
छह राज्यों में हुए सात विधानसभा सीटों पर उपचुनाव में सहानुभूति और विरासत के आगे सारे समीकरण फेल रहे. बीजेपी ने चार सीटें जीती हैं तो क्षेत्रीय दलों के खाते में तीन सीटें आईं. बीजेपी तीन सीटों पर अपना कब्जा बरकरार रखने में सफल रही जबकि एक सीट का उसे फायदा मिला है. बिहार में आरजेडी ने अपनी सीट बरकरार रखी है तो महाराष्ट्र में उद्धव गुट वाले शिवसेना का दबदबा कायम रहा. तेलंगाना की एक सीट टीआरएस ने जीतकर बीजेपी के मंसूबों को तगड़ा झटका दिया है. उपचुनाव में कांग्रेस को सबसे बड़ा सियासी नुकसान उठाना पड़ा है.
सहानुभूति के आगे समीकरण फेल
उपचुनाव में राजनीतिक दलों का सिम्पैथी का दांव सफल रहा है. सात में से चार सीटें मौजूदा विधायकों के निधन से खाली हुई थीं, इनमें मुंबई अंधेरी ईस्ट, बिहार की गोपालगंज, यूपी की गोला गोकर्णनाथ और ओडिशा की धामनगर. मोकामा सीट मौजूदा आरजेडी विधायक अनंत सिंह को सजा होने से खाली हुई जबकि आदमपुर और मुनूगोड़े सीट पर चुनाव इस वजह से कराना पड़ा कि कांग्रेस विधायक बीजेपी में शामिल हो गए थे.
मुंबई अंधेरी ईस्ट सीट पर उद्धव ठाकरे गुट की शिवसेना ने दिवंगत विधायक रमेश लटके की पत्नी ऋतुजा लटके को उतारा था, जो जीतने में सफल रहीं. इस तरह यूपी की गोला गोकर्णनाथ सीट पर बीजेपी ने अपने दिवंगत विधायक अरविंद गिरी के बेटे अमन गिरी को उतारा था, जिन्होंने सपा से विनय तिवारी को मात दी. ऐसे ही ओडिशा की धामनगर सीट बीजेपी विधायक बिश्नू सेठी की मौत के बाद खाली हुई थी. बीजेपी ने सेठी के बेटे सूर्यवंशी सूरज को उतारा था, जिन्होंने नवीन पटनाटक की पार्टी बीजेडी की अंबति दास को मात दी थी.
बिहार की गोपालगंज सीट पर बीजेपी ने अपने दिवंगत विधायक सुभाष सिंह की पत्नी कुसुम देवी को उतारा था, जो आरजेडी के मोहन प्रसाद गुप्ता को मात देकर विधायक बनी हैं. वहीं, मोकामा सीट आरजेडी विधायक अनंत कुमार सिंह को अयोग्य ठहराए जाने के बाद खाली हुई थी. आरजेडी ने अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी को उतारा था तो बीजेपी ने बाहुबली लल्लन सिंह की पत्नी सोनम देवी को मैदान में उतारा था. अनंत सिंह को मिली सजा का रिफ्लेक्शन नतीजों में दिखा और जिसका लाभ उनकी पत्नी नीलम देवी को मिला.
कांग्रेस उपचुनाव में खाली हाथ
उपचुनाव में सबसे बड़ा सियासी झटका कांग्रेस को लगा है. कांग्रेस आदमपुर और मुनूगोड़े दोनों सीटें गवां दी है. वहीं, बीजेपी का सियासी विरासत का दांव खेलना फायदेमंद रहा. हरियाणा के आदमपुर सीट कुलदीप बिश्नोई के कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल होने जाने खाली हुई थी. आदमपुर को भजनलाल परिवार का गढ़ माना जाता है. बीजेपी ने कुलदीप बिश्नोई के बेटे भव्य बिश्नोई को उतारा था, जो कांग्रेस के जय प्रकाश को मात देकर विधायक बने. इस तरह से हरियाणा विधानसभा में भजनलाल की तीसरी पीढ़ी ने दस्तक दी है.
तेलंगाना की मुनूगोड़े सीट से विधायक रहे कोमातीरेड्डी राजगोपाल रेड्डी ने कांग्रेस छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया था, जिसके चलते उपचुनाव हुए थे. रागपोलाल रेड्डी बीजेपी के टिकट पर चुनावी मैदान में उतरे थे, जिनके खिलाफ टीआरएस की प्रत्याशी कुसुकुंतला प्रभाकर रेड्डी उतरी थीं. बीजेपी तमाम कोशिशों के बावजूद यह सीट नहीं जीत सकी जबकि टीआरएस ने यह सीट छीन ली है. इस तरह कांग्रेस ने अपनी दोनों सीटें गवां दी है.
