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दलबदलुओं को नकार, ध्रुवीकरण को धार... 13 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव के नतीजों से निकले ये संदेश

सात राज्यों की 13 विधानसभा सीटों के उपचुनाव में बीजेपी और उसकी अगुवाई वाले एनडीए गठबंधन को दो सीटों का नुकसान हुआ है जबकि इंडिया ब्लॉक की सीटें बढ़कर 10 पहुंच गई हैं. उपचुनाव नतीजों में किसके लिए क्या संदेश हैं?

मल्लिकार्जुन खड़गे और जेपी नड्डा (फाइल फोटो) मल्लिकार्जुन खड़गे और जेपी नड्डा (फाइल फोटो)
बिकेश तिवारी
  • नई दिल्ली,
  • 15 जुलाई 2024,
  • अपडेटेड 6:54 PM IST

मध्य प्रदेश, बिहार, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल समेत सात राज्यों की 13 विधानसभा सीटों के लिए हुए उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और उसके सहयोगियों का संख्याबल चार से घटकर दो रह गया है जबकि विपक्षी इंडिया ब्लॉक को पांच सीटों का लाभ हुआ है.  कांग्रेस ने हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में दम दिखाया है तो वहीं बीजेपी ने मध्य प्रदेश की अमरवाड़ा सीट कांग्रेस से छीन ली है. 

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बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए के लिए पंजाब और तमिलनाडु से पॉजिटिव मैसेज भी है जहां गठबंधन के उम्मीदवार दूसरे नंबर पर रहे हैं. इन उपचुनावों में जनता ने दलबदल की राजनीति को लेकर सख्त संदेश भी दिया है. उपचुनाव नतीजों में क्या संदेश छिपे हैं? इसकी चर्चा से पहले उपचुनाव के नतीजों की चर्चा भी जरूरी है.

किस सीट से जीता कौन उम्मीदवार

पश्चिम बंगाल की चार सीटों पर उपचुनाव थे. विधानसभा चुनाव में रायगंज, राणाघाट दक्षिण, बागदा सीट बीजेपी के पास थी जबकि मानिकतला सीट विधानसभा चुनाव में टीएमसी जीती थी. सूबे की चारों सीटों पर टीएमसी ने जीत हासिल की है. हिमाचल प्रदेश की देहरा, नालागढ़ और हमीरपुर, तीन सीटों के उपचुनाव में हमीरपुर सीट बीजेपी ने जीती है जबकि दो सीटें कांग्रेस की झोली में गई हैं. तीनों सीट से निर्दलीय विधायक थे. तीनों ही विधायक विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर बीजेपी में शामिल हो गए थे.

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उत्तराखंड की बद्रीनाथ सीट विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने जीती थी जबकि मंगलौर सीट बसपा के पास थी. उपचुनावों में दोनों सीटें कांग्रेस ने जीत ली हैं. पंजाब के जालंधर वेस्ट से आम आदमी पार्टी के विधायक शीतल अंगुराल विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर बीजेपी में शामिल हो गए थे. अंगुराल के इस्तीफे से रिक्त हुई सीट पर हुए उपचुनाव में आम आदमी पार्टी ने कब्जा बरकरार रखा है. वहीं, जेडीयू के पास रही रुपौली सीट पर एनडीए और इंडिया ब्लॉक, दोनों को ही मात मिली है. तमिलनाडु में डीएमके ने विक्रवंडी सीट बरकरार रखी है, वहीं मध्य प्रदेश में बीजेपी छिंदवाड़ा की अमरवाड़ा सीट कांग्रेस से छीन ली है.

उपचुनाव में सत्ता के समर्थन का ट्रेंड बरकरार

उपचुनावों को लेकर एक धारणा रही है कि अधिकतर जीत उसी की होती है जो सत्ता में होती है. उत्तराखंड और बिहार के नतीजों को छोड़ दें तो इस बार के उपचुनावों में भी यह ट्रेंड बरकरार रहा. हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस दो और बीजेपी एक सीट जीतने में सफल रही. यहां कांग्रेस की सरकार है. पंजाब की एक सीट के उपचुनाव में आम आदमी पार्टी को जीत मिली. मध्य प्रदेश की एक सीट पर सत्ताधारी बीजेपी, तमिलनाडु में एक सीट पर डीएमके और पश्चिम बंगाल में चारो सीटों पर टीएमसी ने जीत हासिल की.  

