
कांग्रेस अपने राजनीतिक इतिहास में सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. कांग्रेस अपनी संगठनात्मक कमजोरियों पर आत्ममंथन और 2024 के लिए दशा-दिशा तय करने शुक्रवार से तीन दिन तक राजस्थान में मंथन करेगी. उदयपुर के चिंतन शिविर में बीजेपी से मुकाबले के लिए कांग्रेस रणनीति बनाएगी और उसे अमलीजामा पहनाकर कई राज्यों में सत्ता वापसी की इबारत लिखेगी. सोनिया गांधी के कार्यकाल में पचमढ़ी, शिमला और जयपुर के बाद चौथा चिंतन शिविर उदयपुर में हो रहा है जबकि कांग्रेस के इतिहास में यह पांचवी चिंतन बैठक है.
हालांकि, कांग्रेस में इस तरह की चिंतन बैठकों की परंपरा पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के दौर में ही शुरू हो गई थी, लेकिन बाद में कांग्रेस में अधिवेशनों के जरिए पार्टी की रणनीति और मुद्दों पर चर्चा होती थी. सोनिया गांधी के सक्रिय राजनीति के कदम रखने के बाद चिंतन शिविर का सिलसिला फिर शुरू और अब नौ साल के बाद उदयपुर में कांग्रेस मंथन करेगी. ऐसे में सवाल उठता है कि कांग्रेस के अब तक हुए चिंतन शिविर में क्या-क्या रणनीति तय की गई थी और उसे अमलीजामा पहनाने में पार्टी कितनी कामयाब रही.
9 साल पहले जयपुर में चिंतन शिविर
कांग्रेस ने 2014 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले जनवरी 2013 में जयपुर में चिंतन शिविर अयोजित किया गया था. इसी बैठक में राहुल गांधी को महासचिव से कांग्रेस उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया था. इस तरह जयपुर चिंतन शिविर में पार्टी की चिंतन से ज्यादा राहुल गांधी के प्रमोशन पर चर्चा हुई और कांग्रेस में सोनिया के बाद राहुल पार्टी में दूसरे नंबर के ओहदे वाले नेता बन गए थे. इस तरह कांग्रेस का यह चिंतन शिविर राहुल गांधी के इर्द-गिर्द सिमटा रहा, लेकिन जिस तरह सोनिया और राहुल के कसीदे पढ़े गए उनसे पार्टी को कुछ हासिल नहीं हुआ है.
कांग्रेस ने जयपुर के चिंतन शिविर में फैसला किया कि प्रदेश अध्यक्ष और जिलाध्यक्ष लोकसभा या विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे. अगर उन्हें चुनाव लड़ना है तो अपना पद छोड़ना होगा. इस शिविर में 2014 का लोकसभा चुनाव, महिला सशक्तीकरण, युवाओं की भागीदारी बढ़ाने, महंगाई पर अंकुश लगाने और पार्टी के संगठनात्मक ढांचे को मजबूत करने मंथन जरूर किया गया था, लेकिन पार्टी इसे अमलीजामा नहीं पहना सकी.
चिंतन शिविर में इस बात पर चर्चा ही नहीं हुई थी कि दस साल की सत्ता विरोधी लहर को कैसे निष्प्रभावी बनाया जाए और न ही इस बात पर चर्चा हुई कि देश में उठ रही मोदी लहर को कैसे रोका जाए. इसी का नतीजा था कि कांग्रेस का परफॉर्मेंस सबसे नीचे चला गया. साल 2014 के चुनाव में कांग्रेस की शर्मनाक हार हुई. कांग्रेस अब तक दर्जनों विधानसभा चुनाव हार चुकी है और 2019 के चुनाव में भी कांग्रेस को करारी शिकस्त मिली.
शिमला के चिंतन शिविर से मिली सत्ता
उत्तर प्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश सहित कई राज्यों के विधानसभा चुनाव में हार मिलने के बाद कांग्रेस ने साल 2003 में मंथन करने का फैसला किया. 2004 के लोकसभा चुनाव से ठीक एक साल पहले कांग्रेस ने हिमाचल के शिमला में चिंतन शिविर किया. इसी चिंतन शिविर में कांगेस ने 'एकला चलो' की नीति छोड़कर गठबंधन राजनीतिक की राह पर चलने का फैसला किया.
पचमढ़ी में तय नीति को कांग्रेस ने शिमला शिविर में पलटकर सामान्य विचारधारा वाले दलों के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ने का निर्णायक किया. इसी के तहत एनसीपी, आरजेडी जैसे दल साथ आए थे. कांग्रेस को इस निर्णय का फायदा मिला और 2004 के लोकसभा चुनाव में पार्टी शाइनिंग इंडिया के रथ पर सवार अटल-आडवाणी की जोड़ी को पछाड़कर केंद्र में सरकार बनाने में सफल रही. 2004 से लेकर 2014 तक सत्ता में कांग्रेस रही और मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री रहे.