बिहार में ओवैसी बने बीजेपी की संजीवनी
बिहार की गोपालगंज विधानसभा सीट पर बीजेपी के लिए असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी सियासी संजीवनी बनी है. गोपालगंज में बड़ी संख्या में मुस्लिम मतदाता है, लेकिन आरजेडी का एम-वाई समीकरण की राह में ओवैसी रोड़ा बने, जिसके चलते बीजेपी जीतने में सफल रही. बीजेपी ने अपने दिवंगत विधायक सुभाष सिंह की पत्नी कुसुम देवी को उतारा था तो आरजेडी से मोहन प्रसाद गुप्ता मैदान में थे. इसके अलावा ओवैसी की पार्टी से अब्दुल सलाम और बसपा से लालू प्रसाद यादव के साले साधू यादव की पत्नी इंदिरा यादव मैदान में थी.
गोपालगंज में कुसुम देवी ने आरजेडी के मोहन गुप्ता को 2183 वोटों से हराया है. बीजेपी की कुसुम देवी को 70053 वोट तो आरजेडी के मोहन गुप्टा 67870 वोट मिले. ओवैसी की पार्टी के अब्दुल सलाम को करीब 12 हजार और साधु यादव की पत्नी को करीब 9 हजार वोट मिले. ओवैसी की पार्टी अगर चुनावी मैदान में नहीं होती तो आरजेडी यह सीट भारी वोटों से जीतने में सफल हो सकती थी. बदले हुए सियासी समीकरण में हुए उपचुनाव के नतीजे बिहार के सियासी भविष्य के संकेत दे रहे हैं, जो महागठबंधन के लिए खतरे की घंटी है.
2015 में आरजेडी-जेडीयू-कांग्रेस ने मिलकर चुनाव लड़ा था तो बीजेपी का सफाया हो गया था. इस बार के उपचुनाव में भी ऐसे ही नतीजे की उम्मीद महागठबंधन लगाए हुए था, लेकिन ओवैसी की पार्टी ने सारे समीकरण बिगाड़ दिए हैं. मुस्लिम वोटों में सेंधमारी करके बीजेपी की जीत की राह को आसान कर दिया है. ऐसा ही ट्रेंड अगर बिहार में 2024 लोकसभा और 2025 के विधानसभा चुनाव में भी रहा तो महागठबंधन के लिए आसान नहीं होगा. मोकामा सीट पर जीत आरजेडी के चलते नहीं बल्कि अनंत सिंह के सियासी प्रभाव को रूप में देखी जा रही है.
हरियाणा में बीजेपी की हार का सिलसिला टूटा
हरियाणा में बीजेपी 2014 में पहली बार पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आई थी और मुख्यमंत्री का ताज मनोहर लाल खट्टर के सिर सजा. इसके बाद से बीजेपी का सियासी ग्राफ हरियाणा में लगातार गिरा है. 2019 के चुनाव में बीजेपी बहुमत के आंकड़े से नीचे आ गई थी, जिसके चलते जेजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाई. इसके बाद हरियाणा की दो विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हुए. बीजेपी को बरोदा और ऐलनाबाद विधानसभा उपचुनाव में हार का सामना करना पड़ा था. आदमपुर सीट पर जीत दर्ज कर बीजेपी उपचुनाव में मिल रही हार के सिलसिले को तोड़ने में कामयाब रही. इतना ही नहीं भव्य बिश्नोई के जरिए आदमपुर सीट पर पहली बार कमल खिलाने में भी सफल रही.
यूपी में सपा के लिए खतरे की घंटी
यूपी के गोला गोकर्णनाथ सीट पर बीजेपी सहानुभूति के सहारे जीत दर्ज करने में कामयाब रही है, लेकिन सपा के लिए खतरे की आहट मानी जा रही. 2022 के चुनाव के बाद से बीजेपी अपनी जीत के सिलसिले को बरकरार रखा है. आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा उपचुनाव हारने के बाद भी सपा ने कोई सीख नहीं ली. अखिलेश यादव पहले की तरह से उपचुनाव से दूर ही खड़े नजर आए. सपा का कोई बड़ा चेहरा प्रचार में नहीं दिखा.
वहीं, बीजेपी के बड़े चेहरों ने गोला गोकर्णनाथ में डेरा जमाए रखा था. सीएम योगी आदित्यनाथ, डिप्टी सीएम केशव मौर्य और बृजेश पाठक सहित कई मंत्री गोला गोकर्णनाथ पहुंचकर प्रचार किया. नतीजा रहा कि बीजेपी अपना कब्जा जमाए रखने में सफल रही. उपचुनाव में बसपा और कांग्रेस चुनावी मैदान में नहीं थी. इस तरह सारे समीकरण पक्ष में होने के बाद भी सपा नहीं जीत सकी. अब रामपुर विधानसभा और मैनपुरी लोकसभा सीट पर उपचुनाव है, जिसकी घोषणा भी हो गई है. ऐसे में सपा के लिए सियासी तौर पर चुनौती खड़ी हो गई.