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बंगाल को समझने में अब भी नाकाम बीजेपी..., लोकसभा चुनाव के नतीजों से निकले ये सियासी मायने...

बीजेपी को पिछली बार के मुकाबले इस बार छह सीटें कम मिली हैं. सूत्रों के मुताबिक, इस बार भारतीय जनता पार्टी के निराशाजनक प्रदर्शन की कई वजहें रहीं. पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी के पुराने और जमीनी स्तर से जुड़े नेताओं का मानना है कि इस बार उम्मीदवारों की तालिका की वजह से बहुत सारी सीटें गंवानी पड़ी हैं.

लोकसभा चुनाव में बीजेपी के नेतृत्व वाले NDA ने 292 सीटों पर जीत हासिल की हैं. लोकसभा चुनाव में बीजेपी के नेतृत्व वाले NDA ने 292 सीटों पर जीत हासिल की हैं.
अनुपम मिश्रा
  • कोलकाता,
  • 05 जून 2024,
  • अपडेटेड 2:08 PM IST

क्या भारतीय जनता पार्टी के नेता पश्चिम बंगाल को समझने में कोई भूल कर रहे हैं? क्या दिल्ली के नेताओं की उत्तर भारतीय मानसिकता बंगाली मानसिकता को सही ढंग से समझ नहीं पा रही है. क्या उम्मीदवारों की तालिका में कहीं कोई गड़बड़ी हुई या संगठन सही तरीके से काम नहीं कर पाया या फिर आपसी गुटबाजी हावी है. फिलहाल, ऐसे ही ढेर सारे सवाल पश्चिम बंगाल की राजनीति में भारतीय जनता पार्टी को बेचैन कर रहे हैं. 

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जिस पश्चिम बंगाल से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सबसे ज्यादा सीटें जीतने का दावा किया था, जिस पश्चिम बंगाल से बीजेपी के सभी आला नेताओं ने 25 से ज्यादा सीटें जीतने की हुंकार भरी थी, उस पश्चिम बंगाल में बीजेपी सिर्फ 12 सीटों पर सिमट गई है.

बीजेपी के हारने के पीछे क्या भूल गई?

बीजेपी को पिछली बार के मुकाबले इस बार छह सीटें कम मिली हैं. सूत्रों के मुताबिक, इस बार भारतीय जनता पार्टी के निराशाजनक प्रदर्शन की कई वजहें रहीं. पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी के पुराने और जमीनी स्तर से जुड़े नेताओं का मानना है कि इस बार उम्मीदवारों की तालिका की वजह से बहुत सारी सीटें गंवानी पड़ी हैं. खासतौर पर दिलीप घोष जैसे कद्दावर नेता को जीती हुई मिदनापुर सीट से हटाकर बर्धमान दुर्गापुर सीट से खड़ा करना एक बड़ी भूल बताई जा रही है. दिलीप घोष को हटाने से बीजेपी को ना सिर्फ मिदनापुर सीट का नुकसान हुआ, बल्कि आसनसोल और दुर्गापुर बर्धमान सीट पर भी इसका खासा असर पड़ा है. इसके पीछे की वजह बंगाल BJP में आपसी गुटबाजी बताई जा रही है.

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संगठन की बूथ तक पहुंच नहीं?

वहीं, झाड़ग्राम और जंगलमहल की कई सीटों पर उम्मीदवारों का फैसला सही नहीं जान पड़ता है. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या दिल्ली के आला नेताओं के साथ बंगाल के आला नेताओं का समन्वय सही नहीं था. बंगाल के नेताओं ने क्या सही जानकारी दिल्ली के नेताओं तक नहीं पहुंचाई? क्या जमीनी स्तर की जानकारी दिल्ली तक नहीं पहुंच पा रही है. पश्चिम बंगाल में BJP के निराशाजनक प्रदर्शन की दूसरी वजह बूथ स्तर तक संगठन की पहुंच नहीं होना भी बताया जा रहा है. 

नहीं चला संदेशखाली का मुद्दा

खासतौर पर जिस संदेशखाली के मुद्दे को भारतीय जनता पार्टी ने पूरे चुनाव कैंपेन के दौरान सबसे बड़ा मुद्दा बनाया, वो मुद्दा चुनाव के परिणामों में धराशायी हो गया. बशीरहाट की सीट से TMC ने भारी अंतर से जीत दर्ज की है. साथ ही संदेशखाली से सटे जिलों में भी यह मुद्दा कुछ खास असर नहीं दिखा पाया. हालांकि इन सबके बीच एक फैक्टर जो सब मुद्दों पर भारी पड़ा पड़ा, वह है- ममता बनर्जी फैक्टर. तृणमूल कांग्रेस की भारी सफलता के पीछे महिला और मुस्लिम फैक्टर ने बड़ा रोल निभाया है. 

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ममता की योजना ने महिलाओं को किया आकर्षित

खासतौर पर ममता बनर्जी द्वारा घोषित लक्ष्मी भंडार योजना ने महिला वोटर को आकर्षित किया है और बड़ी जीत में योगदान दिया है. बंगाल के 27 प्रतिशत मुस्लिम वोट बैंक ने टीएमसी को 29 सीट तो दिलाई, साथ ही वोट शेयर भी बढ़ कर 46 प्रतिशत हो गया. वहीं, बीजेपी का वोट शेयर पिछले बार के मुकाबले 2 प्रतिशत घटकर 38 प्रतिशत के आसपास आ गया है.

गंवा दी बीजेपी ने अपनी सीटें

अगर BJP की परफॉर्मेंस देखी जाए तो उत्तर बंगाल को BJP का गढ़ माना जाता है, वहां पर BJP ने खास कमाल नहीं कर सकी है. उत्तर बंगाल की बहुत महत्वपूर्ण सीट कूचबिहार से निशीथ प्रामाणिक चुनाव हार गए हैं. वे इससे पहले यहां से चुनाव जीते थे. 2019 में बीजेपी को दूसरी सबसे बड़ी सफलता जंगलमहल के इलाकों से मिली थी, लेकिन इस बार जंगल महल की तीन सीटें मिदनापुर, झारग्राम और बांकुड़ा BJP ने गंवा दी है. 

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दक्षिण बंगाल में भी बीजेपी साफ...

वहीं, दक्षिण बंगाल से BJP पूरी तरह से साफ दिख रही है. पिछली बार BJP ने यहां बैरकपुर, हुगली, दुर्गापुर बर्धवान, आसनसोल सीटें जीती थी. लेकिन इस बार ये सभी सीटें BJP ने गंवा दी. ऐसे में BJP को अब मंथन की जरूरत है कि किन वजहों से पश्चिम बंगाल में BJP का उठता ग्राफ नीचे आने लगा है.

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