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दलबदलुओं की जीत का गिर रहा ग्राफ

सात राज्यों की 13 सीटों के लिए उपचुनाव में दलबदलुओं की हार का ग्राफ बढ़ा है. हालिया उपचुनाव में बीजेपी ने हिमाचल प्रदेश की तीन सीटों पर पिछली बार निर्दलीय चुनाव जीते नेताओं को उम्मीदवार बनाया था. इनमें से दो हार गए और पार्टी केवल हमीरपुर सीट ही जीत सकी. इसी तरह पंजाब में भी आम आदमी पार्टी छोड़ बीजेपी में आए विधायक को उपचुनाव में हार का सामना करना पड़ा. बिहार की रुपौली सीट पर भी जेडीयू से विधायक रहीं बीमा भारती तीसरे नंबर पर चली गईं.

यह भी पढ़ें: हिमाचल उपचुनाव में कांग्रेस ने की 'वापसी', गुटबाजी से बीजेपी को कैसे हुआ नुकसान?

आंकड़ों की बात करें तो एडीआर की एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2016 से 2020 के बीच 81 फीसदी उपचुनाव जीतकर फिर से विधानसभा पहुंचने में सफल रहे थे. उपचुनाव के साथ ही विधानसभा चुनाव, लोकसभा चुनाव समेत सभी चुनाव मिला लें तो दलबदलुओं का स्ट्राइक रेट करीब 52 फीसदी था. यानि 2016 से 2020 के बीच जहां आधे से अधिक दलबदलु चुनाव जीत जाते थे वहीं इस उपचुनाव में ये आंकड़ा 50 फीसदी से भी कम रहा है.

बढ़ता बाइपोलराइजेशन

जिन 13 सीटों पर उपचुनाव हुए थे, इनमें से चार सीटें ऐसी थीं जहां नॉन एनडीए और नॉन इंडिया ब्लॉक के विधायक थे. हिमाचल प्रदेश की तीनों सीटों पर निर्दलीयों का कब्जा था जबकि उत्तराखंड की एक सीट पर बसपा को जीत मिली थी. उपचुनाव में एक सीट पर ही ऐसे उम्मीदवार को जीत मिली जो नॉन इंडिया ब्लॉक, नॉन एनडीए है. बिहार के पूर्णिया की रुपौली सीट से निर्दलीय शंकर सिंह ही चुनाव जीत सके. लोकसभा चुनाव में भी निर्दलीय समेत ऐसे दलों के 18 उम्मीदवार ही जीत सके थे जिनका संबंध राष्ट्रीय स्तर इन दोनों ही गठबंधनों में से किसी से नहीं था. अब उपचुनाव के नतीजे भी ऐसी पार्टियों के लिए टेंशन लेकर आए हैं.

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हिंदी हार्टलैंड का संदेश क्या

हिंदी हार्टलैंड की सात सीटों पर उपचुनाव थे जिनमें मध्य प्रदेश की एक, उत्तराखंड की दो और हिमाचल प्रदेश की तीन सीटें भी शामिल हैं. इन तीन राज्यों की छह सीटों के उपचुनाव में बीजेपी दो सीटें ही जीत सकी जिसमें मध्य प्रदेश की एकमात्र सीट अमरवाड़ा और हिमाचल की हमीरपुर सीट शामिल है. कांग्रेस ने उत्तराखंड में क्लीन स्वीप किया जबकि हिमाचल की तीन में से दो सीटें जीतने में पार्टी सफल रही. ये ऐसे राज्य हैं जहां मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच रहता है. दोनों ही दल किसी सहयोगी पर निर्भर नहीं रहते.

बिहार के नतीजों का क्या संदेश

बिहार के पूर्णिया की रुपौली सीट पर उपचुनाव में लोकसभा चुनाव का ट्रेंड बरकरार रहा. रुपौली के मतदाताओं ने आरजेडी की बीमा भारती और जेडीयू के कलाधर मंडल, दोनों को ही नकार दिया और निर्दलीय उम्मीदवार शंकर सिंह को जिताकर विधानसभा भेज दिया. राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ तिवारी ने कहा कि रुपौली उपचुनाव के नतीजे बताते हैं कि एंटी इनकम्बेंसी तो है लेकिन उसे कैश कराने के लिए सही रणनीति चाहिए होगी. आरजेडी ने बीमा भारती को उम्मीदवार बनाया जिनके इस्तीफे से सीट रिक्त हुई थी. कैंडिडेट के खिलाफ एंटी इनकम्बेंसी का नुकसान आरजेडी को उठाना पड़ा.

