
लोकसभा चुनाव से पहले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बड़ा दांव चल दिया है. बिहार सरकार ने जातिगत जनगणना के आंकड़े सार्वजनिक कर दिए हैं. बिहार में किस जाति की संख्या कितनी भारी है, इसे लेकर तस्वीर अब साफ हो चुकी है. जातिगत जनगणना के इन आंकड़ों में लालू को अपना फायदा नजर आ रहा है तो कांग्रेस को भी संजीवनी की उम्मीद. नीतीश कुमार की पार्टी को सिमटते जनाधार को और विस्तार की संभावनाएं नजर आ रही हैं तो विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के लिए इन आंकड़ों में क्या है? ये सवाल भी उठ रहे हैं.
जातिगत जनगणना के आंकड़े देखें तो ये अनुमानों के आसपास ही है. अनुमानों के मुताबिक बिहार में अगड़ी जातियों की आबादी 15 फीसदी, ओबीसी 26 से 28, अति पिछड़ा की 26 और एससी-एसटी की आबादी करीब 19 फीसदी थी. जातिगत जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक अगड़ी जातियों यानी सामान्य वर्ग की आबादी 15.52, अगड़ी जातियों की आबादी 15.52, ओबीसी 27.12, अति पिछड़े 36 और दलित आबादी 19.65 फीसदी है. अति पिछड़ा वर्ग के आंकड़ों को छोड़कर बाकी वर्ग की आबादी के अनुमान और ताजा आंकड़ों में अधिक फर्क नजर नहीं आता. ऐसे में सवाल ये भी उठ रहे हैं कि जातिगत जनगणना के इन आंकड़ों में किस पार्टी के लिए क्या है?
राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ तिवारी ने कहा कि लालू यादव की पार्टी इन आंकड़ों में अपनी ओबीसी पॉलिटिक्स की मजबूती देख रही है लेकिन दूसरा पहलू ये भी है कि नीतीश ने अपनी कमजोर होती सियासी जड़ों पर मिट्टी डालकर वोट का पौधा लहलहाने का दांव चला है. इन आंकड़ों में सियासत की कई शाखें हैं जिनमें आरजेडी, जेडीयू से लेकर बीजेपी तक, हर दल के लिए कुछ ना कुछ है.
जातिगत जनगणना का दांव जेडीयू के लिए जड़ें मजबूत करने के लिए डाली गई मिट्टी कैसे? ये समझने के लिए 2020 के बिहार चुनाव नतीजे की चर्चा जरूरी है. तब जेडीयू 15.7 फीसदी वोट शेयर के साथ 43 सीटें ही जीत सकी थी. आरजेडी 75 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी तो बिहार में तीसरे नंबर की पार्टी रही बीजेपी 74 सीटें जीतकर दूसरे नंबर पर रही. जेडीयू को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं शुरू हो गईं, ये तक कहा जाने लगा कि नीतीश कुमार की सियासत का ग्लैमर अब फीका पड़ने लगा है.
कोई नीतीश को थका हुआ बता रहा था तो कोई उन्हें सियासत से संन्यास की सलाह दे रहा था. नीतीश ने जब बीजेपी के साथ सरकार बनाई, कुछ दिन बाद से ही जातिगत जनगणना का मुद्दा जोर पकड़ने लगा. तब विधानसभा में विपक्ष के नेता रहे तेजस्वी यादव के साथ ही बिहार की दूसरी पार्टियों के नेताओं का डेलिगेशन लेकर नीतीश भी दिल्ली पहुंच गए थे. नीतीश के नेतृत्व में गए डेलिगेशन ने केंद्र सरकार के सामने जातिगत जनगणना कराने की मांग उठाई थी. सत्ता और विपक्ष, दो ध्रुव पर खड़ी दो पार्टियों जेडीयू और आरजेडी के नेताओं के सुर मिले तो सरकार की तस्वीर बदल गई. सीएम नीतीश ही रहे लेकिन भागीदार बदल गए. बीजेपी की जगह आरजेडी ने ले ली.
