
भारतीय जनता पार्टी ने 2014 में केंद्र की सत्ता हासिल कर इतिहास रच दिया था. इसके बाद से बीजेपी ने देश के अधिकतर राज्यों में या तो अकेले अपने दम पर सरकार बनाई या फिर एनडीए गठबंधन की सरकारें बनीं. लेकिन दक्षिण भारत का दुर्ग जीतने में बीजेपी को अभी तक सफलता नहीं मिल पाई है.
मोदी युग में बीजेपी ने ऐसे कई राज्यों में जीत की पताका लहराई है, जहां पहले कभी पार्टी सत्ता में नहीं रही. जैसे असम और त्रिपुरा जैसे राज्यों में बीजेपी पहली बार अकेले अपने दम पर बहुमत के साथ सत्ता में आई. वहीं, हरियाणा और झारखंड जैसे राज्यों में भी बीजेपी का मुख्यमंत्री गद्दी पर बैठा. हालांकि, इसी दौरान कर्नाटक को छोड़कर बीजेपी दक्षिण भारत के किसी भी राज्य में अपनी पैठ नहीं बना पाई.
दक्षिण भारत देश का ऐसा हिस्सा है, जहां बीजेपी को सत्ता में आने के लिए अभी लंबा सफर तय करना है. यही वह सवाल है जिसके बारे में बीजेपी सोच रही है, जिससे कि न सिर्फ पार्टी का आधार मजबूत हो सके बल्कि लोकसभा चुनाव 2024 में (कर्नाटक को छोड़कर) ठीक-ठाक सीटें भी जीत सके.
इस रिपोर्ट में हमने दक्षिण के छह राज्यों आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, पुडुचेरी, तमिलनाडु और तेलंगाना में बीजेपी के जनाधार का विश्लेषण किया है. इन राज्यों में बीजेपी के जनाधार पर विश्लेषण के लिए हमने दो बिंदुओं पर फोकस किया है. ये दो बिंदु हैं- पहला इन राज्यों में बीजेपी का वोट शेयर और इन राज्यों की जिन सीटों पर बीजेपी ने चुनाव लड़ा है, वहां पर पार्टी का वोट प्रतिशत.
हम सबसे पहले शुरुआत आंध्र प्रदेश से करेंगे.
आंध्र प्रदेश
आंध्र प्रदेश दक्षिण भारत का वह राज्य है, जहां 1990 के दशक में बीजेपी को टीडीपी के रूप में एक कद्दावर का राजनीतिक सहयोग मिला. चंद्रबाबू नायडू वे नेता थे जिन्होंने 1990 के दशक में खुलकर बीजेपी का समर्थन किया था. टीडीपी अटल सरकार के दौरान एनडीए का हिस्सा थी. टीडीपी मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में भी एनडीए का हिस्सा रही थी.
बीते कुछ सालों में आंध्र प्रदेश विधानसभा चुनाव आम चुनावों के साथ ही हुए हैं. आंध्र प्रदेश में बीजेपी का जनाधार कम रहा है लेकिन टीडीपी से गठबंधन की वजह से बीजेपी ने कम सीटों पर चुनाव लड़े लेकिन 2014 में चार विधानसभा सीटें और दो संसदीय सीटें जीतने में कामयाब रही. 2014 विधानसभा चुनाव में बीजेपी का वोट शेयर दो फीसदी और लोकसभा चुनाव में सात फीसदी रहा.
हालांकि, 2019 के विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने आंध्र प्रदेश में अकेले सभी सीटों पर चुनाव लड़ा था और विधानसभा और लोकसभा दोनों ही चुनावों में पार्टी का वोट प्रतिशत एक फीसदी से भी कम रहा था. इन दोनों चुनावों में बीजेपी अपना खाता तक नहीं खोल सकी थी.
नीचे दिए चार्ट से समझा जा सकता है कि लंबे समय से टीडीपी का साझेदार रहने के बावजूद बीजेपी राज्य में टीडीपी की छत्रछाया के बाहर नहीं निकल सकी अपना जनाधार मजबूत करने में कामयाब नहीं हो पाई है. 2024 के लोकसभा चुनाव में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या बीजेपी एक बार फिर आंध्र प्रदेश में अपने दम पर चुनाव लड़ेगी या फिर अपनी सीटें बढ़ाने के लिए किसी साझेदार को ढूंढेगी?
