राउंड रिपोर्ट, टॉकिंग पॉइंट, पार्टी और उम्मीदवारों की निर्वाचन क्षेत्रवार प्रोफ़ाइल तैयार करते हैं.

बैक्स टू बेसिक्स की तरफ लौट रही है पार्टी

साफ है कि कांग्रेस 'बैक टू बेसिक्स' के उद्देश्य की तरफ लौट रही है. जीत के तुरंत बाद, सोनिया, राहुल और प्रियंका गांधी ने सिद्धारमैया, डी के शिवकुमार, मल्लिकार्जुन खड़गे, रणदीप सिंह सुरजेवाला और अन्य के साथ फोटो साझा करने से परहेज किया. नवनिर्वाचित विधायकों ने भी नए मुख्यमंत्री का चयन करने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष को अधिकृत किया न कि कांग्रेस संसदीय दल की प्रमुख सोनिया गांधी को. छोटी सी प्रतीत होनी घटना का अपना महत्व है क्योंकि अतीत में, सोनिया गांधी को संसद के दोनों सदनों में नेताओं का चयन करने का अधिकार दिया था जिसके लिए पार्टी संविधान में संशोधन किया गया था. गौर करने वाली बात ये है कि वह प्रावधान पार्टी संविधान में अब भी मौजूद है.

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खड़गे ने लागू किया ठंडे बस्ते में पड़ा प्रस्ताव

इसी तरह, दशकों में पहली बार ऐसा हुआ कि कांग्रेस कर्नाटक चुनाव से 45 दिन पहले ही अपने उम्मीदवारों की सूची जारी करने में सफल रही. अतीत में कांग्रेस के कई पैनल और कार्यकारी समूह, जिनका नेतृत्व ए.के. एंटनी, के. करूणाकरन, पीए संगमा, वीरप्पा मोइली, सैम पित्रोदा, दिग्विजय सिंह और अन्य नेताओं ने किया था, उन्होंने भी पार्टी उम्मीदवारों के शीघ्र चयन की आवश्यकता पर जोर दिया था.  

1998 से 2017 और फिर 2019-2022 के बीच पार्टी अध्यक्ष के रूप में सोनिया गांधी के लंबे कार्यकाल में इस सिफारिश को स्वीकार किया गया, लेकिन इसे कभी लागू नहीं किया गया. खड़गे को इस बात का श्रेय जाता है कि उन्होंने कार्यभार संभालने के छह महीने के भीतर इसे लागू करने में सफलता हासिल की.

ये पुरानी पार्टी को फिर से खड़ा करने या मानसिकता में बदलाव के शुरुआती संकेत हैं. महत्वपूर्ण बात यह है कि कांग्रेस इस बात को लेकर आश्वस्त हो रही है कि वह नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाले हाई वोल्टेज वाले चुनावी अभियानों के बावजूद भी जीतने या बीजेपी को हराने में सक्षम है. अब इसको उत्तर भारत के चुनावों में लागू किया जाना है. 
 

 

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