कहा तो ये भी जाता है कि नीतीश को जातिगत जनगणना में जेडीयू का राजनीतिक पुनरुत्थान नजर आ रहा था. नीतीश जातिगत जनगणना कराना चाहते थे लेकिन दूसरी तरफ बीजेपी इसमें बाधक बन रही थी. बीजेपी इस मांग का खुलकर विरोध तो नहीं कर पा रही थी लेकिन नीतीश पर दबाव बनाकर इस दिशा में कदम भी नहीं बढ़ाने दे रही थी.
वरिष्ठ पत्रकार अशोक ने कहा कि नीतीश ने जातियों के जिस जाल को सुशासन और विकास की राजनीति से काटा था, बीजेपी के मजबूत उभार ने उन्हें खुद नया जाल बुनने के लिए मजबूर कर दिया. दलित वोट में बेस के लिए नीतीश ने जिस दलित-महादलित फॉर्मूले का उपयोग किया था, जेडीयू समझ गई कि पिछड़ी जातियों में बीजेपी की पैठ रोकने के लिए बात ओबीसी अस्मिता पर ले जानी पड़ेगी.
सवाल ये भी है कि जातिगत जनगणना में लालू की पार्टी भी उतनी ही भागीदार है फिर नीतीश की पार्टी को कैसे और कितना लाभ मिल पाएगा? दरअसल, लालू की पार्टी का वोट बेस ओबीसी वोट रहा है लेकिन जेडीयू-बीजेपी गठबंधन के मजबूती से उभरने के बाद आरजेडी पिछड़ी जातियों में बस यादव वोट बेस तक सिमट गई. जातिगत जनगणना लालू की पार्टी के लिए अन्य पिछड़ी जातियों में वोट बेस के विस्तार का अवसर है तो वहीं नीतीश की पार्टी के लिए लव-कुश फॉर्मूला (कुर्मी-कोईरी) से हटकर अति पिछड़ा वोट बैंक में मजबूत बेस बनाने का मौका.
जातिगत जनगणना के आंकड़ों में बीजेपी के लिए क्या है?
बिहार बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी ने जातिगत जनगणना के आंकड़े जारी किए जाने के बाद कहा कि हम सरकार से बार-बार इसे सार्वजनिक करने की मांग कर रहे थे. बीजेपी जातिगत सर्वे के खिलाफ कभी नहीं थी. अभी तो बस जातियों के आंकड़े आए हैं, आर्थिक स्थिति से संबंधित आंकड़े जारी करने की मांग करेंगे और पूरी रिपोर्ट देखने के बाद विस्तृत प्रतिक्रिया देंगे. जातिगत जनगणना में बीजेपी के लिए क्या है? इसके संकेत सम्राट चौधरी के बयान में ही हैं.
सम्राट चौधरी खुद भी ओबीसी से आते हैं और ये समझते हैं कि बात ओबीसी अस्मिता पर आई तो नतीजे कैसे हो सकते हैं? अमिताभ तिवारी ने कहा कि 2014 के बाद बीजेपी सबसे बड़ी ओबीसी पार्टी के रूप में उभरी है. विपक्ष की रणनीति बीजेपी के सबसे मजबूत वोट बैंक पर चोट की है. संख्या सामने आने के बाद लालू और बाकी नेता जितने उत्साहित हैं, आर्थिक स्थिति का डेटा सामने आने के बाद हो सकता है कि बीजेपी आक्रामक नजर आए.
साल 1990 से ही बिहार की सत्ता के दो केंद्र रहे- लालू और नीतीश. बीजेपी भले ही नीतीश के नेतृत्व वाली सरकार में लंबे समय तक भागीदार रही है लेकिन सच ये भी है कि ड्राइविंग फोर्स जेडीयू ही रही. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विपक्ष के हर वार को अपने लिए पलटवार का हथियार बना लेते हैं. कहा तो ये भी जा रहा है कि बीजेपी ओबीसी पॉलिटिक्स के इस दांव को काउंटर करने के लिए आर्थिक सर्वे की रिपोर्ट का इंतजार कर रही है.
आर्थिक रिपोर्ट सामने आने के बाद हो सकता है कि बीजेपी खराब स्थिति वाली जातियों को लेकर लालू-नीतीश के खिलाफ मोर्चा खोल दे. ऐसे में 33 साल से सूबे की सत्ता के शीर्ष पर काबिज लालू यादव और नीतीश कुमार के लिए बीजेपी के इस दांव को काउंटर कर पाना मुश्किल हो सकता है.