तेलंगाना
तेलंगाना में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं. कभी आंध्र प्रदेश का हिस्सा रहा तेलंगाना लंबे भाषायी विवाद के बाद 2014 में अलग राज्य बन गया था. तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसी राव के नेतृत्व में तेलंगाना राष्ट्रीय समिति (अब भारत राष्ट्रीय समिति) लंबे समय से इस आंदोलन की अगुवाई कर रहे थे. तेलंगाना के गठन के बाद से वह राज्य की सत्ता संभाल रहे हैं. आंध्र प्रदेश की तरह तेलंगाना की सियासत में भी बीजेपी की कोई बड़ी भूमिका नहीं है.
2014 के बाद से तेलंगाना में बीजेपी की परफॉर्मेंस आंध्र प्रदेश की तरह ही रही है. तेलंगाना विधानसभा चुनाव में बीजेपी का वोट प्रतिशत 7 फीसदी और लोकसभा चुनाव में 10 फीसदी रहा है. बीजेपी का टीडीपी से गठबंधन रहा है. 2014 में राज्यवार वोट प्रतिशत की तुलना में बीजेपी का सीटों पर वोट प्रतिशत अधिक रहा है. विधानसभा चुनाव में बीजेपी का वोट प्रतिशत 19 फीसदी जबकि लोकसभा चुनाव में 23 फीसदी रहा.
2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने अकेले चुनाव लड़ा था और उसका वोट प्रतिशत महज सात फीसदी था. हालांकि 2019 के लोकसभा चुनाव में तेलंगाना में बीजेपी का वोट प्रतिशत में इजाफा हुआ और ये बढ़कर 19 फीसदी पहुंच गया था. इसके बाद से राज्य में बीजेपी की परफॉर्मेंस में लगातार सुधार हो रहा है. बीजेपी ने 2020 में हुए हैदराबाद नगर निगम चुनाव में राजनीतिक पंड़ितों को चौंका दिया था. इस चुनाव में न सिर्फ पार्टी ने अच्छे खासे वोट बटोरे थे बल्कि वोट प्रतिशत और सीट शेयरिंग के हिसाब से वह दूसरे स्थान पर रही थी.
तेलंगाना में हाल ही में विधानसभा उपचुनाव में बीजेपी ने सत्तारूढ़ टीआरएस को कड़ी टक्कर दी थी और मुख्य प्रतिद्वंदी बनकर उभरी. इस प्रक्रिया में बीजेपी ने उसी कांग्रेस को पीछे छोड़ दिया जिसने आंध्र प्रदेश से तेलंगाना को अलग करने की प्रक्रिया शुरू की थी. अब यह तो समय बताएगा कि हैदराबाद नगर निगम और उपचुनाव में बीजेपी ने जो रफ्तार पकड़ी है, वह उसे बरकरार रख पाती है या नहीं? लेकिन अगर बीजेपी तेलंगाना में चौंकाने वाले नतीजे देती है तो कर्नाटक के बाद दक्षिण भारत के एक और राज्य में बीजेपी के जनाधार का विस्तार होगा.
कर्नाटक
कर्नाटक दक्षिण भारत का एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां बीजेपी ने अपने दम पर सरकार बनाई है. न सिर्फ यहां बीजेपी का प्रदर्शन अपने पीक पर रहा है बल्कि 2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी को राज्य में कुल मतदाताओं में से आधे से अधिक का समर्थन भी मिला था. बीजेपी के कर्नाटक से बीएस येदियुरप्पा, अनंत कुमार, वेंकैया नायडू जैसे कई कद्दावर नेता हैं. यहां पर पार्टी का आधार भी बहुत मजबूत है. 2008 में बीजेपी ने लिंगायत समुदाय के लोकप्रिय नेता बीएस येदियुरप्पा की अगुवाई में राज्य में जेडीएस की मदद से अपनी पहली सरकार बनाई थी.
2013 में येदियुरप्पा बीजेपी से अलग हो गए थे, जिसके बाद पार्टी चुनाव में बहुत बुरी तरह हारी थी. बीजेपी का वोट प्रतिशत सीधा गिरकर 20 फीसदी हो गया था. लेकिन अगले साल 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी का वोट प्रतिशत 20 फीसदी से बढ़कर 43 फीसदी हो गया था. बीजेपी ने राज्य में 28 लोकसभा सीटों में से 17 पर जीत दर्ज की थी.
2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी का वोट प्रतिशत सात फीसदी गिर गया था. हालांकि, पार्टी ने 224 विधानसभा सीटों में से 104 सीटों पर जीत दर्ज कर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी.
