Advertisement

अंबेडकर की जन्मभूमि पहुंचे अखिलेश-जयंत-चंद्रशेखर, क्या है इसके सियासी मायने?

शुक्रवार को देशभर में बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर की जयंती मनाई गई. इस मौके पर भारत रत्न बाबा साहेब की जन्मभूमि पर एक अलग ही नजारा देखने को मिला. सपा मुखिया अखिलेश यादव, रालोद नेता जयंत चौधरी और दलित नेता चंद्रशेखर आजाद एक साथ नजर आया. इस खास मौके पर तीनों का एक साथ मंच साझा करना दलित समुदाय को राजनीतिक संदेश देने की कवायद है.

सपा नेता अखिलेश यादव, रालेद नेता जयंत चौधरी और दलित नेता चंद्रशेखर (फाइल फोटो) सपा नेता अखिलेश यादव, रालेद नेता जयंत चौधरी और दलित नेता चंद्रशेखर (फाइल फोटो)
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली,
  • 14 अप्रैल 2023,
  • अपडेटेड 4:16 PM IST

उत्तर प्रदेश की सियासत में पहली बार सपा प्रमुख अखिलेश यादव, आरएलडी चीफ जयंत चौधरी और दलित नेता चंद्रशेखर आजाद एक साथ एक मंच पर खड़े नजर आए. मौका था संविधान निर्माता डा. भीमराव अंबेडकर की जयंती का और स्थान बाबा साहेब के जन्म स्थान मध्य प्रदेश का महू. तीनों युवा नेताओं ने डा. अंबेडकर की 'शरण' में दस्तक देकर दलित समुदाय को राजनीतिक संदेश देने की कवायद की है. माना जा रहा है कि महू की यह तस्वीर यूपी में 2024 के चुनावी मैदान में भी भी नजर आ सकती है?  

Advertisement
बाबा साहेब की जन्मभूमि महू (मध्य प्रदेश) पहुंचे अखिलेश-जयंत और चंद्रशेखर

भाजपा और बसपा को मिल सकती है कड़ी चुनौती

यूपी में सपा का जयंत चौधरी की पार्टी आरएलडी के साथ पहले से गठबंधन है और अब तीसरी पार्टी के तौर पर दलित नेता चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी ने भी अपनी जगह पक्की कर ली है. अखिलेश-जयंत-चंद्रशेखर की तिकड़ी यूपी में आगामी लोकसभा चुनाव तक बनी रहती है तो पश्चिम यूपी के बेल्ट में बीजेपी और बीएसपी दोनों के लिए राजनीतिक तौर पर कड़ी चुनौती खड़ी हो सकती है. 

अखिलेश यादव यूपी में बसपा प्रमुख मायावती के साथ गठबंधन टूटने के बाद से दलित वोटों को अपने साथ जोड़कर एक मजबूत सियासी समीकरण रखने की दिशा में गंभीरता के साथ काम कर रहे हैं. 2019 में बसपा के साथ गठबंधन कर सपा चुनाव लड़ी थी, जिसका बड़ा फायदा बसपा को मिला था. इसके बाद भी मायावती ने गठबंधन तोड़ लिया था, जिसके बाद से अखिलेश दलित मतों को जोड़ने के लिए दलित महापुरुषों को अपनी राजनीति का हिस्सा बना रहे हैं. 

Advertisement

पहली बार अंबेडकर जन्मस्थली पहुंचे अखिलेश

सपा अध्यक्ष ने हाल ही में बसपा के संस्थापक कांशीराम की प्रतिमा का अनावरण रायबरेली में किया था और अब अंबेडकर की जयंती पर उनकी जन्मस्थली महू से यूपी की सियासत को साधने के लिए बड़ा दांव चला है. अखिलेश के साथ जयंत चौधरी और चंद्रशेखर आजाद थे, जिन्होंने बाबा साहेब की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित की. इस आयोजन की रूपरेखा चंद्रशेखर के द्वारा बनाई गई है. यह पहली बार है कि जब सपा के किसी शीर्ष नेतृत्व ने अंबेडकर की जन्मस्थली पर दस्तक दी है. इसके सियासी मकसद को साफ तौर पर समझा जा सकता है. 

2022 के विधानसभा चुनाव से सबक और खतौली उपचुनाव से जीत का फार्मूला से 2024 का सियासी गेम बदलने के लिए सपा नया समीकरण बनाने में जुटी है. विधानसभा चुनाव में चंद्रशेखर आजाद से मुंह फेर लेने वाले अखिलेश ने अब उनके साथ मंच साझा किया और उसके सूत्रधार जयंत चौधरी बने हैं. तीनों ही नेताओं की जोड़ी ऐसे ही बनी रही तो वेस्ट यूपी में बीजेपी और बसपा के लिए चुनौती बन सकती है. 

2022 से जाट-मुस्लिम के बीच घटी हैं दूरियां

पश्चिम यूपी की सियासत में जाट, मुस्लिम और दलित काफी अहम भूमिका अदा करते हैं. आरएलडी का कोर वोटबैंक जहां जाट माना जाता है तो सपा का मुस्लिम है. वहीं, चंद्रशेखर ने दलित नेता के तौर पर अपनी पहचान बनाई है. ऐसे में चंद्रशेखर और जयंत चौधरी को अखिलेश अपने साथ जोड़कर दलित-मुस्लिम-जाट का मजबूत कॉम्बिनेशन बनाना चाहते हैं. 

Advertisement

वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं कि 2013 से पहले पश्चिम यूपी में बीजेपी का कोई खास जनाधार नहीं रहा था, लेकिन मुजफ्फरनगर दंगे के बाद जाट समुदाय को जोड़कर उसने अपनी सियासी जमीन को मजबूत किया. 2022 में जाट-मुस्लिम के बीच दूरियां पटती दिखी. मायावती के सक्रिय न होने से चंद्रशेखर आजाद की दलित समुदाय के बीच पकड़ मजबूत हो रही है. ऐसे में जयंत चौधरी, चंद्रशेखर और अखिलेश एक साथ आते हैं तो पश्चिम यूपी की तमाम छोटी-छोटी जातीय के लोग भी जुड़ेंगे, जो बीजेपी के लिए ही नहीं बल्कि बसपा के लिए कड़ी चुनौती होगी. 

ये है पश्चिम यूपी का जाट-मुस्लिम-दलित समीकरण

पश्चिम यूपी में जाट 20 फीसदी के करीब हैं तो मुस्लिम 30 से 40 फीसदी के बीच हैं और दलित समुदाय भी 25 फीसदी के ऊपर है. यही वजह है कि अखिलेश यादव यूपी की सत्ता में वापसी के लिए पश्चिम यूपी में जाट-मुस्लिम-दलित समीकरण को अमलीजामा पहनाना चाहते हैं. इसके लिए दलित मसीहा बाबा साहेब की जन्मस्थली पर अखिलेश-जयंत-चंद्रशेखर ने दस्तक देकर यूपी की सियासत में एक मजबूत सियासी आधार तैयार करने की कवायद की है. देखना है कि यह तिकड़ी सूबे में क्या सियासी गुल खिलाती है?


 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement