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कर्नाटक में आरक्षण पर खुले मोर्चे, मुस्लिमों के बाद दलित रिजर्वेशन में बदलाव पर बवाल

कर्नाटक में मुस्लिमों को चार फीसदी आरक्षण को खत्म करने का मामला अभी शांत भी नहीं हुआ था कि दलित समुदाय के आरक्षण को आंतरिक स्तर पर चार हिस्सों में बांटने की सिफारिश गले की फांस बनती जा रही है. राज्य की बोम्मई सरकार के खिलाफ दलितों में शामिल बंजारा समुदाय सड़क पर उतरकर प्रदर्शन कर रहा है. इस विरोध प्रदर्शन का नुकसान भाजपा को हो सकता है.

कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली,
  • 28 मार्च 2023,
  • अपडेटेड 3:48 PM IST

कर्नाटक विधानसभा चुनाव की सियासी तपिश के बीच आरक्षण को लेकर कई मोर्चे खुल गए हैं. मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई एक के बाद एक फैसला आरक्षण से जुड़े मामलों में ले रहे हैं. मुस्लिमों को चार फीसदी आरक्षण को खत्म करने का मामला अभी शांत भी नहीं हुआ था कि दलित समुदाय के आरक्षण को आंतरिक स्तर पर चार हिस्सों में बांटने की सिफारिश गले की फांस बनती जा रही है. 

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बोम्मई सरकार के खिलाफ दलितों में शामिल बंजारा समुदाय सड़क पर उतरकर प्रदर्शन कर रहे हैं. बीजेपी के झंडे जला रहे हैं, तो पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के घर पर प्रदर्शनकारियों ने पथराव तक किए हैं. राज्य में विधानसभा के चुनाव से ठीक पहले बंजारा समुदाय की नाराजगी बीजेपी के लिए कहीं महंगी न पड़ जाए, क्योंकि दलितों की आबादी कर्नाटक में 20 फीसदी के करीब है, जो किसी भी दल का खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते हैं. 
 
कर्नाटक में दलित समुदाय की आबादी भले ही 20 फीसदी के करीब है, लेकिन उन्हें अभी तक राज्य में 15 फीसदी आरक्षण मिल रहा था. बीजेपी ने पिछले साल दलितों के आरक्षण को 15 फीसदी से बढ़ाकर 17 फीसदी कर दिया है. सरकार के इस फैसले से दलित खुश थे, लेकिन 24 मार्च को दलितों के आरक्षण को आंतरिक स्तर पर चार हिस्सों में बांट दिया है. सरकार के इस फैसले के खिलाफ बंजारा समुदाय सड़क पर उतर आया है. 

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दरअसल, कर्नाटक सरकार ने यह फैसला न्यायमूर्ति ए जे सदाशिव आयोग की रिपोर्ट के आधार पर किया है. दलित समुदाय को मिल रहे 17 प्रतिशत आरक्षण को आंतरिक रूप से बांटा गया. इस फैसले के तहत 6 प्रतिशत शेड्यूल कास्ट (लेफ्ट) के लिए, 5.5 प्रतिशत शेड्यूल कास्ट (राइट), 4.5 प्रतिशत ठचेबल्स के लिए और बाकी बचा एक प्रतिशत बाकियों के लिए रखा जाए.

बंजारा समुदाय क्यों नाराज?

बंजारा समुदाय को लोग बोम्मई सरकार के अनुसूचित जाति के आरक्षण पर लिए गए फैसले का विरोध कर रहे हैं. बंजारा, गोवी, कोरमा और कोर्चा सभी एससी ठचेबल्स के अंतर्गत रखा है, जिसके लिए 4.5 फीसदी कोटा है. बंजारा समुदाय एससी आरक्षण का सबसे बड़ा लाभार्थी है. पहले की आरक्षण प्रणाली में उन्हें 10 फीसदी तक लाभ मिल रहा था, लेकिन आरक्षण के आंतरिक बंटवारे के बाद उन्हें 4.5 फीसदी पर तय किया गया है जो उन्हें कम और अवैज्ञानिक लगता है. इसीलिए बीजेपी के खिलाफ सड़क पर उतरकर प्रदर्शन कर रहे हैं. 

कर्नाटक में जस्टिस एजे सदाशिवा कमीशन 2005 में कांग्रेस-जनता दल (सेक्यूलर) की सरकार के दौरान गठित की गई थी. इस कमीशन को कर्नाटक में दलित जाति को मिलने वाले आरक्षण को उपवर्गीकृत करने की जरूरत को देखते हुए गठित किया गया था. 