2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी को राज्य में कुल 51 फीसदी वोट मिले थे जबकि जिन सीटों पर पार्टी चुनाव लड़ी थी वहां का वोट प्रतिशत 53 फीसदी रहा था. राज्य में पार्टी ने 28 संसदीय सीटों में से 25 पर जीत दर्ज की थी. बीजेपी इस बार भी कर्नाटक में बंपर जीत की उम्मीद है.
केरल
केरल की राजनीति में कैडर आधारित सियासत का दबदबा रहा है. राज्य में वामपंथी गठंबधन और कांग्रेस गठबंधन बारी-बारी से सत्ता में आते-जाते रहे हैं. लेकिन 2021 के विधानसभा चुनाव में यह ट्रेंड उस समय बदला, जब सत्तारूढ़ वामपंथी मोर्चा अपनी सरकार बचाने में कामयाब रहा.
केरल की राजनीति में बीजेपी एक कमजोर खिलाड़ी रहा है. हालांकि, आरएसएस के कार्यकर्ताओं का केरल में मजबूत आधार है. 2014 से राज्य में बीते चार चुनावों में बीजेपी का वोट प्रतिशत 10-13 फीसदी के आसपास रहा है.
2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी का वोट प्रतिशत सबसे ज्यादा 13 फीसदी रहा. पार्टी ने 2021 के विधानसभा चुनाव में मेट्रो मैन ई. श्रीधरन को अपना मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनाया था. हालांकि, इस चुनाव में भी पार्टी का परफॉर्मेंस 2016 विधानसभा चुनाव की तरह ही रहा. पार्टी का वोट प्रतिशत दो फीसदी लुढ़ककर 13 फीसदी से कम होकर 11 फीसदी हो गया.
केरल में जनाधार बढ़ाने के लिए बीजेपी लगातार कोशिश कर रही है. यहां वो सभी आधार मौजूद हैं जिससे बीजेपी को चुनाव में मदद मिलता है. जैसे कि 50 फीसदी से ज्यादा अल्पसंख्यक (क्रिश्चयन और मुस्लिम). आरएसएस का मजबूत कैडर, लेफ्ट के रूप में वैचारिक प्रतिद्वंदी. फिर भी बीजेपी यहां कुछ खास कामयाबी हासिल नहीं कर सकी है.
तमिलनाडु और पुडुचेरी
तमिलनाडु एक और ऐसा राज्य है, जहां की राजनीति में अभी बीजेपी का कद बहुत छोटा है. तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री और एआईएडीएमके नेता जयललिता उन क्षेत्रीय नेताओं में से एक थीं, जिन्होंने 1990 के दशक में एनडीए के साझेदार के तौर पर बीजेपी का समर्थन किया था. राज्य में बीते एक दशक में बीजेपी का वोट प्रतिशत महज तीन से पांच फीसदी रहा है. राज्य में बीजेपी को वोट प्रतिशत सबसे अधिक 2014 लोकसभा चुनाव में रहा. इस दौरान पार्टी का वोट प्रतिशत पांच फीसदी से थोड़ा अधिक ही था.
इस दौरान बीजेपी ने एक लोकसभा सीट भी जीती थी. 2016 विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने अकेले दम पर 234 सीटों में से 189 पर चुनाव लड़ा था लेकिन पार्टी खाता तक नहीं खोल पाई थी. 2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने एआईएडीएमके के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा था, जिन सीटों पर बीजेपी चुनाव लड़ी वहां उसे 29 फीसदी वोट मिले. हालांकि बीजेपी के खाते में कोई सीट नहीं आई.
2021 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने एक बार फिर एआईएडीएमके के साथ चुनाव लड़ा और जिन 20 पर चुनाव लड़ी उनमें से चार सीटों पर ही जीत दर्ज कर पाई. इसके अलावा बीजेपी जिन सीटों पर चुनाव लड़ी वहां उसका वोट प्रतिशत 34 फीसदी रहा.
केंद्रशासित प्रदेश पुडुचेरी पुडुचेरी एक छोटा सा केंद्रशासित प्रदेश हैं, जहां 30 विधानसभा सीटें हैं. यहां की राजनीति में दूर-दूर तक बीजेपी दिखाई नहीं देती. लेकिन 2021 के विधानसभा चुनाव में प्रदेश में बीजेपी का वोट प्रतिशत 14 फीसदी रहा.
यहां बीजेपी ने एनआर कांग्रेस और एआईएडीएमके के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था. बीजेपी ने यहां जिन नौ सीटों पर चुनाव लड़ा था, उन पर 45 फीसदी वोट हासिल किए थे. इस चुनाव में बीजेपी ने नौ सीटों पर चुनाव लड़ा था और इनमें से छह सीटों पर जीत दर्ज की थी.