
आम आदमी पार्टी के सबसे बड़े नेता अरविंद केजरीवाल ने हरियाणा चुनावों के दौरान दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे का दांव चला था. शराब घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में जमानत पर बाहर आने के बाद केजरीवाल ने जनता की अदालत में जाने की बात कहते हुए दिल्ली के सीएम पद से इस्तीफा दे दिया था. आम आदमी पार्टी ने हरियाणा में हर सीट पर उम्मीदवार उतारे, सुनीता केजरीवाल समेत स्टार प्रचारकों की फौज भी उतारी लेकिन पार्टी खाली हाथ ही रह गई. खाता खोलना तो दूर, 85 उम्मीदवार अपनी जमानत तक नहीं बचा सके. ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि हरियाणा चुनाव के नतीजे केजरीवाल के नेशनल ड्रीम पर कितना असर डालेंगे?
ये सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं क्योंकि हरियाणा अरविंद केजरीवाल का गृह राज्य है और आम आदमी पार्टी ने हरियाणा का बेटा की ही थीम पर अपना पूरा प्रचार अभियान केंद्रित रखा. खुद अरविंद केजरीवाल भी अपनी हर रैली में किंगमेकर बनने के दावे करते हुए ये कहते नहीं थक रहे थे कि इस बार हरियाणा में आम आदमी पार्टी के बिना सरकार नहीं बनेगी.
केजरीवाल और उनकी पार्टी की फुल स्ट्रेंथ फाइट के बावजूद पार्टी एक भी सीट नहीं जीत सकी. दिल्ली से सटे एनसीआर और पंजाब की सीमा से लगते इलाकों में आम आदमी पार्टी को बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद थी और यही उम्मीद सरकार में भागीदारी के दावे का आधार भी थी. केजरीवाल के चेहरे का जादू हरियाणा में नहीं चला और ना ही पार्टी का हरियाणा के बेटे वाला दांव ही. केजरीवाल के लिए यह झटका इसलिए भी बड़ा है क्योंकि हरियाणा उनका गृह राज्य है और दिल्ली-पंजाब, दोनों से ही इसकी सीमाएं लगती हैं जहां आम आदमी पार्टी की सरकार है.
नेशनल ड्रीम पर कितना असर डालेंगे हरियाणा नतीजे
हरियाणा चुनाव के नतीजे केजरीवाल के नेशनल ड्रीम के लिए भी झटका माने जा रहे हैं. इनका कितना और क्या असर होगा? इसे लेकर राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ तिवारी ने कहा कि आम आदमी पार्टी की 'पार्टी विथ डिफरेंस' वाली इमेज को धक्का लगा है. इस इमेज को कितना नुकसान पहुंचा है, ये दिल्ली चुनाव के नतीजों से ही पता चल सकेगा. फिलहाल, केजरीवाल के लिए सबसे बड़ा चैलेंज पहले दिल्ली, फिर पंजाब का किला बचाना है. अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के राजनीतिक भविष्य के लिहाज से दिल्ली चुनाव निर्णायक होंगे.
हरियाणा चुनाव नतीजों का संदेश क्या
हरियाणा चुनाव नतीजे देखें तो संदेश साफ है कि कांग्रेस का रिवाइवल केजरीवाल की नेशनल ड्रीम के लिए झटका है. दिल्ली की सियासत में जब आम आदमी पार्टी का उभार हुआ, तब शीला दीक्षित की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार के खिलाफ 15 साल की एंटी इनकम्बेंसी थी. यूपीए सरकार के दौरान भ्रष्टाचार के आरोप और अन्ना हजारे के आंदोलन से भी कांग्रेस के खिलाफ माहौल बना था.
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पंजाब चुनाव की बात करें तो उस समय भी कांग्रेस सत्ताधारी दल के रूप में चुनाव मैदान में उतरी थी.कांग्रेस के खिलाफ एंटी इनकम्बेंसी थी और विपक्ष में कोई मजबूत विकल्प नहीं था. दोनों राज्यों में वैक्यूम का लाभ आम आदमी पार्टी को मिला. लेकिन हरियाणा में दो मजबूत विकल्पों की फाइट में केजरीवाल खाली हाथ ही रह गए. हरियाणा के नतीजे अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी के लिए दिल्ली चुनाव तक नेशनल ड्रीम की बजाय लोकल प्लान पर काम करने का संदेश भी बताए जा रहे हैं.
लिटमस टेस्ट होंगे दिल्ली चुनाव
कुछ ही महीनों बाद होने वाले दिल्ली विधानसभा चुनाव अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी के लिए लिटमस टेस्ट की तरह देखे जा रहे हैं. दिल्ली चुनाव में अगर आम आदमी पार्टी सरकार बनाने में सफल रहती है तो केजरीवाल का कद और मजबूत होकर सामने आएगा. यह भ्रष्टाचार के विरोध की बुनियाद पर खड़ी भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी आम आदमी पार्टी के लिए भी संजीवनी की तरह होगा.
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केजरीवाल की पार्टी ऐसा कर पाती है कि नहीं, अगर कर पाती है तो यह उभार बाकी के राज्यों में कितना काम आएगा? ये समय बताएगा. गौरतलब है कि हरियाणा चुनाव में आम आदमी पार्टी को कुल मिलाकर 2 लाख 48 हजार 455 वोट मिले थे. वोट शेयर के लिहाज से पार्टी 1.79 फीसदी वोट पाकर आम आदमी पार्टी बसपा से भी पीछे रही थी.