
कांग्रेस में आमूलचूल परिवर्तन की मांग के लिए पार्टी के 23 नेताओं ने पत्र लिखा. जिसके बाद कार्य समिति की बैठक में अगले छह महीने में पार्टी अध्यक्ष का चुनाव करने की बात कही गई. इसके बावजूद कांग्रेस के अंदर मचा झगड़ा अभी तक खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है. कांग्रेस का असंतुष्ट खेमा अपने स्टैंड पर पूरी तरह से कायम ही नहीं बल्कि मुखर रूप भी अख्तियार कर रहा है. वहीं, गांधी परिवार की ओर से डैमेज कंट्रोल की कवायद की जा रही है, लेकिन कांग्रेस पार्टी में नेतृत्व को लेकर उठ रहे सवालों का कोई आसान समाधान होता नहीं दिख रहा है और पार्टी की समस्या गंभीर होती जा रही है.
बता दें कि 2017 में राहुल गांधी पार्टी के अध्यक्ष बने थे. उस वक्त उनका चुनाव निर्विरोध हुआ था. 2019 में लोकसभा चुनाव के बाद पार्टी की हार की जिम्मेदारी लेते हुए उन्होंने इस्तीफा दे दिया था. उसके बाद से कांग्रेस में अध्यक्ष पद पर चुनाव नहीं हुआ है और सोनिया गांधी पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष हैं.
हालांकि, 1998 से 2017 तक सोनिया पार्टी की अध्यक्ष रही थी. कांग्रेस पार्टी के संविधान के मुताबिक हर नए अध्यक्ष के चुनाव के लिए सीडब्लूसी का गठन होना चाहिए, लेकिन 22 साल से सीडब्लूसी का चुनाव नहीं हो पाया था. कांग्रेस वर्किंग कमेटी में कुछ लोग चुनाव से आते हैं, कुछ मनोनीत होते हैं और कुछ स्पेशल इनवाइटी होते हैं. सोनिया गांधी के कमान लेने के बाद सभी सदस्य मनोनीत होते रहे हैं. कांग्रेस में एक खेमा संगठन में चुनाव कराने को लेकर आवाज बुलंद किए हुए है.
वरिष्ठ पत्रकार शकील अख्तर कहते हैं कि कांग्रेस नेतृत्व के फैसला न लेने की कमजोरी के चलते पार्टी में यह संकट खड़ा हुआ है और जितने दिन गुजरेंगे उतनी ही समस्या गंभीर होती जाएगी. 23 असंतुष्ट नेताओं में से कई यूपीए सरकार में मंत्री थे, लेकिन जब ये मंत्री थे तो उन्हें न तो पार्टी संगठन की चिंता थी न पार्टी के अंदर आंतरिक लोकतंत्र की चिंता थी. इतनी ही नहीं कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ताओं की भी चिंता नहीं की. कांग्रस में लोकतंत्र को मजबूत करना चाहते थे तो गुलाम नबी आजाद ने क्यों 2018 में कांग्रेस महाधिवेशन में मनोनयन के जरिए CWC के गठन का प्रस्ताव रखा था. कांग्रेस में हाथ उठाने की संस्कृति को बढ़ावा दिया जा रहा है, कहने वाले आनंद शर्मा सबसे पहले हाथ उठाने वाले नेताओं में शामिल थे.
'पार्टी में ऊपर से नीचे तक बदलाव की जरूरत'
शकील अख्तर कहते हैं कि पार्टी को फिलहाल एक सर्जरी की आवश्यकता है. दवा दे कर कांग्रेस के मर्ज को बहुत ज्याजा दिनों तक ठीक करने की कोशिश नहीं की जा सकती है. इसीलिए सर्जरी के जरिए पार्टी के नीचे से लेकर ऊपर तक बदलाव किए जाने की जरूरत है ताकि संगठन को नए सिरे से खड़ा हो सके. अध्यक्ष पद के लिए चुनाव कराने के लिए फिलहाल वातावरण अनुकूल नहीं है. ऐसे में राहुल गांधी आगे आकर पार्टी की कमान संभाले और मजबूत और कड़े फैसले लेकर यह साबित करें कि पार्टी को चालने की पूरी छमता रखते हैं. उदारवादी तरीके से व्यावहारिक राजनीति नहीं होती है.
