
भारतीय जनता पार्टी जो असम, बंगाल से लेकर, तमिलनाडु और केरल तक अपने पैर पसारना चाहती है, वो अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग धुन पर गाना गा रही है. कोई मुद्दा किसी राज्य में बड़े ही जोर-शोर से उठाया जाता है तो दूसरी ओर वही मुद्दा बगल के राज्य में एकदम न्यूट्रल मोड पर पड़ा होता है. इसका एक उदाहरण CAA को ही लिया जा सकता है. असम राज्य में भाजपा ने CAA को अपने मेनिफेस्टो से ही स्किप कर दिया है. असम में भाजपा CAA पर कोई चर्चा ही नहीं कर रही, वहीं बगल के राज्य में बंगाल में भाजपा CAA लागू करने का दावा कर रही है.
इसी प्रकार दक्षिण के राज्यों केरल और तमिलनाडु में गौ हत्या ऐसा मामला है जिस पर भाजपा नेता पशोपेश में हैं कि क्या करना चाहिए. एक तरफ भाजपा तमिलनाडु की राजनीति में गौ हत्या पर बैन लगाने के दावे के साथ महाविस्फोट की तैयारी कर रही है तो वहीं दूसरी गौ हत्या को लेकर भाजपा केरल में एकदम शांत बैठी है. तमिलनाडु और केरल दोनों ही राज्यों में 6 अप्रैल के दिन चुनाव होने जा रहे हैं.
गौ हत्या का मामला
तमिलनाडु में जहां साल 2016 में 234 सीटों पर लड़ने वाली भाजपा को जीरो सीट मिली थी, वही भाजपा अबकी बार AIADMK के गठबंधन के साथ 20 सीटों पर चुनाव लड़ने जा रही है. तमिलनाडु के 2021 विधानसभा चुनावों के लिए भाजपा ने राज्य में गौ हत्या पर प्रतिबंध लगाने का वादा किया है. साथ ही रेस्क्यू किए हुए जानवरों को तमिलनाडु के मंदिरों में चलाई जा रहीं गौ शालाओं में भेजने का वादा किया है. लेकिन मजेदार बात ये है कि भाजपा ने केरल के लिए जारी किए अपने मेनिफेस्टो में गौ हत्या का जिक्र तक नहीं किया है स्वभाविक है केरल में गौ मांस का चलन है इसलिए भाजपा यहां अपने मतदाताओं को प्रभावित नहीं करना चाहती है.
तमिलनाडु और केरल के लिए अंतर क्यों?
नेशनल सैंपल सर्वे के 2011-12 के एक सर्वे के अनुसार जहां तमिलनाडु में बीफ वालों की संख्या 40 लाख है तो केरल में इसकी दोगुनी यानी 80 लाख संख्या है जो बीफ खाते हैं. हालांकि यहां बीफ का मतलब भैंस के मांस से होता है न कि गाय के मांस से. इसलिए केरल में गौ हत्या पर बैन करने के वायदे से भाजपा को नुकसान झेलना पड़ सकता है.
CAA: बंगाल में कुछ असम में कुछ
भाजपा द्वारा जिस तरह की दोहरी नीति केरल और तमिलनाडु के मामले में अपनाई है उसी तरह का अंतर्द्वंद असम और बंगाल के चुनावों में दिखता है. साल 2019 के दिसंबर महीने में भाजपा को CAA के कारण लोकल लोगों के भारी विरोध का सामना करना पड़ा था.
असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल के खिलाफ इतना भारी विरोध हुआ कि पार्टी ने असम में अपना मुख्यमंत्री तक घोषित नहीं किया है. भाजपा किसी भी तरह का रिस्क नहीं लेना चाहती इसलिए पार्टी बिना मुख्यमंत्री चेहरे के ही चुनावों में उतर गई है.
असम राज्य की भाजपा ने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के उस बयान को भी बहुत अधिक हवा नहीं दी है जिसमें वे कह रहे थे कि CAA केंद्र का कानून है और राज्य में शब्दशः लागू होगा. लेकिन बंगाल का गणित कुछ अलग है यहां एंटी मुस्लिम सेंटिमेंट और 1 करोड़ मटुआ वोटरों की उपस्थिति के चलते भाजपा ने कोरोना वैक्सीन के प्रोग्राम के खत्म होते ही राज्य में CAA लागू करने का वादा किया है.