1998 में पचमढ़ी का चिंतन शिविर
राजीव गांधी की हत्या के करीब 7 साल बाद कांग्रेस संगठन में गांधी परिवार की वापसी हुई थी. सीताराम केसरी को हटाकर सोनिया गांधी ने पार्टी की कमान संभाली. 1996 में केंद्र की सत्ता से बाहर होने के बाद जब कांग्रेस कांग्रेस के नेताओं में सत्ता में वापसी की छटपटाहट बढ़ने लगी थी. उस समय कांग्रेस के सामने काफी चुनौती थी. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को खुद को साबित करना था. ऐसे में सोनिया ने पार्टी की राजनीतिक दशा और दिशा पर मंथन-चिंतन करने के लिए कांग्रेस नेताओं को एकजुट कर मध्यप्रदेश के पचमढ़ी में चिंतन शिविर का आयोजन किया.
कांग्रेस में 24 साल के बाद चिंतन शिविर का आयोजन किया गया था. इस शिविर में गठबंधन से त्रस्त कांग्रेस ने एकला चलो की नीति तय की थी. पचमढ़ी में पारित किए गए राजनीतिक प्रस्ताव में कहा गया था कि कांग्रेस देशभर में लोकसभा चुनाव तो अपने दम पर अकेले लड़ेगी, लेकिन पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और बिहार में स्थानीय राज्य स्तरीय पार्टियों के साथ सम्मानजनक गठबंधन करके विधानसभा चुनाव लड़ेगी और खुद को इन राज्यों में मजबूत करेगी. इस चिंतन शिविर में पंचायती राज को लेकर 14 सूत्रीय योजना, खेती से जुड़े आठ सूत्रीय योजना, सांप्रदायिकता के बढ़ते खतरे और बीजेपी के तेजी से बढ़ते असर से निपटने के लिए विस्तृत योजना बनी थी.
हालांकि, 1998 और फिर 1999 के आम चुनाव में कांग्रेस को सफलता नहीं मिली और पार्टी सिर्फ 114 सीट ही जीत सकी थी. 24 दलों के साथ गठबंधन के सहारे प्रधानमंत्री बनने के बाद 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी और मजबूत होकर उभरे थे. ऐसे में कांग्रेसियों को लगने लगा था कि अब अगर कांग्रेस ने गठबंधन राजनीति को नहीं अपनाया तो कभी सत्ता में वापसी नहीं कर पाएगी. लिहाजा कांग्रेस ने पचमढ़ी की नीति शिमला शिविर में बदली और 2004 में सत्ता में वापसी की.
इंदिरा राज में कांग्रेस का पहला चिंतन शिविर
कांग्रेस के इतिहास में अधिवेशनों में ही पार्टी की रणनीति और मुद्दों पर चर्चा होती थी, लेकिन जयप्रकाश नारायण के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए इंदिरा गांधी को चिंतन शिविर की जरूरत महसूस हुई थी. 1974 में 22 से 24 नवंबर तक पार्टी का चिंतन शिविर यूपी के नरौरा (बुलंदशहर) में हुआ. इंदिरा गांधी ने यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री व पार्टी के बड़े नेता हेमवती नंदन बहुगुणा को बैठक की जिम्मेदारी दी थी. बड़े नेताओं को कैंप में रुकवाने का फैसला किया गया. यह पहला मौका था जब कांग्रेस के तमाम दिग्गज नेताओं ने सर्दियों में तंबुओं में दो रातें गुजारी थी.
इस दौरान अलग-अलग कमेटियों ने अलग-अलग मुद्दों पर चर्चा करके सरकार और इंदिरा गांधी पर लगातार तेज़ होते जा रहे व्यक्तिगत हमलों की काट ढूंढने पर विचार-विमर्श किया था. नरौरा चितन शिविर में पार्टी ने 'ब्रेन स्टॉर्मिंग सेशन' के बाद संगठन की मजबूती के लिए 13 बिंदु तय किए गए थे. ये अलग बात है कि तमाम चिंतन और मंथन के बावजूद इंदिरा सरकार की लोकप्रियता गिरती गई और विपक्ष हावी होता गया और आखिरकार इंदिरा गांधी को आपातकाल की घोषणा करनी पड़ी.
बदलता रहा वक्त के हिसाब से लक्ष्य
कांग्रेस फिर से उसी चिंतन शिविर में लौटी है, जिसे इंदिरा गांधी ने शुरू किया और सोनिया गांधी ने आगे बढ़ाया. कांग्रेस का पांचवां चिंतन शिविर ऐसे समय हो रहा है जब कांग्रेस अपने सबसे खराब दौर से गुजर रही है. कांग्रेस में चिंतन शिविर के दौरान नेता कैंप में ठहरेंगे और दो-तीन दिन तक अलग-अलग मुद्दों पर खुली चर्चा करेंगे.