
बिहार की तर्ज पर उत्तर प्रदेश में भी सियासी पठकथा लिखी जा रही है. बिहार के शिक्षा मंत्री प्रो. चंद्रशेखर के बाद उत्तर प्रदेश के ओबीसी चेहरा और सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने रामचरितमानस को बकवास बताते हुए सरकार से उसे बैन करने की मांग की है. उन्होंने कहा कि रामचरितमानस में दलितों और महिलाओं का अपमान किया गया है. उन्होंने कहा कि इसमें कुछ अंश ऐसे हैं, जिनपर हमें आपत्ति है. क्योंकि किसी भी धर्म में किसी को भी गाली देने का कोई अधिकार नहीं है.
स्वामी प्रसाद मौर्य ने आजतक से कहा, 'धर्म कोई भी हो, हम उसका सम्मान करते हैं. लेकिन धर्म के नाम पर जाति विशेष, वर्ग विशेष को अपमानित करने का काम किया गया है, हम उस पर आपत्ति दर्ज कराते हैं. रामचरितमानस में एक चौपाई लिखी है, जिसमें तुलसीदास शुद्रों को अधम जाति का होने का सर्टिफिकेट दे रहे हैं. उन्होंने कहा, ब्राह्मण भले ही दुराचारी, अनपढ़ और गंवार हो, लेकिन वह ब्राह्मण है तो उसे पूजनीय बताया गया है. लेकिन शूद्र कितना भी ज्ञानी, विद्वान हो, उसका सम्मान मत करिए. उन्होंने सवाल उठाया कि क्या यही धर्म है? अगर यही धर्म है तो ऐसे धर्म को मैं नमस्कार करता हूं. ऐसे धर्म का सत्यानाश हो, जो हमारा सत्यानाश चाहता हो.'
चंद्रशेखर के बयान के बाद बवाल
वहीं, बिहार के शिक्षा मंत्री प्रो. चंद्रशेखर ने नालंदा ओपन यूनिवर्सिटी के 15वें दीक्षांत समारोह में छात्रों को संबोधित करते हुए कहा था, 'मनुस्मृति में समाज की 85 फीसदी आबादी वाले बड़े तबके के खिलाफ गालियां दी गईं. रामचरितमानस के उत्तर कांड में लिखा है कि नीच जाति के लोग शिक्षा ग्रहण करने के बाद सांप की तरह जहरीले हो जाते हैं. यह नफरत को बोने वाले ग्रंथ हैं. एक युग में मनुस्मृति, दूसरे युग में रामचरितमानस, तीसरे युग में गुरु गोलवलकर का बंच ऑफ थॉट. ये सभी देश व समाज को नफरत में बांटते हैं. नफरत देश को कभी महान नहीं बनाएगी. देश को महान केवल मोहब्बत बनाएगी.'
बिहार से लेकर यूपी तक में मुद्दा गर्मा गया है और प्रो. चंद्रशेखर से लेकर स्वामी प्रसाद मौर्य के बयान से बीजेपी आगबबूला है, लेकिन अखिलेश यादव ने अपनी प्रतिक्रिया नहीं दी है. बीजेपी ने इसपर आक्रामक रुख अपना रखी है. वो इसे हिंदू धार्मिक ग्रंथ और हिंदू धर्म का अपमान बता रही है. बिहार में आरजेडी को घेर रही है तो यूपी में सपा पर सवाल खड़े कर रही है. पार्टी प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी कहते हैं कि स्वामी प्रसाद मौर्य का बयान समाजवादी पार्टी का एजेंडा है. वह तुष्टिकरण और हिंदुओं को अपमानित करने के लिए जानबूझकर रामचरितमानस का अपमान कर रहे हैं.
समता-मूलक समाज में वर्ग भेद क्यों?
लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार उदय यादव कहते हैं कि रामचरितमानस में कई जगह ऐसी बातें लिखी गई है, जिसमें कुछ खास जातियों को टारगेट किया गया है और उन्हें सामाजिक तौर पर उन्हें नीचा दिखाया गया है. स्वामी प्रसाद और प्रो. चंद्रशेखर ने इसी बात को उठा रहे हैं. दलित व ओबीसी समुदाय के बीच तेजी से जागरुकता आ रही है, उसके चलते ही अब सवाल खड़े होने लगे हैं. रामचरितमानस की चौपाई 'ढोल, गंवार, शुद्र, पशु, नारी, सकल ताड़ना के अधिकारी' हो या फिर मनुस्मृति में दलित-पिछड़ों के लिए जिस तरह से लिखा गया है. उस पर सवाल खड़े होने ही थे, क्योंकि समता-मूलक समाज बनाने की बात है तो फिर वर्गभेद वाली बातों को धार्मिक पुस्तकों में क्यों रखा जाना चाहिए?
बता दें कि बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर से लेकर सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य तक की रामचरितमानस पर जुबान फिसली नहीं है बल्कि सोच-समझकर दिया गया बयान है. प्रो. चंद्रशेखर और स्वामी प्रसाद मौर्य दोनों ही नेता भले ही अलग-अलग राजनीतिक पार्टियों में हो, लेकिन विचारधारा एक ही है. इतना ही नहीं दोनों नेता ओबीसी समुदाय से आते और समाजवादी विचाराधारा के साथ-साथ कट्टर अंबेडकरवादी भी है. इसके चलते ये ब्राह्मणवाद को अपने निशाने पर लेते रहते हैं. इस बयान से पहली भी दोनों ही नेता कई विवादित टिप्पणी कर चुके हैं.