वरिष्ठ पत्रकार रेणु मित्तल कहती हैं कि राहुल गांधी पार्टी के अध्यक्ष नहीं होते हुए भी वो सारे काम अध्यक्ष के तौर पर कर रहे हैं. कांग्रेस पार्टी में राहुल का रोल क्या हो, ये बात अधर में अटकी है, वो ना खुद अध्यक्ष बन रहे हैं और ना दूसरे को बनने दे रहे हैं. इस तरह से ज्यादा दिन तक पार्टी नहीं चल सकती. ऐसे में कांग्रेस नेतृत्व को लेकर जो सवाल उठे हैं वो सोनिया गांधी के लिए नहीं बल्कि राहुल गांधी को लेकर ज्यादा हैं. राहुल गांधी के साथ जो लोग हैं वो गैर-राजनीतिक बैकग्राउंड से आए हुए नेता हैं जबकि असंतुष्ट नेताओं में ज्यादातर हार्डकोर नेता हैं.
'चुनौती सोनिया नहीं राहुल गांधी के लिए है'
वरिष्ठ पत्रकार स्मिति गुप्ता भी मानती हैं कि कांग्रेस का जो संकट दिख रहा है उससे कहीं ज्यादा गंभीर स्थिति पार्टी में बनी हुई और यह चुनौती सोनिया गांधी के लिए नहीं बल्कि राहुल गांधी के लिए है. वो कहती हैं कि पार्टी के वरिष्ठ नेता इस बात को समझ रहे हैं कि सोनिया गांधी अपनी राजनीतिक पारी खेल चुकी हैं और कांग्रेस कब तक आंतरिम अध्यक्ष के सहारे चलेगी. ऐसे में अब एक फुल टाइम अध्यक्ष, कांग्रेस वर्किंग कमेटी और संसदीय बोर्ड का दोबारा गठन, यही वो काम हैं, जो पार्टी की प्राथमिकता होनी चाहिए. इसमें काबिलियत और अनुभव दोनों का सही मिश्रण भी होना जरूरी है, लेकिन राहुल गांधी अपने मुताबिक पार्टी को लेकर चलना चाहते हैं. इस बात को पार्टी के वरिष्ठ नेता समझ रहे हैं.
वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवाई कहते हैं कि कांग्रेस का मौजूदा संकट जो मामला सामने आया है, उसमें पत्र लिखने वालों में तीन तरह के लोग हैं. पहले, जिन्हें सचमुच कांग्रेस के भविष्य की चिंता है. दूसरे वे हैं, जो यह चाहते हैं कि राहुल गांधी पार्टी अध्यक्ष न बनें, क्योंकि उनके अध्यक्ष बनने से इन नेताओं की जो पार्टी में अभी पकड़ एवं पद हैं, वे समाप्त हो जाएंगे. तीसरा समूह वह है, जो कांग्रेस को कमजोर करना चाहता है. साल 2014 के चुनाव के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया, भुवनेश्वर कलिता जैसे कई महत्वपूर्ण नेता पार्टी छोड़ कर चले गये हैं. इनमें से अधिकतर बीजेपी में शामिल हुए हैं. ऐसी परिस्थिति में कांग्रेस को भी बहुत सतर्क रहना पड़ता है कि कहीं पत्र लिखने के पीछे कोई राजनीतिक एजेंडा तो नहीं है.
समझौते का रास्ता तलाशने की जरूरत- किदवई
रशीद किदवाई कहते हैं कि सोमवार की बैठक में सुलह सफाई नहीं हुई. दोबारा बैठक करने का मतलब ये है कि असंतुष्ट नेताओं की तरकश में अब भी कई तीर हैं. सोमवार को जो हुआ वो पहला राउंड था और उसके बाद से जिस तरह से असंतुष्ट खेमे ने रुख अख्तियार किए हैं उससे साफ है कि आगे की लड़ाई लंबी चल सकती है. हालांकि, जिन नेताओं ने चिट्ठी लिखी उनसे बुला कर पार्टी नेतृत्व ने अलग से बात नहीं की है, जिसकी उनको एक आस रही होगी. इसीलिए अब उनके तेवर और भी बागी होते जा रहे हैं. ऐसे में कांग्रेस नेतृत्व को उनके साथ बैठकर ही कोई सुलह-समझौते का रास्ता तलाशना होगा.