
बीएस येदियुरप्पा (BS Yediyurappa) के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे के बाद कर्नाटक में सियासी हलचल तेज हो गई है. येदियुरप्पा ने कहा है कि मैं हमेशा अग्नि परीक्षा से गुजरा हूं. सीएम पद छोड़ने के बाद येदियुरप्पा के इस बयान के कई मतलब निकाले जा रहे हैं. साथ ही ये भी चर्चाएं हैं कि उन्हें मार्गदर्शक मंडल में भेजने की तैयारी है.
खैर बीजेपी के इस धाकड़ नेता के ट्रैक रिकॉर्ड को खंगाले तो भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को दक्षिण की राजनीति में एक्टिव करने वालों में से येदियुरप्पा एक हैं. अब येदियुरप्पा सीएम नहीं हैं, ऐसे में उनका पार्टी में महत्व और परिणाम पर बहस छिड़ गई है.
येदियुरप्पा की ताकत
येदियुरप्पा ने 2008 में अकेले अपने दम पर कर्नाटक में कमल खिलाया था. लिंगायत समुदाय के येदियुरप्पा की राज्य में मजबूत पकड़ है. येदियुरप्पा ने भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिलवाए जाने के कारण साल 2012 में बीजेपी छोड़ दी थी, लेकिन वर्ष 2014 में वह उस समय पार्टी में लौट आए, जब प्रधानमंत्री पद की रेस में नरेंद्र मोदी थे. उस वक्त कर्नाटक में येदियुरप्पा ने बीजेपी की कामन संभाली और पार्टी ने 2014 के आम चुनावों में 28 लोकसभा सीटों में से 17 पर जीत हासिल की. वहीं, 2019 में येदियुरप्पा की अगुवाई में जद(एस), कांग्रेस के गठजोड़ के बावजूद बीजेपी ने लोकसभा चुनाव में कर्नाटक में शानदार प्रदर्शन किया था. बीजेपी ने 28 लोकसभा सीटों में से 25 पर कब्जा जमाया था.
लिंगायत समुदाय पर पैठ
1990 के दशक तक लिंगायत बड़े पैमाने पर कांग्रेस के साथ थे. पार्टी को एक अन्य प्रभावशाली समुदाय वोक्कालिगा का भी भारी समर्थन प्राप्त था. अक्टूबर, 1990 में तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राजीव गांधी ने कर्नाटक के मुख्यमंत्री पद से वीरेंद्र पाटिल को हटा दिया था. इससे ठीक एक साल पहले वीरेंद्र पाटिल ने राज्य की 224 विधानसभा सीटों में 179 सीटें दिलाकर कांग्रेस को सबसे बड़ी जीत दिलाई थी. लेकिन तमाम के तरह के सियासी उठापटक के दौरान वीरेंद्र पाटिल सरकार को तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राजीव गांधी द्वारा बर्खास्त किए जाने के बाद लिंगायत समुदाय ने दूसरे विकल्प पर भरोसा जताना शुरू कर दिया, वो विकल्प बीजेपी थी. 1994 के विधानसभा चुनाव में चुनाव में कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी थी और येदियुरप्पा उभरकर सामने आए.
ये भी अटकलें हैं...
लिंगायत समुदाय को लेकर कहा जा रहा है कि वो उस नेता के पक्ष में होगा जिसे पार्टी चुनेगी. क्योंकि यह समुदाय सत्ता के साथ खड़ा रहना चाहता है. बता दें कि 2013 के चुनाव के दौरान लिंगायतों ने बड़े पैमाने पर बीजेपी को वोट दिया था, जबकि येदियुरप्पा की पार्टी केजीपी से दूरी बना ली थी. ऐसे में पार्टी अब लिंगायत समुदाय की जगह किसी दूसरे समुदाय के नेता को प्रोजेक्ट करने का प्रयोग करना चाहती है. कर्नाटक से केंद्रीय मंत्री प्रहलाद जोशी (ब्राह्मण), बीएल संतोष (ब्राह्मण) और राष्ट्रीय महासचिव सीटी रवि (वोक्कालिगा) का नाम चर्चाओं में है.