स्वामी प्रसाद-चंद्रशेखर की सियासत
उत्तर प्रदेश की सियासत में स्वामी प्रसाद मौर्य ने 80 के दशक में कदम रखा है. स्वामी प्रसाद मौर्य 'बुद्धिज्म' को फॉलो करते हैं. वह अंबेडकरवाद और कांशीराम के सिद्धांतों को मानने वाले नेताओं में हैं, जिसके चलते दलित-ओबीसी की राजनीति ही करते रहे हैं. स्वामी प्रसाद ने लोकदल से अपना सियासी सफर शुरू किया और बसपा में रहते हुए राजनीतिक बुलंदियों को छुआ. बसपा से लेकर बीजेपी तक की सरकार में मंत्री रहे और अब सपा के साथ है, लेकिन अंबेडकरवादी विचारों को नहीं छोड़ा.
वहीं, प्रो. चंद्रशेखर मधेपुरा से आरजेडी से तीसरी बार विधायक बने हैं और दूसरी बार बिहार सरकार में मंत्री हैं. चंद्रशेखर ने 2020 के चुनाव में पप्पू यादव और जेडीयू के प्रवक्ता निखिल मंडल को हराकर विधायक बने हैं. लालू यादव और तेजस्वी यादव के बेहद करीब माने जाते हैं. 61 वर्षीय चंद्रशेखर साइंस में पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा किया है और पार्टी के अंदर पिछड़ों की आवाज माने जाते हैं. यादव समुदाय से आते हैं और मधेपुरा ओबीसी सियासत का केंद्र रहा है. चंद्रशेखर खुलकर दलित और ओबीसी की बात को रखते हैं.
'कमंडल बनाम मंडल की सियासत'
वरिष्ठ पत्रकार सैय्यद कासिम कहते हैं कि बदलती सियासत में सपा और आरजेडी दोनों ही पार्टियां इन दिनों समाजवाद के साथ अंबेडकरवाद के जरिए दलित-ओबीसी समुदाय को साथ लेने की कवायद कर रहे हैं. प्रो चंद्रशेखर और स्वामी प्रसाद मौर्य दोनों ही नेताओं को देखें तो ब्राह्मणवादी विचाराधारा के विरोधी रहे है. ऐसे में इनके बयान को भी उसी नजरिए से ही देखा चाहिए. आरजेडी ने जिस तरह से इस बयान के बहाने कमंडल बनाम मंडल की सियासत का राग छेड़ दिया है. स्वामी प्रसाद मौर्य के जरिए सपा इस मुद्दे पर दलितों, पिछड़ों के विश्वास को जीतकर बीजेपी के हिंदुत्व की पालिटिक्स को कमजोर करने की कवायद है.
बता दें कि उत्तर प्रदेश और बिहार की राजनीति पिछले तीन दशक से ओबीसी समुदाय के इर्द-गिर्द सिमटी हुई है. 2014 में नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद से ओबीसी समुदाय का बड़ा तबका बीजेपी के साथ है और पार्टी भी अपनी हिंदुत्व के सियासत के जरिए उनके विश्वास को बनाए रखने की कवायद में है. बिहार में भले ही दलित और ओबीसी का बड़ा तबका आरजेडी के साथ है, लेकिन यूपी में बीजेपी के साथ मजबूती से खड़ा है.
आरजेडी प्रो. चंद्रशेखर के बयान के साथ मजबूती से खड़ी होकर बिहार में दलित-ओबीसी को आरजेडी हरहाल में अपने साथ जोड़े रखने की कवायद की है. आरजेडी ने भी इस बहाने कमंडल बनाम मंडल की सियासत का राग छेड़ दिया है. पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने शिक्षा मंत्री को समाजवादियों की राह पर चलने वाला बताया और कहा कि कमंडलवादियों से लड़ने के लिए मंडलवादी पूरी तरह से तैयार हैं.
हिंदुत्व की सियासत का काउंटर प्लान
वहीं, यूपी में बीजेपी के वोटबैंक बन चुके ओबीसी और दलितों को सपा अपने खेमे में वापस लाने की कोशिश कर रही है. 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद से ही सपा प्रमुख अखिलेश यादव अंबेडकरवादियों को भी गले लगा रहे हैं. बसपा के दलित मूवमेंट से जुड़े रहे तमाम नेताओं को सपा में लिया है, जिसमें स्वामी प्रसाद मौर्य से लेकर रामअचल राजभर, इंद्रजीत सरोज और लालजी वर्मा तक शामिल हैं. इतना ही नहीं अखिलेश यादव जातिगत जनगणना की मांग उठा रहे हैं तो उनके नेता ब्राह्मणवाद के खिलाफ मुखर है.
अंबेडकरवादियों के जरिए अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश की सियासत में दलित और ओबीसी को अपने पक्ष में एकजुट कर बीजेपी से मुकाबला करना चाहते हैं. स्वामी प्रसाद मौर्य के बयान को इसी कड़ी में देखा जा रहा है, क्योंकि वो दलितों के बड़े पक्षधर हैं. ऐसे में देखना है कि स्वामी प्रसाद मौर्य यूपी में सपा की राजनीति में समाजवाद के साथ-साथ अंबेडकरवादी चेहरा गढ़ना चाहते हैं, क्योंकि इस मुद्दों पर जितना बहस जोर पकड़ेगी, उससे दलित और ओबीसी की सियासत भी राजनीतिक गुल खिलाएगी.