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असम के बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद (BTC) चुनावों में बीजेपी एकला चलो की नीति को अपनाते हुए अपने पुराने सहयोगी बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट (BPF) के सियासी वर्चस्व को तोड़ने में कामयाब रही है. बीटीसी के चुनाव को अगले साल शुरुआत में होने वाले असम विधानसभा चुनाव का सेमीफाइनल माना जा रहा था. ऐसे में बीजेपी ने अपने नये समीकरण साधने शुरू कर दिए हैं.
बीटीसी पर बीपीएफ 17 साल से काबिज थी, लेकिन इस बार बहुमत से दूर रह गई है. वहीं, बीजेपी एक सीट से बढ़कर नौ पर पहुंच गई है, जिसके बाद पार्टी ने बीटीसी पर काबिज होने के लिए अपने नए सहयोगी तलाश लिए हैं. बीजेपी यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल (यूपीपीएल) और गण सुरक्षा पार्टी (जीएसपी) से हाथ मिलाकर असम के बोडो बहुल क्षेत्रों में स्वशासी निकाय बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल पर काबिज होने जा रही है. ऐसे में माना जा रहा है कि बीजेपी इस गठबंधन को लेकर विधानसभा चुनाव में उतर सकती है.
पीएम मोदी और शाह ने बधाई दी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस जीत पर यूपीपीएल और प्रदेश बीजेपी इकाई को बधाई देते हुए कहा कि एनडीए पूर्वोत्तर के लोगों की सेवा करने के लिए प्रतिबद्ध है और कामना करता हूं कि वे लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करें.
वहीं, बीजेपी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने यूपीपीएल को 12 सीटें जीतने के लिए बधाई देते हुए कहा, 'एनडीए ने असम बीटीसी चुनाव में स्पष्ट बहुमत हासिल कर लिया है. हमारे सहयोगी यूपीपीएल, मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल, हिमंता बिस्वा सरमा, रंजीत दास और बीजेपी की असम इकाई को बधाई. शाह ने कहा, 'मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विकसित पूर्वोत्तर के संकल्प पर भरोसा करने के लिए असम के लोगों को धन्यवाद देता हूं.'
इनके अलावा बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण समेत कई नेताओं को इस जीत पर नए गठबंधन को बधाई दी.
असम का बीटीसी चुनाव
बोडोलैंड प्रादेशिक परिषद (बीटीसी) संविधान की छठी अनुसूची के तहत एक स्वायत्त स्वशासी निकाय है, एक विशेष प्रावधान जो पूर्वोत्तर के कुछ जनजातीय क्षेत्रों में अधिक से अधिक राजनीतिक स्वायत्तता और विकेन्द्रीकृत शासन की अनुमति देता है. बोडो एक मैदानी जनजात है, जो असम में अनुसूचित जनजाति के दर्जे के साथ सबसे बड़ा समुदाय है, जो राज्य की आबादी का लगभग 6 फीसदी है. वे लंबे समय से बोडोलैंड की मांग को लेकर संघर्ष करते रहे हैं.
1980 के दशक के मध्य में, इस मांग ने एक सशस्त्र विद्रोही आंदोलन को जन्म दिया और कई उग्रवादी समूह सामने. शांति की बहाली के लिए केंद्र, राज्य और बोडो समूहों के बीच 1993, 2003 और जनवरी 2020 में तीन समझौते पर हस्ताक्षर किए गए हैं, जिससे उग्रवाद को समाप्त करने और अलग राज्य की मांग को छोड़ने पर सहमति बनी है.
1993 के समझौते के बाद एक बोडो स्वायत्त परिषद का गठन हुआ और 2003 के समझौते के परिणामस्वरूप बीटीसी का गठन हुआ. बीटीसी के अधिकार क्षेत्र के तहत पश्चिमी असम के बोडो बहुल चार जिले आते हैं, उदालगुड़ी, बाक्सा, चिरांग और कोकराझार. 2003 के समझौते के बाद, 2005, 2010 और 2015 में तीन बीटीसी चुनाव हुए, सभी में, हाग्रामा मोहिलारी के नेतृत्व वाले बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट (बीपीएफ) ने जीत दर्ज की.
बीटीसी का समीकरण
बता दें कि असम के बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद में कुल 46 सीटें हैं. इनमें से छह नामांकित होते हैं, जबकि 40 पर चुनाव होता है. इन 40 सीटों पर 7 और 10 दिसंबर को चुनाव हुए थे और नतीजे शनिवार को आए हैं. साल की शुरुआत यानी फरवरी 2020 में बोडो शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए जाने के बाद यह पहला चुनाव था. यही वजह है कि उग्रवादी से राजनेता बने हाग्रामा मोहिलरी के नेतृत्व वाला संगठन यूपीपीएल इस चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरा है.
बीटीसी चुनावों में बीपीएफ 17 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है, लेकिन बहुमत से चार सीटें कम है. वहीं, बीटीसी चुनाव में यूपीपीएल को 12 बीजेपी को नौ सीटें मिली हैं जबकि कांग्रेस और जीएसपी ने एक-एक सीट पर जीत मिली है. इस तरह से किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिल सका.
बीजेपी ने असम में नए सहयोगी तलाशे
बीटीसी का संयुक्त रूप से गठन करने के लिए बीजेपी ने यूपीपीएल और जीएसपी के साथ हाथ मिला लिया है. असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल के नेतृत्व में हुई बैठक के बाद तीनों दलों ने साथ आने का फैसला किया. हालाकि, 40 सदस्यीय नई परिषद की अध्यक्षता यूपीपीएल के प्रमुख प्रमोद बोडो करेंगे. इस तरह से बीजेपी ने बीटीसी पर 17 सालों के बीपीएफ के सियासी वर्चस्व को तोड़ दिया है. हालांकि, सोनोवाल के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार में बीपीएफ के तीन मंत्री हैं.
बता दें कि पिछले चुनाव में बीपीएफ और बीजेपी के बीच गठबंधन था. इस बार बीजेपी ने केवल एकला चलो की नीति अपनाई बल्कि पूर्व सहयोगी बीपीएफ को बीटीसी की सत्ता से बाहर कर दिया है. इससे साफ होगा कि बीजेपी असम में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में बीपीएफ के साथ नहीं लड़ेगी और अपने नए समीकरण के साथ मैदान में उतर सकती है.
संविधान की छठी अनुसूची द्वारा संचालित इन स्थानीय परिषद चुनावों के नतीजे अगले साल असम विधानसभा चुनावों में भी महत्वपूर्ण हो सकते हैं. असम के बोडो इलाके में बीपीएफ के राजनीतिक आधार को तोड़ने के लिए यूपीपीएल पर दांव लगाया है. इसका राजनीतिक फायदा विधानसभा में भी मिल सकता है, क्योंकि हाल में हाग्रमा मोहिलरी ने समझौते के तहत हथियार रखकर राजनीति में आए हैं. बीजेपी बीटीसी पर यूपीपीएल को सौंपकर विधानसभा चुनाव में यूपीपीएल की मदद ले सकती है.