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पश्चिम बंगाल उपचुनाव नतीजों का संदेश क्या

लोकसभा चुनाव में दमदार प्रदर्शन के बाद पश्चिम बंगाल की सत्ताधारी टीएमसी ने उपचुनाव में भी क्लीन स्वीप किया है. टीएमसी ने रायगंज, बागदा और राणाघाट दक्षिण सीट से उपचुनाव में कृष्णा कल्याणी, मधुपर्णा ठाकुर और मुकुट मणि अधिकारी को टिकट दिया था. कृष्णा कल्याणी और मुकुट मणि विधानसभा चुनाव में बीजेपी के टिकट पर जीते थे. कृष्णा कल्याणी और मुकुट मणि को टीएमसी ने लोकसभा चुनाव में भी टिकट दिया था लेकिन तब उन्हें बीजेपी उम्मीदवारों से मात मिली थी. दोनों इस बार विधानसभा उपचुनाव जीतने में सफल रहे. ये दोनों नेता टीएमसी से ही बीजेपी में गए थे जो अब अपनी पुरानी पार्टी में वापस लौट चुके हैं. पहले लोकसभा चुनाव में बीजेपी की सीटें घटीं और अब उपचुनाव में सफाया हुआ. पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के बाद से ही बीजेपी के वोट शेयर में आ रही गिरावट, सूबे में पार्टी का नैरेटिव सफल नहीं हो पा रहा है.

उपचुनावों में हार है खतरे का संकेत, 5 चुनौतियों से पार नहीं पाई BJP तो आगे भी मुश्किल

बीजेपी के पास ममता बनर्जी के मुकाबले ऐसे चेहरे का अभाव भी है जिसकी लोकप्रियता पैन बंगाल हो. वरिष्ठ पत्रकार ओमप्रकाश अश्क ने कहा कि बंगाल में न तो हिंदुत्व चल पा रहा और ना ही संदेशखाली जैसे मुद्दे चले. ममता मैजिक के सामने जातीय राजनीति के लिए मतुआ दांव भी नहीं चला. पार्टी को अब सूबे में अपनी रणनीति पर नए सिरे से विचार करना होगा. ध्यान देने वाली बात है कि पार्टी बंगाल में टीएमसी के नेताओं के सहारे ही पैर जमाने की कोशिश करती आई है जो 2019 के लोकसभा चुनाव और इसके बाद विधानसभा चुनाव में एक हद तक सफल होता भी दिखा. लेकिन अब 2024 के चुनाव और उपचुनाव नतीजे पार्टी के लिए शुभ नहीं कहे जा सकते. बंगाल में एंटी टीएमसी वोटर जो लेफ्ट और कांग्रेस को वोट करता था, वही बीजेपी के साथ शिफ्ट हुआ था. बीजेपी के सामने अब इस वोटर को अपने पाले में बनाए रखने की चुनौती भी होगी. 

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मध्य प्रदेश में बीजेपी की जीत  के मायने क्या

मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले की अमरवाड़ा सीट बीजेपी ने कांग्रेस से छीन ली है. अमरवाड़ा की जीत को इस नैरेटिव पर मुहर की तरह भी देखा जा रहा है कि मध्य प्रदेश बीजेपी के लिए दूसरा गुजरात बनता जा रहा है. पहले छिंदवाड़ा सीट से लोकसभा चुनाव में नकुलनाथ की हार और अब अमरवाड़ा की पराजय, इसे कांग्रेस में नेतृत्व के अभाव और पार्टी के कमजोर पड़ते संगठन का संकेत भी बताया जा रहा है. कांग्रेस सूबे में दो नेताओं कमलनाथ और दिग्विजय सिंह पर अधिक निर्भर रही है. इन दोनों की पकड़ कमजोर पड़ती दिख रही है और ज्योतिरादित्य सिंधिया के पार्टी छोड़ जाने से भी लीडरशिप के मोर्चे पर एक वैक्यूम बना है.

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