
महाराष्ट्र में नई सरकार के गठन में देरी और मंत्रिमंडल विस्तार से अधिक चर्चा इन दिनों छगन भुजबल की नाराजगी को लेकर है. अजित पवार की अगुवाई वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के वरिष्ठ नेता छगन भुजबल को देवेंद्र फडणवीस की अगुवाई वाली सरकार के मंत्रिमंडल में इस बार जगह नहीं मिली है. मंत्री नहीं बनाए जाने से नाराज छगन भुजबल ने अजित पवार पर निशाना साधा, पार्टी संचालन के तरीके पर सवाल उठाए और ये तक कह दिया कि मुख्यमंत्री चाहते थे कि मंत्री बनूं और वह मेरे नाम पर जोर दे रहे थे लेकिन मुझे हटा दिया गया.
छगन भुजबल ने इसके बाद सीएम देवेंद्र फडणवीस से मुलाकात भी की. पहले फडणवीस को लेकर दावे और फिर मुलाकात, नाराजगी के बीच छगन भुजबल के स्टैंड को लेकर कयासों का बाजार गर्म है. सवाल उठ रहे हैं कि अपनी पार्टी में नाराज चल रहे छगन भुजबल, अजित पवार के पास न जाकर सीएम फडणवीस के पास क्यों जा रहे हैं? भुजबल जैसे महाराष्ट्र की राजनीति के दिग्गज को अपनी पार्टी के अगुवा अजित पवार से ज्यादा उम्मीद देवेंद्र फडणवीस से क्यों है? इसे चार पॉइंट में समझा जा सकता है.
1- अजित को जूनियर मानते हैं भुजबल
छगन भुजबल न सिर्फ उम्र के मामले में अजित पवार से सीनियर हैं, सियासत में भी हैं. दो बार के पूर्व डिप्टी सीएम छगन भुजबल ने 1960 के दशक में सियासत में कदम रखा था और अजित पवार का सियासी डेब्यू हुआ था 1982 में. उम्र और सियासी उम्र, दोनों ही लिहाज से सीनियर छगन भुजबल तेवर वाले नेताओं में गिने जाते हैं. भुजबल की एक पहचान बाल ठाकरे के समय ठाकरे परिवार के खिलाफ बगावत कर शिवसेना को दो गुट में बांट देने वाले पहले नेता की भी है.
साल 1991 में भुजबल ने 18 विधायकों के साथ बगावत कर केवल इसलिए शिवसेना बी नाम से पार्टी बना ली थी क्योंकि बाल ठाकरे ने मनोहर जोशी को विधानसभा में विपक्ष का नेता बना दिया था. भुजबल भले ही अजित की अगुवाई वाली पार्टी में साथ हैं लेकिन कहा जाता है कि वह उन्हें जूनियर ही मानते हैं. एक वजह ये भी हो सकती है कि वह अजित से मिलकर मंत्री पद पर बात करने से बेहतर सरकार की ड्राइविंग सीट पर बैठे नेता से बात करना ज्यादा सहज लगा हो.
2- फैसला तो सीएम को ही लेना है
छगन भुजबल विधानसभा चुनाव से पहले एकनाथ शिंदे की अगुवाई वाली महायुति सरकार में भी मंत्री रहे हैं और करीब छह दशकों से सियासत में सक्रिय हैं. भुजबल गठबंधन की पेचिदगी के साथ-साथ मजबूरियों को भी अच्छे से समझते होंगे. हो सकता है कि छगन भुजबल को ये लगता हो कि गठबंधन के घटक दल अपने कोटे से मंत्री पद के लिए नेताओं के नाम का प्रस्ताव तो कर सकते हैं लेकिन फैसला मुख्यमंत्री को ही लेना होता है यानी निर्णायक रोल सीएम का ही होता है. छगन भुजबल ने यह भी कहा था कि सीएम मंत्री बनाने पर जोर दे रहे थे लेकिन मुझे हटा दिया गया. अब मुझे ये पता लगाना होगा कि किसने मेरा नाम खारिज किया. हो सकता है कि भुजबल ने यह जानने के लिए फडणवीस से मुलाकात की हो कि उनका नाम मंत्री पद की रेस से बाहर कैसे हो गया.
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3- बीजेपी के 'माधव' फॉर्मूले में फिट हैं भुजबल
छगन भुजबल महाराष्ट्र की प्रभावशाली ओबीसी जाति माली से आते हैं. माली जाति का सबसे बड़ा चेहरा माने जाने वाले छगन भुजबल बीजेपी के माधव (माली, धनगर, वंजारी) फॉर्मूले में भी फिट बैठते हैं. फडणवीस कैबिनेट में वंजारी जाति से समाज के सबसे चेहरे गोपीनाथ मुंडे की बेटी पंकजा मुंडे को जगह दी गई है. धनंजय मुंडे भी मंत्री बने हैं. धनगर जाति के नेताओं को भी मंत्रिमंडल में शामिल किया गया है लेकिन माली जाति के सबसे बड़े नेता छगन भुजबल कैबिनेट से बाहर हैं. एक वजह ये भी हो सकती है भुजबल बीजेपी के फॉर्मूले की चर्चा कर फडणवीस के सामने मंत्री पद पर दावा पेश करने पहुंचे हों.
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4- मराठा और ओबीसी के करीब-करीब बराबर मंत्री
लोकसभा चुनाव में मराठा वोटर्स से झटका खाई बीजेपी और महायुति ने मराठा आरक्षण के साये में हुए विधानसभा चुनावों में ओबीसी पर फोकस रहा. महायुति प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में भी लौट आया. जब नई सरकार का गठन हुआ तब ओबीसी के हिस्से भी मराठा समाज के करीब-करीब बराबर मंत्री पद आए. फडणवीस मंत्रिमंडल में 17 ओबीसी मंत्री बनाए गए हैं जो मराठा समाज के 16 मंत्रियों से एक ही अधिक है. ओबीसी समाज के प्रतिनिधियों ने छगन भुजबल से उनको मंत्री नहीं बनाए जाने के बाद मुलाकात भी की थी.