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विरोध प्रदर्शन कर रहे बंजारा समुदाय के नेताओं ने कहा है कि राज्य सरकार के इस फैसले से उन्हें इस आरक्षण से मिलने वाला फायदा खत्म हो जाएगा. प्रदर्शन के दौरान उन्होंने राज्य सरकार से मांग की है कि वह तुरंत अपने इस फैसले को वापस लें. कमीशन ने 14 जून 2012 को अपनी रिपोर्ट पेश की थी. बंजारा समुदाय के सदस्यों ने भाजपा सरकार पर आरोप लगाया था कि इसे किसी भी सार्वजनिक मंच पर चर्चा किए बिना लागू कर दिया गया है. इस आरक्षण प्रक्रिया लागू होने से बंजारा समुदाय को अपना नुकसान दिख रहा है. 

कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा नेता बीएस येदियुरप्पा के घर पर सोमवार को बंजारा समुदाय के लोगों ने कर्नाटक के शिवमोग्गा में हमला किया. येदियुरप्पा का घर शिकारीपुर में है. बंजारा समुदाय हाल ही में कर्नाटक में आरक्षण को लेकर किए गए फेरबदल से नाराज है. उन्हें डर है कि उनका आरक्षण छीना जा रहा है. हाल ही में बोम्मई सरकार ने मुसलमानों को 4 फीसदी आरक्षण खत्म करते हुए उसे दो-दो फीसदी वोक्कालिगा और लिंगायत समुदायों में बांट दिया. 

बंजारा समुदाय के प्रदर्शनकारियों ने आरोप लगाया कि रिपोर्ट अनुसूचित जाति समुदायों को विभाजित करने के लिए निहित स्वार्थों की एक चाल है, जो इन सभी वर्षों में शांतिपूर्वक एक साथ रह रहे थे. कर्नाटक की बोम्मई सरकार के इस आरक्षण के कदम से बंजारों के साथ अन्याय होगा. इसलिए सिफारिश वापस लेनी चाहिए. वहीं, बीजेपी के दिग्गज नेता और पूर्व सीएम येदियुरप्पा ने कहा है कि वह बंजारा समुदाय के नेताओं से बातचीत करेंगे. वह पिछले 50 सालों से शिकारीपुर के डेवलपमेंट के लिए काम कर रहे हैं. उन्होंने यह भी कहा है कि हो सकता है कि प्रदर्शनकारियों को कुछ गलतफहमी हुई हो. 

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कर्नाटक में दलित सियासत 

कर्नाटक में लिंगायत और वोक्कालिगा के बाद सियासत को सबसे अधिक प्रभावित अनुसूचि जाति (दलित) समाज करता है. राज्य में अनुसूचित जातियों की संख्या कुल आबादी की 19.5 फीसदी है जो कि राज्य में सबसे बड़े जातीय समूह के रूप में है. ये दलित दो भागों 'वाम दलित', या मदिगास या 'अछूत' और 'दक्षिणपंथी दलित' या 'छूत' या होलीया समुदायों में बंटे हुए हैं. दलित समुदाय के लिए 36 विधानसभा सीटें रिजर्व हैं, लेकिन इससे भी ज्यादा सीटों पर असर रखते हैं. 

2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को दलित बहुल सीटों पर बहुत ज्यादा फायदा मिला था. कांग्रेस और जेडीएस को इन सीटों में नुकसान झेलना पड़ा था. दलित रिजर्व कुल 36 सीटों के नतीजे देंखे तो कांग्रेस को 12, बीजेपी को 17, जेडीएस को 6 और बसपा के एक विधायक ने जीत दर्ज की थी. बीजेपी जिस तरह से दलितों के बीच अपनी पैठ जमा रही थी, उसमें यह नाराजगी मंहगी पड़ सकती है, क्योंकि कांग्रेस उन्हें अपने साथ साधने के लिए हर जतन कर रही है. 

कर्नाटक से आने वाले कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे दलितों के सबसे बड़ा चेहरा हैं. कर्नाटक खड़गे का गृह राज्य है, जिसका कांग्रेस को फायदा मिल सकता है. पिछली बार यानी 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को सबसे बड़ी पार्टी बनाने में दलितों का बड़ा योगदान रहा था. बीजेपी को दलित समुदाय का 40 फीसदी वोट मिला था जबकि कांग्रेस को 37 फीसदी और जेडीएस को 18 फीसदी वोट प्राप्त हुआ था. पिछले कुछ सालों से सूबे में एससी समुदाय के बीच कांग्रेस का जनाधार सिकुड़ता जा रहा है. मल्लिकार्जुन खड़गे के पार्टी अध्यक्ष बनने और दलित आरक्षण के बंटवारे के चलते कर्नाटक का दलित वोट बैंक फिर से कांग्रेस के प्रति लामबंद हो सकता है, लेकिन बीजेपी भी पूरी ताकत झोंक रखी है.

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